फिल्में हमारी जिंदगी को भावनात्मक रूप से दर्शाने का एक अद्भुत जरिया रहा है। ऐसे में किसी बीमारी को मात देकर भी इंसान ने कैसे अपनी जिंदगी जीने के जज्बे को जिन्दा रखा है, आइए ऐसी कुछ फिल्मों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
आनंद
बाबूमोशाय, जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए, यह संवाद हमने राजेश खन्ना की फिल्म आनंद में कई बार देखा सुना है, यह फिल्म एक ऐसी व्यक्ति की कहानी पर आधारित थी, जिसने जीवन में हारना नहीं सीखा, उसने अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने के बारे में सोचा और लम्बी नहीं, बड़ी जीने के बारे में सोचना चाहिए। इस फिल्म से ही प्रभावित होकर कल हो न हो फिल्म बनाई गई थी। ये फिल्में जीना सिखाती हैं।
दिल बेचारा
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सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ में भी हड्डियों के कैंसर से जूझते हुए दो लोगों की कहानी में जिंदादिली के जज्बे को दर्शाया गया है और कमाल तरीके से सुशांत और संजना ने इन किरदारों को निभाया है, यह फिल्म भी चेहरे पर एक मुस्कान लाती है।
स्टेप मॉम
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स्टेप मॉम वर्ष 1998 की फिल्म है और यह काफी लोकप्रिय फिल्मों में से एक रही है, जिन्हें दर्शकों ने काफी सराहा भी है और काफी एन्जॉय करके देखा भी है। इस फिल्म को और भी कई बार देखने की कोशिश करनी चाहिए। इस फिल्म की कहानी दो महिलाओं की जिंदगी पर आधारित है, जिसमें दोनों महिलाओं के बीच अक्सर अनबन रहती है, लेकिन जब उनमें से एक महिला को टर्मिनल लिंफोमा का पता चलता है, तो दोनों महिलाओं को सभी की खातिर घर में शान्ति का एहसास बनाने की कोशिश करनी पड़ती है। ऐसे में कैसे दो महिलाएं आगे की जिंदगी जीती है, कहानी में शानदार तरीके से दर्शाया गया है।
लिली
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लिली एक खास फिल्म है, जिसे हर किसी को देखने की कोशिश करनी चाहिए। यह वर्ष 2013 की ड्रामा फिल्म है। साथ ही यह एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसे स्तन कैंसर का पता चला है और वह इस बीमारी से उबरने के लिए आवश्यक उपचार करा सकती है, जबकि उसकी सहेलियां उसके स्तन कैंसर पर विजय पाने से खुश हैं, लिली को आश्चर्य है कि आगे क्या होगा। हालांकि एक साधारण फिल्म, मुख्य किरदार हमें याद दिलाता है कि जीवन कई सवालों से भरा हुआ है और इसलिए हमें जीना बेहद जरूरी है खुले विचारों के साथ , क्योंकि किसी के साथ भी कभी भी कोई परिस्थितियां घटित हो सकती हैं।
माई लाइफ विदाउट मी
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वर्ष 2003 में आई फिल्म ‘माई लाइफ विदाउट मी’ काफी रोचक फिल्म है। इस फिल्म में नायिका एक मां की भूमिका में होती हैं, जिन्हें पता चलता है कि उसे मेटास्टेटिक डिम्बग्रंथि कैंसर है और उसके पास जीने के लिए केवल कुछ ही महीने बचे हैं। वह किसी को नहीं बताती कि उसके पास अधिक समय नहीं है, लेकिन वह अपने परिवार को इस दर्द से गुजरते नहीं देखना चाहती है और अपने तरीके से जिंदगी जीने की कोशिश करती है। यह एक ऐसी महिला की कहानी है, जो हमेशा परिवार में दूसरों के बारे में पहले सोचती हैं।