दिल, दिमाग और आत्मा को सुकून देती प्रकृति, सुंदरता से ही नहीं, ज्ञान से भी भरपूर है। यह उनके लिए एक बेहतरीन शिक्षक है, जो इससे सीखना चाहते हैं। आइए जानते हैं प्रकृति के सिखाए कुछ महत्वपूर्ण सबक।
गुलाब और मधुमक्खियों से सीखें ये बात
कमल, कीचड़ में खिलकर भी अपनी न सिर्फ अलग पहचान बनाता है, बल्कि अपनी खूबसूरती से सबका मन मोहता है। गुलाब को ही लीजिए, कांटों के बावजूद खुशबू और सुंदरता के लिए उसे सभी प्यार करते हैं, जिसका तात्पर्य ये है कि सभी में अच्छी और बुरी दोनों बातें होती हैं। अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप बुरी चीजों को नजरअंदाज करते हुए अच्छी बातों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं या नहीं। यही बात मधुमक्खियों के साथ भी लागू होती है। उनमें डंक होता है, तो मीठा शहद भी। इसी तरह लोग भी होते हैं, जिनकी कड़वी बातों से आपको लग सकता है कि वे आपका मनोबल तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आपको ये नहीं भूलना चाहिए कि उनके अंदर कुछ अच्छी बातें भी हैं, जिन्होंने वक्त पड़ने पर आपका हौंसला बढ़ाया था। प्रकृति की इन बातों पर ध्यान देते हुए हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम सभी अधूरे होने के बावजूद पूरे हैं। हम जिन्हें पसंद नहीं करते उनके अंदर भी बुराइयों के साथ कुछ अच्छाइयां हैं, सो हमें बुराइयों की बजाय अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए।
सिर्फ लेना नहीं, देना सिखाती है प्रकृति
प्रकृति पल-पल, हर-पल बदलती रहती है और इस बदलाव के साथ वो हमें सिखाती है कि इस नाशवान और परिवर्तनशील जीवन जीवन में हर रोज बदलाव होते रहेंगे और और वो जरूरी भी है, क्योंकि एक जैसा मौसम और एक जैसा जीवन बहुत नीरस हो जाता है। प्रकृति हमें यह भी सिखाती है कि हमारी जिम्मेदारी हम नहीं बल्कि मानव कल्याण है। हम जो भी करें उसमें अपने हित से पहले दूसरों का हित हो। उदाहरण के तौर पर नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते और न ही सूरज-चांद-सितारे खुद को रौशनी देने के लिए निकलते हैं। सभी दूसरों के हित में लगे रहते हैं। ऐसे में हमें भी अपने हित को किनारे रखकर दूसरों के हित पर ध्यान देना चाहिए। प्रकृति के संसाधनों पर सभी का समान अधिकार होता है, इसी तरह हमें भी सिर्फ अपने परिवार, अपने लोग, अपने समाज की बजाय मानव कल्याण के लिए अपने कदम उठाने चाहिए। सच पूछिए तो प्रकृति हमें लेने से अधिक देना सिखाती है।
सूरज-चांद-सितारे सिखाते हैं डटे रहना
दरअसल प्रकृति हमें यही सिखाती है कि हमें न पूर्णता का दावा करना चाहिए और न ही पूर्णता की तलाश। मौसम, फूल, पौधे, जीव-जंतु और पशु-पक्षियों के साथ प्रकृति का हिस्सा रहे सूरज, चांद, सितारे भी हमें बहुत कुछ सिखाते हैं। जैसे रात के अंधेरे में चांद और सितारे हमें उम्मीद की किरण दिखाते हैं, तो दिन में सूरज बिना रुके, बिना थके हमें सतत आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। सूरज से हमें विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ने की प्रेरणा मिलती है, कि किस तरह अपने पर लगे ग्रहण से निराश होने की बजाय उसका डटकर सामना किया जाए। सिर्फ यही नहीं मौसम के अनुसार वह अपने ताप में कोई परिवर्तन नहीं करता, बल्कि हर मौसम में वो समान रहता है। उसे फर्क नहीं पड़ता कि उसके काम के लिए लोग उसकी तारीफ कर रहे हैं या तिरस्कार। वो हर हाल में समान रहता है, उसी तरह हमें भी लोगों की प्रतिक्रियाओं से प्रभावित हुए बिना, पूरी लगन और ईमानदारी से अपना काम करते रहना चाहिए।
मौसम सिखाती है, स्थायित्व मन का भ्रम है
