ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बेहद सीमित होते हैं, ऐसे में उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाना बेहद चुनौती भरा काम होता है, लेकिन आज से 70 साल पहले इस चुनौती को स्वीकारकर जसवंतीबेन जमनादास पोपट ने इतिहास रच दिया था। ग्रामीण महिलाओं के जीवन में उनके योगदान को आइए विस्तार से जानते हैं।
ग्रामीण महिलाओं के दर्द को समझा
चाहे घर के काम हों या बाहर जाकर खेती से जुड़े काम हों, हर जगह महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे अधिक होती है, लेकिन बावजूद इसके सबसे ज्यादा आर्थिक तंगी और गरीबी की मार इन्हें ही सहनी पड़ती है। आज से लगभग 70 साल पहले ये बात जसवंतीबेन जमनादास पोपट ने भली-भांति समझ ली थी। यही वजह है कि उन्होंने अपने पड़ोस में रहनेवाली सात अन्य महिलाओं के साथ वर्ष 1956 में पापड़ बनाने का काम शुरू कर दिया था। महिलाओं को रोजगार देने के इरादे से मुंबई के गिरगांव में महिला गृह उद्योग के नाम से शुरू हुआ यह व्यवसाय 1962 में लिज्जत पापड़ के नाम से पहचाना जाने लगा, और आज लिज्जत पापड़ हजारों ग्रामीण और नीचे तबके की महिलाओं के लिए रोजगार का साधन बन चुका है।
कम पढ़ी-लिखी घरेलू महिलाओं को बनाया सशक्त
अपने पति जमनादास के साथ गुजरात के एक गांव से विवाह करके मुंबई आई जसवंतीबेन ग्रामीण महिलाओं की स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ थी। ऐसे में उन्होंने कम पढ़ी-लिखी घरेलू महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पापड़ बनाने का काम शुरू किया। इस तरह उन्होंने सारी महिलाओं के साथ मिलकर महिला सशक्तिकरण और कर्मठता का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया। जसवंतीबेन जमनादास पोपट के साथ पापड़ बनानेवाली और श्री महिला गृह उद्योग की स्थापना करनेवाली महिलाओं में पार्वतीबेन रामदास थोडानी, उजमबेन नारनदास कुंडलिया, बानुबेन तन्ना, लागुबेन अमृतलाल गोकानी और जयाबेन विठलानी शामिल थीं।
80 रूपये से शुरू कर 800 करोड़ रूपये तक पहुंचाया
गौरतलब है कि 60 शाखाओं के साथ 800 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाले लिज्जत पापड़ की शुरुआत जसवंतीबेन और उनकी साथी पड़ोसनों ने मात्र 80 रूपये में की थी। आज लिज्जत पापड़ के स्वाद ने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि इंग्लैंड, अमेरिका, सिंगापुर, थाईलैंड और नीदरलैंड सहित कई देशों के लोगों को भी अपना दीवाना बना रखा है। पापड़ से शुरू हुआ एक छोटा सा घरेलू उद्योग, आज न सिर्फ बहुत बड़ा कुटीर उद्योग बन चुका है, बल्कि पूरे देश में लोकप्रिय ब्रांड भी बन गया है। और सच पूछिए तो ग्रामीण भारत के साथ गली-मोहल्लो और झुग्गी झोपड़ियों में रह रही 45000 महिलाओं के लिए आजीविका का साधन बन चुका यह व्यवसाय उन अनपढ़, किंतु कुशल महिलाओं के लिए वरदान बन चुका है।
2021 में पद्मश्री से हुईं सम्मानित
जब जसवंतीबेन ने अपनी साथी पड़ोसनों के साथ मिलकर इस व्यवसाय की शुरुआत की तो उन्हें बिजनेस चलाने की कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन अपने साहस, हौंसलों और दृढ़ता से उन्होंने न सिर्फ अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाया, बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए भी मिसाल बनी। उनके इसी योगदान को देखते हुए वर्ष 2021 में 91 वर्षीय जसवंतीबेन जमनादास पोपट को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। हालांकि दो साल बाद अर्थात 2023 में 93 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी देश की ग्रामीण महिलाओं को सफलता और विकास के अवसर प्रदान करनेवाली जसवनीबेन जमनादास पोपट सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं।
हर महिला कर्मचारी नहीं, मालिक हैं
अपने जीवन की आखिरी सांस तक अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने में लगी जसवंतीबेन का मानना था कि उनके व्यवसाय से जुड़ी हर महिला सिर्फ कर्मचारी नहीं, बल्कि उनके व्यवसाय के मालिकाना हक में बराबर की हिस्सेदार भी है। यह उनकी नेक सोच ही रही, जिसने उनके व्यवसाय को न सिर्फ आगे बढ़ाया, बल्कि हर महिला को भी मुनाफा कमाने में आगे रखा। गौरतलब है कि ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर देनेवाली दुनिया की सबसे पुरानी को-ऑपरेटिव समितियों में से एक होने के साथ-साथ इसके कुछ बुनियादी मूल्य भी हैं, जिनमें अपने ग्राहकों को जबरदस्त डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के साथ किफायती दाम में क्वालिटी प्रोडक्ट देना शामिल है। यही वजह है कि पिछले 70 वर्षों से उनका व्यवसाय और उनका प्रोडक्ट ग्राहकों के लिए विश्वास का भरोसेमंद नाम बना हुआ है।