महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना, किसी दौर में आसान राह नहीं रही, जिस महिला ने भी घरों में कैद महिलाओं को बाहर निकल कर, उन्हें शिक्षा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया, समाज ने या तो उनका तिरस्कार किया या फब्तियां कसीं, तो कुछ ने पत्थर भी फेंके, लेकिन कुछ महिलाएं हमेशा डटी रहीं और महिलाओं के शिक्षा विस्तार पर हमेशा काम किया है। तो तो शिक्षस दिवस के अवसर पर हम ऐसी 5 महिला शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए लगातार संघर्ष किया।
सावित्री बाई फुले
सावित्री बाई फुले के संघर्ष और उनके योगदान को कभी भूला नहीं जा सकता है। उन्हें यूं ही पहली महिला शिक्षक नहीं कहा जाता था, उनको जो योगदान दिए हैं, वह हमेशा याद किये जाते रहेंगे। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर हमेशा ही जोर दिया और उनके हक की बात की। ऐसे कई संदर्भ या प्रसंग मिलते हैं, जब उन्होंने चुनौतियों का सामना किया है। वह जब लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाया करती थीं, तो उन्हें रोकने के लिए कई बार गोबर और पत्थर फेंके गए थे। लेकिन उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा था। वर्ष 1848 में पुणे में उन्होंने बालिका विद्यालय की स्थापना की थी और फिर यही से उन्होंने शिक्षिका बन कर आगे का सफर शुरू किया। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिल कर, बालहत्या प्रतिबंधक गृह नाम का केयर सेंटर खोला था, वहां वे महिलाएं आती थीं, जो किन्हीं कारणों से बच्चे को पालने में असमर्थ होती थीं।
दुर्गाबाई देशमुख
दुर्गाबाई एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने का निर्णय लिया। उन्होंने कई स्कूलों की स्थापना की। खासतौर से उन्होंने महिलाओं को चरखा चलाने और कातने की भी ट्रेनिंग दी। आजादी के संघर्ष में वह जितनी मग्न रहती थीं, उन्होंने पढ़ाई के लिए भी उसी हद तक समय निकाला और फिर बीएल के साथ-साथ एमए की डिग्री भी हासिल की। उनका एक बड़ा योगदान यह भी है कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के मैट्रिक परीक्षाओं के लिए उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना भी है, जहां लड़कियों को वहां परीक्षा देने की ट्रेनिंग दी जा सके।
महादेवी वर्मा
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महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की जानी-मानी कवयित्री रहीं, तो वह एक स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद भी रहीं। वह ज्यादातर हिंदी में ही लिखती थीं। प्रयागराज( तब इलाहबाद) के प्रयाग महिला विद्यापीठ में उन्होंने बतौर प्रिंसिपल और वाइस चांसलर के रूप में काम किया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए लगातार अपने काम, अपनी रचनाओं और सोच से प्रेरित किया।
असीमा चटर्जी
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असीमा चटर्जी विज्ञान में डॉक्टरेट हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। असीमा ने जब इस क्षेत्र में परचम लहराया था, उस वक्त इस क्षेत्र में पुरुषों की ही संख्या ज्यादा थी। असीमा के लिए भी इस क्षेत्र में कदम रखना और फिर परेशानियों को झेलते हुए आगे बढ़ना कम कठिन नहीं था। वह एक सफल ऑर्गेनिक केमिस्ट होने के साथ-साथ भारत में डॉक्टरेट ऑफ साइंस की उपाधि पाने वाली प्रथम महिला भी हैं। इन्होंने प्राकृतिक उत्पादों के रसायन विज्ञान पर विशेष काम किया और फिर कीमोथेरेपी, मलेरिया से बचने की दवाएं और ऐसी कई जरूरी दवाओं को विकसित किया।
बेगम जफर अली
कश्मीर की वह महिला, जिन्होंने पहली बार महिला के रूप में मैट्रिक पास कर इतिहास रच दिया था। जी हां, यह नाम हमेशा इतिहास के पन्नों में याद रखा जायेगा, जब बेगम ने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की थी। इससे पहले किसी भी महिला ने यह काम नहीं किया था। वह कश्मीर की इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स भी बनी थीं। साथ ही वह शिक्षाविद भी बनीं और महिलाओं के हक व आजादी के लिए भी उन्होंने काम किया था। इन्होंने कई स्कूलों में प्रधान अध्यापिका के तौर पर भी काम किया। वह लड़कियों को हमेशा ही शिक्षा और उनके हक के लिए लड़ने के लिए या आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित करती थीं।