हमें ये भी याद रखना चाहिए कि हम सभी एक दूसरे से जुड़े हैं, जैसे रात को चांद खूबसूरत बनाती है, तो वहीं चांद के कारण रात खूबसूरत नजर आती है। इसके अलावा कुछ सबक प्रकृति हमें मौसम के जरिए भी सिखाती है, जैसे बसंत में फल-फूल से लदे पेड़-पौधे पतझड़ में मुरझा जाते हैं। मौसम के इस परिवर्तन के द्वारा प्रकृति हमें सिखाती है कि खूबसूरती और बदसूरती हमारे मन का भ्रम है। यहां कुछ भी स्थायी नहीं है। इससे हमें ये भी सीखना चाहिए कि खूबसूरती और बदसूरती के साथ हमारी सफलता और संपन्नता भी स्थायी नहीं है, अर्थात आज है, कल नहीं। ऐसे में हमें चाहिए कि हम विनम्र और व्यावहारिक बने रहें, क्योंकि जिस तरह आज बसंत है, तो कल पतझड़ होगा, दिन है, तो रात होगी, सफलता है, तो असफलता आएगी। ऐसे हर चीज आती-जाती रहेगी सो हमें चाहिए कि हम प्रकृति की तरह आशावादी बने रहते हुए धैर्य से काम लें।
पेड़ों से सीखिए विनम्रता और निःस्वार्थता
इसी तरह फलों से लदे पेड़ हमें सिखाते हैं कि संपन्नता में भी विनम्र कैसे रहा जाता है। वे पत्थर फेंकनेवालों को भी फल देते हैं, क्योंकि देना पेड़ का स्वभाव है। उसी तरह ये पेड़ हमें सिखाते हैं कि यदि हम पर कोई कीचड़ उछाले, तब भी हमें अपना विनम्र स्वभाव नहीं खोना है। इसके अलावा जब पेड़ छायादार होते हैं, तो सभी उसका सम्मान करते हैं, उसकी छाया में कुछ देर उसके साथ बिताते हैं, लेकिन बंजर होने के बाद कोई उस पेड़ को नहीं पूछता। हालांकि पेड़ इससे नाराज नहीं होते, हरियाली आते ही वे फिर अपनी छाया से लोगों को अपनी पनाह में ले लेते हैं। दरअसल वे हमें सिखाते हैं कि इसी तरह आपके जीवन में भी पावर, फेम और सक्सेस आती-जाती रहेगी और उसी के साथ लोगों का व्यवहार भी आपके प्रति बदलता रहेगा, लेकिन आपको उससे विचलित नहीं होना है, और न ही निराश होना है। बस, धैर्य से काम लेते हुए अपनी बारी का इंतजार करना है, क्योंकि जिस तरह पतझड़ के बाद बसंत आता है, उसी तरह जीवन में भी परेशानियों के बाद खुशियां जरूर आएंगी।
अहंकार को छोड़, धैर्यवान बनना सिखाती है
प्रकृति हमें यह भी सिखाती हैं कि विकास की प्रक्रिया में धैर्य की आवश्यकता होती है, जैसे एक शिशु को विकसित होने में नौ महीने और एक छोटे से पौधे को पेड़ बनने में सालों लग जाते हैं। उसी तरह हमें भी अच्छी चीजों के लिए जल्दबाजी करने की बजाय धैर्य से काम लेना चाहिए। पेड़ों से हमें प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी जगह पर बने रहना सीखना चाहिए। जिस तरह पेड़ हवा के झोंकों के सामने झुक जाते हैं, उसी तरह हमें भी विपरीत परिस्थितियों में अपने अहंकार को किनारा करके थोड़ा झुक जाना चाहिए, जिससे हम या हमारा रिश्ता टूटने से बच जाए। फूल खिलते हैं, फल पकते हैं और पानी बिना किसी पर एहसान जताए चुपचाप बहते हुए सबकी प्यास बुझाता है, उसी तरह हमें भी बिना घमंड किए या दूसरों पर एहसान जताए, अपना काम चुपचाप करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन की चुनौतियों का सामना करना है, तो आपको मजबूत और परिपक्व बनना पड़ेगा। उसी तरह खूंखार जंगल हमारे अंदर साहस और आत्मविश्वास जगाते हुए, हमें भविष्य की मुश्किल परिस्थितियों के लिए तैयार करते हैं।
प्रकृति की तरह जीवन का उद्देश्य पहचानें
प्रकृति हमें जीवन की प्रत्येक घटनाओं को एक नए दृष्टिकोण से देखना भी सिखाती है। उदाहरण के तौर पर प्रकृति में मौजूद जीव-जंतुओं और पशु-पक्षियों को ही ले लीजिए। प्रकृति ने उन्हें जमा करने की प्रवृत्ति नहीं दी है, बल्कि हर रोज वह उनके खान-पान का इंतजाम कर देती है। ऐसे में हमें उनसे यह भी सीखना चाहिए कि जरूरत से ज्यादा जमा करने की प्रवृत्ति को हम तिलांजलि दे दें। इसके अलावा प्रकृति हमें यह भी सिखाती है कि निरुद्देश्य जीवन जीने की बजाय, हमें अपने जीवन का एक उद्देश्य बनाना चाहिए। जिस तरह निःस्वार्थ होकर एक उद्देश्य को पूरा करने के लिए फूल खिलते हैं, सूरज-चांद निकलते हैं और नदियां बहती हैं, उसी तरह हमारा भी एक उद्देश्य होना चाहिए, जो दूसरों की भलाई के लिए हो।