आज भारतीय शिल्प कला, हैंडलूम और हाथों से बनीं चीजों को भारत में काफी बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन अगर इसके इतिहास के बारे में भी देखें, तो हमें ज्ञात होना चाहिए कि कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी महिला भी रही हैं, जो भारतीय शिल्प को दिशा देने में हमेशा तत्पर रही हैं। आइए उनके बारे में जानें।
हैंडलूम जगत में दिशा
कमलादेवी एक ऐसी शख्सियत रही हैं, जिन्होंने एक साथ कई भूमिका निभायी। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भारतीय महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के उत्थान के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, तो साथ ही साथ वह स्वतंत्रता के बाद भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा के पुनर्जागरण के पीछे प्रेरक शक्ति भी मानी जाती रही हैं। यही नहीं उन्होंने थियेटर की दुनिया में भी खास पहचान बनायीं।
कलात्मक विरासत का प्रभाव
भारत की अगर कलात्मक विरासत की बात की जाए, तो कमलादेवी ने उन्हें भी बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हैंडलूम के क्षेत्र की बात की जाए तो इस क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका रही। उन्होंने भारत में सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक क्षेत्रों के विभिन्न क्षेत्रों में विविध योगदान दिया। साथ ही कई उपलब्धियों का नेतृत्व भी किया।
महिलाओं को दिया बढ़ावा
भारत की आजादी के बाद जब देश का विभाजन हुआ, तब कमलादेवी शरणार्थियों के पुनर्वास में लग गयीं। उस समय उनका पहला काम पुनर्वास में मदद के लिए भारतीय सहकारी संघ की स्थापना करना था और संघ के माध्यम से उन्होंने सहकारी तर्ज पर एक टाउनशिप की योजना बनायी। उन्होंने राज्य से सहायता नहीं मांगी थी और इसलिए बहुत संघर्ष के बाद, दिल्ली के बाहरी इलाके में फरीदाबाद टाउनशिप की स्थापना की गयी, जिसमें उत्तर-पश्चिम सीमा से 50,000 से अधिक शरणार्थियों का पुनर्वास किया गया। उन्होंने शरणार्थियों को नए घर और नए पेशे स्थापित करने में मदद करने के लिए अथक प्रयास किया। खास बात यह रही कि फिर उन्हें नए कौशल में प्रशिक्षित किया गया। उन्होंने नए शहर में स्वास्थ्य सुविधाएं स्थापित करने में भी मदद की।
और फिर धीरे-धीरे आराम से विलुप्त हुई कलाओं के पुनर्वास में उनके जीवन के काम का दूसरा चरण शुरू हुआ। यही वजह रही कि हस्तशिल्प में महिलाओं को बढ़ावा देने का उन्हें श्रेय जाता है। स्वतंत्रता के बाद के युग में भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा के महान पुनरुद्धार के लिए उन्हें श्रेय जाता है और साथ ही साथ उन्हें आधुनिक भारत के लिए उनकी सबसे बड़ी विरासत मानी जाती है।
ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड को लेकर पहल
यह आपके लिए जानना भी रोचक होगा कि भारत के विकास के लिए नेहरू हमेशा इस बात को लेकर अग्रणीय सोच में रहे कि उन्हें भारत में फैक्ट्री आधारित मशीनरी का निर्माण करना है। ऐसे में कमलादेवी ने भारत की स्वदेशी कला और शिल्प को संग्रहीत करने और संग्रहित करने के लिए शिल्प संग्रहालयों की एक शृंखला स्थापित की, जो स्वदेशी जानकारी के लिए भंडारगृह के रूप में काम करती थी। बता दें कि अपने समय से आगे सोच रखने वालीं महिला रहीं। साथ ही उन्होंने अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और वह इसकी पहली अध्यक्ष भी थीं। भारतीय शिल्प परिषद, विश्व शिल्प परिषद, एशिया प्रशांत क्षेत्र के पहले अध्यक्ष भी रहीं। बता दें कि हस्तशिल्प को बढ़ावा देने में उनके योगदान के लिए यूनेस्को ने उन्हें 1977 में पुरस्कार से सम्मानित किया। शांतिनिकेतन ने उन्हें अपने सर्वोच्च पुरस्कार देसीकोट्टम से सम्मानित किया गया।
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