एक महिला, जिनकी शादी तब हो जाती है, जब वह 7 वीं कक्षा में थी। शादी के एक साल के बाद ही पति का देहांत हो गया। छोटा सा बच्चा और पूरी जिंदगी सामने, कोई आर्थिक सहयोग नहीं। ऐसे में एक महिला जो कभी घर की दहलीज के बाहर भी नहीं गयीं, उन्हें अपने बच्चे का जीवन अंधकार में डुबाना मंजूर नहीं था। इस परिस्थिति में उन्होंने तय किया कि बच्चे को अच्छी परवरिश और शिक्षा देकर रहेंगी। ऐसे में उन्होंने एक बैंक में स्वीपर के रूप में काम किया, इसके साथ-साथ उन्होंने जूता बनाने वाली कम्पनी में मामूली सी नौकरी की, रेलवे स्टेशन पर प्लास्टिक के खिलौने बेचे। लेकिन, इन सबके बीच उन्हें समझ आ चुका था कि इस कीचड़ और अंधकार से निकलना है तो ज्ञान और पढ़ाई ही सहारा है और वह जुट गयीं सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई करने में। आखिरकार, उनकी जिद, मेहनत और जूनून ने रंग दिखाया और उन्होंने जिस बैंक में स्वीपर की नौकरी शुरू की थी, वहीं वे असिस्टेंट जेनरल मैनेजर यानी एजीएम बनीं। जी हम बात कर रहे हैं प्रतिक्षा प्रमोद तोंडवलकर की, जिन्होंने अपने जुनून, जज्बे और मेहनत से बदली अपनी तक़दीर। किसी दौर में बेटे के लिए एक बिस्किट भी नहीं खरीद पाने की टीस, किस तरह एक महिला के लिए प्रेरणा बन जाती है, क्यों कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, एक ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी जानने के लिए देखिए यह पूरा वीडियो।