जिंदगी की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ उसे खास बनाने का नाम योग है। तो आइए योग से जुड़े कुछ मिथकों पर प्रकाश डालते हुए, इसकी सच्चाई उजागर करते हैं।
जिंदगी की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हुए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ उसे खास बनाने का नाम योग है। योग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे अपनाकर व्यक्ति वो नहीं रहता, जो वो कभी हुआ करता था। यूं तो योग हजारों वर्षों से है, किन्तु इसका प्रचार प्रसार बीते कुछ सालों में देश विदेश तक हो चुका है। शायद ही कोई होगा, जो इसकी महिमा से अनभिज्ञ हो। किंतु इसी के साथ कई ऐसी गलत धारणाएं भी हैं, जो न चाहते हुए भी इससे जुड़ गई हैं। तो आइए योग से जुड़े कुछ मिथकों पर प्रकाश डालते हुए, इसकी सच्चाई उजागर करते हैं।
विभिन्न योगासनों से काफी अधिक है योग
पतंजलि योग सूत्र के अनुसार योग के आठ अंग हैं, जिन्हें योग की परिष्कृत भाषा में अष्टांग योग कहते हैं। योग के सम्पूर्ण अभ्यास को अपनाकर व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ सकता है। हालांकि आम तौर पर लोगों को लगता है, तस्वीरों, वीडियो या प्रतीकों के माध्यम से दर्शायी गयीं योग मुद्राएं या योग आसन ही संपूर्ण योग हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। योग मुद्राएं, योग के विस्तृत संसार का हिस्सा हैं।
योगासन और ध्यान अलग नहीं, एक ही हैं
योग में विभिन्न योगासनों की तरह एक गलत धारणा लोगों में ये भी है कि योग और ध्यान दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं, किन्तु ऐसा नहीं है। योगासनों के साथ ध्यान भी योग दर्शन का एक अभिन्न अंग हैं। वास्तविकता में विभिन्न योगासनों का प्राथमिक लक्ष्य ही शरीर को ध्यान के लिए तैयार करते हुए सक्षम बनाना है।
भेदभाव से परे है योग
योग उन सभी के लिए है और उन सभी के लिए फायदेमंद भी है, जो फिटनेस में रुचि रखते हैं। ये हर तरह के भेदभाव से मुक्त है, किन्तु काफी लोगों को लगता है कि योग सिर्फ महिलाओं के लिए है। जबकि ऐसा कतई नहीं है। स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रखने की आशा रखनेवालों के साथ विभिन्न खेलों में अपना शानदार प्रदर्शन देनेवाले सभी प्रतियोगियों के लिए योग का अभ्यास फायदेमंद साबित हुआ है, फिर वो चाहे महिला हों या पुरुष।
योग और एक्सरसाइज, दो अलग प्रक्रियाएं हैं
मन, मस्तिष्क और शरीर के साथ आत्मा का सामंजस्य बिठाते हुए योग मानसिक चेतना का आधार है। इस प्राचीन तकनीक को अपनाकर आप मानसिक विकृतियों के साथ अपनी झूठी धारणाओं और भ्रमों से मुक्त हो सकती हैं। इसे आप शारीरिक, मानसिक और दिमागी कसरत भी कह सकती हैं, लेकिन इसे आप जिम में किए जानेवाले कसरत की श्रेणी में नहीं रख सकती। ये दोनों एक दूसरे से पूरी तरह अलग हैं। योग व्यक्ति की विकृतियों की शांत करते हुए उसकी व्यक्तिगत चेतना को सार्वभौमिक चेतना से जोड़ता है।
शारीरिक लचीलापन योग की उपलब्धि है, जरूरत नहीं
योग के प्रयोग से हम शरीर के साथ अपने मन-मस्तिष्क को भी लचीला बनाते हैं, जिससे हम किसी तरह की भ्रांतियों में उलझे बिना अपने विवेक से सही गलत का फैसला कर सकें। हालांकि विभिन्न योगासनों को शारीरिक लचीलेपन के साथ सफलतापूर्वक करते देख, लोगों को यही लगता है कि योग वही कर सकते हैं, जिनका शरीर पहले से ही लचीला है। अगर आप भी ऐसा सोचती हैं, तो इस ख्याल को पीछे धकेल दीजिए, क्योंकि ये सिर्फ एक भ्रम है। हां, योग के अभ्यास के लिए शारीरिक मुद्राओं की आवश्यकता होती है, लेकिन उन्हें करने के लिए सर्वप्रथम शांत मन और स्थिर शरीर की जरूरत है। रही बात शारीरिक लचीलेपन की तो योग के नियमित अभ्यास से शरीर में लचीलापन आ ही जाता है।
गर्भवती महिलाओं के लिए भी कारगर है योग
आम तौर पर लोगों में एक भ्रम ये भी फैला है कि गर्भवती महिलाओं को योग नहीं करना चाहिए, लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है। गर्भावस्था में शरीर के साथ मन-मस्तिष्क को काफी आराम की आवश्यकता होती है। यही वजह है कि योग दर्शन में गर्भवती महिलाओं के लिए भी काफी योगासन बताए गए हैं, लेकिन शर्त ये है कि इन्हें आप किसी अनुभवी योग प्रशिक्षकों की देख-रेख में करें।
किताबों और इंटरनेट को न बनाएं अपना योग गुरु
आज के डिजिटल युग में इंटरनेट पर योग से जुड़ी हुई काफी जानकारियां मौजूद हैं। इसके अलावा, किताबों और सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से फैले योग के वीडियोज को देखकर लगता है, जैसे योग में सभी पारंगत हो चुके हैं। हालांकि ये सिर्फ उन्हें ही लगता है, जिन्हें योग की सही जानकारी नहीं है। अक्सर यही होता है कि योगाभ्यास की शुरुआत करनेवाले इन्हें ही अपना गुरु मान लेते हैं और योग से लाभ की जगह अपनी हानि कर बैठते हैं। किताबों, वीडियो या इंटरनेट के जरिए एकतरफा संवाद से न आपको अपनी गलतियां पता चलती हैं और न उचित दिशानिर्देश मिलते हैं। अत: योगाभ्यास, योग के उचित प्रशिक्षकों की देखरेख में ही करें, जिससे आपको उनके मार्गदर्शन के साथ अपनी गलतियां भी पता चले।