नवरात्रि के त्योहार की शुरुआत जल्द ही होने वाली है। ऐसे में यह त्योहार अपने साथ महिला गरिमा का भी बखान करती है। नवरात्रि का नौ दिन महिला शक्ति को विभिन्न स्वरूपों में दर्शाता है। नवरात्रि का पहला दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री को समर्पित है। शास्त्रों में माना गया है कि शैलपुत्री साहस, धैर्य और शांति का प्रतीक हैं। तो आइए ऐसे में हम उन महिलाओं के बारे में जानते हैं, जिन्होंने विश्व में शांति दूत बनकर अपने मजबूत व्यक्तित्व से सभी को प्रभावित किया है। आइए जानते हैं विस्तार से।
राजकुमारी अमृत कौर
महात्मा गांधी को शांति का दूत माना जाता है और गांधीजी के साथ ही मिलकर राजकुमारी अमृत कौर ने देश की सेवा की है। राजकुमारी होने के बाद भी उन्होंने सेवाभाव की परीक्षा दी और सेवा के कार्य में जुट गयीं। गांधी जी की शिष्या बनकर 16 साल तक उनकी शिष्या बनकर सेवा का कार्य किया। उन्होंने सरोजनी नायडू के साथ मिलकर वुमन कांफ्रेश की स्थापना की। इतना ही नहीं राजकुमारी अमृत कौर भारत की ऐसी पहली महिला थीं, जो केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनीं। साल 1957 तक उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री के पद पर कार्य किया और समाज सेवा के क्षेत्र में कई प्रेरणादायक कार्य किए। बाल विवाह, और लड़कियों की शिक्षा के लिए उन्होंने कई कार्य और आंदोलन किए। उन्होंने सेवाभाव का दामन हमेशा थाने रखा।
मदर टेरेसा
मदर टेरेसा ने 13 साल की उम्र से अपने जीवन को मानव सेवा के लिए समर्पित किया। स्कूल में अपनी पढ़ाई के दौरान ही वह मानव सेवा को समर्पित एक संस्था की सदस्य बन गयीं। अपने जीवन का सबसे बड़ा फैसला लेते हुए केवल 18 वें साल में उन्होंने संन्यासी जीवन को अपनाया। साल 1931 में उन्होंने नन की ट्रेनिंग ली और कोलकाता के स्कूल में काम करना शुरू किया। बचपन से ही उन्हें गरीब और अनाथ लोगों को देखकर तकलीफ होती थी। उन्होंने इसे लेकर कहा था कि उन्हें ये संदेश मिल रहा है कि देश में गरीब लोगों की मदद करनी है। सेवा क्षेत्र में आने के बाद उन्होंने साड़ी को अपनाया। झोपड़ी में रहना और भीख मांगकर उन्होंने लोगों का पेट भरा। उन्होंने कोढ़ और प्लेग से पीड़ित मरीजों की मदद की। उन्होंने विश्व के समक्ष यह संदेश दिया कि हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए। इससे हम विश्व में देश में, अपने घर में और अपने दिलों में शांति ला सकते हैं। साल 1979 में विश्व शांति और सद्भावना के क्षेत्र में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया।
सिंधुताई सपकाल
सिंधुताई सपकाल को महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है। सिंधुताई का जीवन संघर्षपूर्ण रहा है। देश के सर्वोच्च नागरिक से सम्मानित सिंधुताई ने स्टेशन में भीख मांग कर अनाथ बच्चों के लिए खाना जुटाया। वक्त के साथ आगे बढ़ते हुए 1500 से अधिक बच्चों की मां बन गयीं। पद्मश्री सिंधुताई ने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की। सिंधुताई को समाज में उनके योगदान के लिए जितने भी सम्मान और रकम मिली है, उन्होंने सारी रकम को बच्चों को पालन-पोषण में लगा दिया। उन्होंने 1500 से अधिक बच्चों को गोद लिया। सिंधुताई को अनाथ बच्चों की यशोदा मां कहा जाता था, उन्होंने समाज में यह संदेश दिया कि दुनिया एक परिवार है और हम सभी को एक परिवार बनकर एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए।
अरुणा रॉय
महिला समाज सेविका के तौर पर अरुणा रॉय ने अपना मुकाम बनाया है। उन्होंने गरीबों, किसानों के लिए कई सारे प्रयास किए। इसके साथ ही सूचना के अधिकार को लागू कराने में भी उनका योगदान अहम है। साल 1968 में उन्होंने आईएएस की परीक्षा पास की। उन्होंने देश के कई गावों में जाकर वहां के लोगों के लिए प्रोत्साहित करने वाले कार्य किए। गांव में रहकर वह गांव की होने वाली समस्याओं के लिए लगातार काम करती गयीं। एक रैली के दौरान अरुणा राय ने सरकार को मजबूर किया कि वह विकास फंड के रिकॉर्ड को जनता के सामने रखें। उनकी इसी कोशिश के कारण राजस्थान के साथ अन्य राज्यों में सूचना का अधिकार कानून पास हुआ। उन्हें कई पुरस्कारों के लिए सम्मानित किया जा चका है।