छठ पूजा में महिलाओं का योगदान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार, समाज और संस्कृति को मजबूत बनाने का माध्यम भी है। आइए जानते हैं छठ पूजा में महिलाओं की भूमिका और इसकी सांस्कृतिक महत्ता।
व्रत के कठिन नियमों का पालन
ऐसा नहीं है कि व्रत रखने की परंपरा सिर्फ महिलाओं की रही है, कई ऐसे व्रत हैं जिन्हें पुरुष भी करते हैं किंतु चार दिवसीय छठ पूजा कठिन व्रत अक्सर महिलाएं ही रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं पानी तक नहीं पीतीं और उपवास रखती हैं। इसे निर्जला व्रत कहा जाता है, और यह उनकी आस्था, समर्पण और सहनशक्ति को दर्शाता है। महिलाएं इस व्रत के माध्यम से परिवार के सुख, समृद्धि और संतान की उन्नति के लिए प्रार्थना करती हैं। इस पर्व में स्वच्छता और पवित्रता के साथ अनुशासन का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस अनुशासन के अंतर्गत महिलाएं व्रत के दौरान विशेष नियमों का पालन करती हैं, जैसे कि मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाना, पूजा के लिए विशेष प्रकार के पकवान तैयार करना, और घाट पर जाकर सूर्य को अर्घ्य देना। यह सब करते हुए वे पूरे घर को पूजा के अनुरूप तैयार करती हैं, जिससे घर में शुभता और पवित्रता का वातावरण बनता है। चार दिन के निर्जला व्रत के साथ घर के सभी कामों को अपने हाथों से करना महिलाओं की मजबूत इच्छा-शक्ति को दर्शाता है।
पारंपरिक लोकगीत और सामाजिक एकता
छठ पूजा में महिलाएं छठ माई के गीत गाती हैं, जो इस पर्व की आत्मा माने जाते हैं। ये गीत पारंपरिक होते हैं और इनकी धुनें भी काफी प्राचीन हैं। इन गीतों में माई की महिमा, लोक कथाएं और भक्तों की आस्था को दर्शाया जाता है। ये गीत छठ के सांस्कृतिक महत्व को और अधिक बढ़ाते हैं और पूजा में समर्पण का भाव जगाते हैं। लोक-संस्कृति से जुड़े ये लोकगीत सिर्फ छठ माई और पूजा की महिमा ही नहीं, बल्कि आपको उस दौर का समृद्ध इतिहास भी बताते हैं। छठ पूजा में महिलाएं एक-दूसरे का सहयोग करती हैं और एकता के भाव को प्रकट करती हैं। घाट पर समूह में जाकर पूजा करना, प्रसाद तैयार करना और एक-दूसरे के साथ पर्व को मनाना सामाजिक सामंजस्य का प्रतीक है। इस अवसर पर महिलाएं अपने परिवार और समाज के अन्य लोगों के साथ मिलकर त्योहार मनाती हैं, जिससे सामूहिकता और मेलजोल की भावना बढ़ती है।
परिवार और समाज के प्रति समर्पण
छठ पूजा में महिलाएं अपनी इच्छाओं और आराम को छोड़कर परिवार और समाज के कल्याण के लिए व्रत करती हैं। यह उनके बलिदान, धैर्य और सेवा भाव का प्रतीक है। छठ पूजा में महिलाओं का यह समर्पण परिवार की एकता, सुख-समृद्धि और संस्कारों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। छठ पूजा में महिलाओं का योगदान सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस पर्व में उनकी भागीदारी न केवल आस्था को प्रदर्शित करती है, बल्कि उनके त्याग, समर्पण और दृढ़ता को भी दर्शाती है। महिलाओं के इस योगदान के कारण ही छठ पूजा को विशेषता प्राप्त है और यह पर्व समाज में विशेष स्थान रखता है।
छठ पूजा और महिला स्वावलंबन
छठ पूजा के दौरान हर तरफ दिखनेवाले खूबसूरत लाल रंग के आर्क पात, जिसके बिना छठ पूजा अधूरी होती है, का निर्माण कर बिहार की कई महिलाओं ने स्वावलंबन की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। विशेष रूप से बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के हर घर में महिलाएं इसे बड़े पैमाने पर बना रही हैं। यहां से इसकी सप्लाई दूसरे प्रदेशों, जैसे उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बंगाल और मुंबई तक तक किया जाता है। मूल रूप से आर्क पात बनाने के लिए अकवन की रूई , गुलाबी रंग व मैदा का इस्तेमाल किया जाता है। अकवन की रूई उपलब्ध नहीं होने पर बाजार से खरीदी जाती है। एक किलो रूई से करीब 600 अर्क पात तैयार होता है। वैसे तो यह काम पूरे वर्ष चलता रहता है, लेकिन कार्तिक छठ और चैती छठ से पहले इसमें तेजी आ जाती है। छठ पूजा में तो इसका अनिवार्य रूप से उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि त्योहार के समय सिर्फ आर्क पात से ही कुल मिलाकर 20 लाख रुपये महीने का कारोबार होता है और प्रत्येक महिला को महीने में तीन से चार हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। छठ पूजा के दौरान महिला समर्पण के साथ महिला स्वावलंबन का यह रूप वाकई अद्भुत है।