नवरात्रि विशेष में आज हम बात करेंगे उन महिलाओं की, जो कि चिकित्सा के क्षेत्र में अपना कद ऊंचा कर चुकी हैं। आज इन महिलाओं पर बात करना जरूरी भी है। इसकी वजह यह है कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की आराधना की जाती है। दुर्गा देवी की स्वरूप मां कूष्मांडा से प्रार्थना कर स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है। ऐसे में उन महिलाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जो कि चिकित्सा के क्षेत्र में अपना अविस्मरणीय योगदान दे चुकी हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
डॉक्टर कादम्बिनी गांगुली
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान कादम्बिनी गांगुली ने चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया है। कादम्बिनी गांगुली देश की पहली महिला स्नातकों में से एक रही हैं। उन्होंने पश्चिमी चिकित्सा पद्धति का अभ्यास किया। उस दौर में गांगुली ने विदेश जाकर चिकित्सा से जुड़ी अपनी पढ़ाई पूरी की। इतना ही नहीं अपने हुनर के दम पर वह भारत की पहली महिला फिजीशियन बनीं। विदित हो कि यूरोपियन मेडिसिन में ट्रेनिंग लेने वाली गांगुली पहली दक्षिण एशिया महिला भी थीं।
आनंदीबाई जोशी
भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी का जन्म पुणे शहर में हुआ था। आंनदीबाई ने उस समय शिक्षा और चिकित्सा का महत्व लोगों को समझाने की कोशिश की और अपनी योग्यता से यह बताया कि महिलाएं केवल घर की चारदीवारी में बंद रहने के लिए नहीं है, बल्कि वह समाज के लिए भी शिक्षा के बलबूते कई बड़े योगदान दे सकती है। उस दौर में आनंदीबाई जोशी ने विदेश में जाकर डॉक्टर की डिग्री हासिल की, जब महिलाओं को घर से निकलने की के लिए भी मंजूरी नहीं थी, हालांकि अमेरिका से पढ़ाई खत्म करके आने के बाद वह टीबी रोग से पीड़ित हो गयीं। यह अफसोसजनक था कि महज 22 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
डॉक्टर भक्ति यादव
उज्जैन में भक्ति यादव ने उस वक्त अपनी पढ़ाई पूरी की , जब महिलाओं को शिक्षा से दूर रखा जाता था। भक्ति यादव ने अपने परिवार से लढ़ कर पढ़ाई पूरी की और एमबीबीएस कोर्स के पहले बैच की महिला छात्र बनीं। कई जगह पर नौकरी करने के बाद उन्होंने खुद का नर्सिंग शुरू किया और गरीबों के इलाज के लिए आगे आयीं । यही वजह है कि भक्ती को डॉक्टर दीदी भी बुलाया जाता रहा है। साल 2011 में उन्हें नि:शुल्क सेवा के लिए सम्मानित भी किया गया। उल्लेखनीय है कि उन्होंने एक लाख से अधिक प्रसव यानी कि डिलीवरी केस को संभाला है।
डॉक्टर एमवी पद्मा श्रीवास्तव
साल 1990 में एम्स से एमवी पद्मा श्रीवास्तव ने न्यूरोलॉजी से मास्टर डिग्री हासिल की। ज्ञात हो कि उन्हें स्ट्रोक प्रोग्राम का नेतृत्व करने के लिए भी जाना जाता है। स्ट्रोक प्रोग्राम खासतौर पर मिर्गी और स्ट्रोक से पीड़ित रोगियों के लिए की गई एक चिकित्सा पहल है। चिकित्सा क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें साल 2016 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
डॉक्टर इंदिरा हिंदुजा
डॅा. इंदिरा हिंदुजा चिकित्सा क्षेत्र में अपने कई बड़े योगदान के लिए जानी जाती हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी पहचान टेस्ट ट्यूब बेबी रही है। उन्होंने देश को पहली टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात दी थी। उस दौरान टेस्ट ट्यूब बच्चे का जन्म एक चमत्कार ही थी, जिसे इंदिरा हिंदुजा ने हकीकत में बदल कर दिखाया। चिकित्सा क्षेत्र में उन्होंने अपने काबिलियत के बलबूते साल 2011 में प्रतिष्ठित पद्म श्री से सम्मानित भी किया गया।