भारतीय संस्कृति की विरासत या आप यह समझ लें कि उसकी धरोहर की कीमती पहचान मेलों से रही है। जी हां, मेले, बीते लंबे समय से गांवों का शहरीकरण होने से कहीं न कहीं मेलों ने अपनी पहचान कायम करने के बाद भी उसकी तस्वीर धूमिल होती जा रही है। मेले के माध्यम से, जहां भारतीय संस्कृति और सभ्यता की तस्वीर देखने को मिलती है, तो वहीं हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में भी मेलों ने अहम भूमिका निभाई है। आइए विस्तार से जानते हैं भारत के लोकप्रिय मेलों के बारे में, जिसे हमें संजो कर रखने की जरूरत है।
पुष्कर मेला में सांस्कृतिक विरासत
राजस्थान में हर साल होने वाले पुष्कर मेले को देश की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा माना जाता है। यह 100 सालों से भी ज्यादा पुराना मेला माना जाता है। पुष्कर भारत के राजस्थान राज्य के अजमेल जिले में स्थित एक नगर है। इस मेले की सबसे बड़ी खूबी यहां का पुष्कर सरोवर है, जो कि राजस्थान की प्राकृतिक धरोहर की पहचान माना जाता है। इस पुष्कर सरोवर के चारों तरफ 52 घाट बने हुए हैं, जो कि मेले के आयोजन के दौरान इसकी शोभा बढ़ाते हैं। यह मेला पूरी तरह से राजस्थान की माटी के रंग में लिपटा हुआ नजर आता है। पुष्कर के लगभग सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन इस मेले की खास प्रस्तुति का हिस्सा रहता है। पांरपरिक व्यंजन और रेशमी सौल से लेकर पगड़ी और लहंगा-चोली राजस्थान की पारंपरिक धरोहर को बखूबी पेश करते हैं। साथ ही राजस्थान की पहचान ऊंटों से भी होती है, जो कि रंग-बिरंगे कपड़ों और गहनों के साथ एक किनारे खड़े होकर राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का कद बड़ा करते हैं। पुष्कर मेले में ऊंटों की रेस, रस्साकस्सी के साथ कई सारी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। हाथ से बुने हुए कपड़े, चित्र कलाएं, मटके और सुराही के साथ पारंपरिक ऊंट की सवारी मेले के 100 साल पुराने होने का परिणाम देती है।
सुरजकुंड मेला
भारत की ऐतिहासिक कलाओं और शिल्पों का मेला सूरजकुंड मेले को माना जाता है। इस मेले का आयोजन सूरजकुंड गांव में किया जाता है। इसे 10वीं शताब्दी के दौरान राजपूत राजा सूरज पाल ने बनवाया था। इस मेले का आयोजन 1500 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है। हरियाणा के फरीदाबाद जिले में इसका आयोजन होता है। यह मेला खासतौर पर हरियाणा की ग्रामीण धरोहर को प्रस्तुत करती हुई दिखाई देती है। यहां पर हस्त कला के साथ लकड़ी और मिट्टी की गुड़िया और खिलौने भी मिलते हैं, जिसका चलन कई दशक पुराना है। इस मेले की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि यहां पर आपको दुनिया के लोकप्रिया व्यंजनों की झलक भी देखने को मिलेगी, जो कि देश-विदेश की खाने की सभ्यता का अलौकिक नजारा कराती है।
नागौर मेला
राजस्थान का नागौर मेला प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का नजारा दिखाते हैं। इसे भारत का दूसरा सबसे बड़ मेला माना जाता है। इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण यहां पर सजावट के साथ मौजूद पशु रहते हैं। ऊंट, बकरियां और भेड़े भी इस मेले में मौजूद रहती हैं। रंग-बिरंगे परिधान में पशुओं की रौनक देखते ही बनती है। इसके साथ कई सारे पारंपिक खेलों का आयोजन भी नागौर मेला की शोभा को बढ़ाता है। घुड़दौड़, रस्साकशी, हस्तशिल्प कला और लोहे के सामानों की प्रदर्शनी के साथ पांरपरिक आभूषणों की बिक्री इस मेले की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन जाती हैं। साथ ही भारत का सबसे बड़ा मिर्च बाजार भी इस मेले के कद को भारत की धरोहर की फेहरिस्त में ख्याति दिलाता है।
जोनबील मेला
असम का 500 साल पुराना मेला जोनबील मेला कहलाता है। असम की दशकों पुरानी सभ्यता को जिंदा रखने का एक जरिया जोनबील मेले को माना जाता है। माना जाता है कि इस मेले की शुरुआत 15 वीं शताब्दी के दौरान किसी समय हुई थी। यहां पर खासतौर पर वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। इस मेले में पहाड़ियों से आदिवासी मसाले, जड़ीृ-बूटियां, अदरक और कई तरह के फल लेकर आते हैं। मीठे चावल की मिठाई के साथ चावल और मछली भी इस मेले में भारी मात्रा में दिखाई देती हैं। इन सारे सामानों का प्रदर्शनी लगाई जाती है, लेकिन यहां पर इन सामानों को बेचा या फिर खरीदा नहीं जाता है। यहां पर वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है और साथ लोग इन साम्रगियों के जरिए विचारों और सभ्यता का भी आदान-प्रदान करते हैं।