मां और बहन से एक खास रिश्ता दोस्ती का भी होता है, लेकिन जब बात जीवन के दूसरे रिश्तों की आती है, तो वहां पर दोस्ती जैसा रिश्ता बनाना मुश्किल क्यों होता है, यही सवाल हमारे मन में तब सबसे अधिक आता है, जब हम अपने ससुराल में जीवन के दूसरे रिश्तों से पहली मुलाकात करते हैं। वक्त के साथ हम वहां पर भी ननद और सास के साथ मां और बहन का रिश्ता बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन परेशानी इस बात की आती है कि आप आखिर कैसे अपने नए रिश्तों में दोस्ती का रंग भर सकती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
बातचीत रखें जारी
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कई बार ऐसा होता है, जब छोटी सी बात पर हुई बहस नाराजगी की बड़ी वजह बन जाता है और आप एक दूसरे से बात करना बंद कर देती हैं। ऐसा करने से आप अपने रिश्ते में जल्दी कोई सहजता नहीं ला पायेंगी। अगर किसी तरह से आप दोनों में बात होती भी है, तो आप इसे ठीक होने में वक्त दें। इसके साथ आपकी अगर किसी बात पर बहस भी होती है, तो आप बातचीत करना बंद न करें, बल्कि आप लगातार अपनी तरफ से बात करने की पहल करें। ऐसा करने से सामने वाला व्यक्ति भले ही आपसे बात न करें, लेकिन जब आप लगातार बात करने की कोशिश करती हैं, तो आपके मन पर कोई बोझ नहीं होता है। बातचीत रिश्ते के बंद ताले की चाबी होती है। इसलिए अपने रिश्ते में बातचीत को हमेशा बनाए रखें, ताकि रिश्ता दोस्ती की तरफ आगे बढ़ें।
बनाएं हंसी का माहौल
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घर में हंसी का माहौल बनाए रखें, जिस तरह आप अपने मां के घर पर हंसी का वातावरण बनाए रखते रहे हैं, ठीक इसी तरह ससुराल में भी हंसी के पल से यादों की टोकरी जरूर भरें। चाय की चुस्की पर या फिर भोजन के समय किसी पुराने किस्से को याद कर या फिर टीवी के सामने किसी कॉमेडी शो या फिल्म को देखते हुए आप अपने रिश्ते में हंसी का स्वाद भी जरूर घोलिए। हंसी का माहौल आपके रिश्ते को सकारात्मकता पैदा करती है।
तोहफे से होगी दोस्ती की शुरुआत
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कहते हैं कि रिश्ता लेन-देन पर नहीं टिका रहता है, लेकिन कई बार रिश्तों की महक को बढ़ाने के लिए तोहफा सबसे कीमती पर्याय होता है। इसलिए खास मौकों पर जैसे होली और दिवाली के साथ जन्मदिन के मौके पर भी आप कोई तोहफा दे सकती हैं। ध्यान दें कि तोहफा सामने वाले व्यक्ति को अपनी तरह आकर्षित करने के लिए नहीं होता है, बल्कि उसे यह बताने के लिए होता है कि वो भी हमारी जिंदगी में बहुत मायने रखता है। तोहफा यह बताता है कि सामने वाला व्यक्ति हमारे लिए कीमती है।
सुख और दुख के बनें साथी
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कई बार ऐसा होता है कि एक घर में रहने के बाद भी हम जिसके साथ रह रहे हैं उसके सुख और दुख के साथी नहीं बन पाते हैं। कई बार समय की कमी के कारण ऐसा होता है, तो कई बार आपकी उलझनों के कारण हम किसी के सुख और दुख में एक साथ नहीं हो पाते हैं। कोशिश करें कि आप अपने साथ रह रहे रिश्तों के सुख के न सही, लेकिन दुख के साथी जरूर बनें। किसी की खुशियों में शामिल होना भले ही आप याद नहीं रख पाएं, लेकिन किसी के दुख का साथी बनकर आप उसके जीवन की कठिनाइयों की हमसफर बन सकती हैं और इससे एक अटूट दोस्ती की शुरुआत होती है।
घूमने की करें प्लानिंग
यात्रा के साथ कई सारे नए संबंधों को जोड़ जा सकता है और पुराने संबंधों को मजबूत बनाया जा सकता है। इसलिए साल में भले ही एक बार के लिए ही, लेकिन अपने परिवार से जुड़े लोगों के साथ घूमने की प्लानिंग करें। यह योजना केवल फिल्म देखने तक नहीं होनी चाहिए, बल्कि 4 या 10 दिन के लिए किसी यात्रा से जुड़ी होनी चाहिए। यात्रा के दौरान एक दूसरे के साथ वक्त बिताने का अधिक अवसर मिलता है। एक दूसरे को समझने और करीबी होने का मकसद भी यात्रा देती है।