दुर्गा पूजा या किसी भी महोत्सव में जब आप लौट कर घर जाती हैं, अपने कार्यस्थल से, तो आपको कभी करीम चचा की दुकान के उन क्रीम रोल्स की याद आ जाती होगी, तो कभी उस मेले की भी याद आ जाएगी, है न ! दरअसल, उत्सव एक माध्यम होता है कि हम फिर से पुरानी यादों में खोएं और हमारे बचपन को जिंदादिल बनाने में, तो आइए जानें कैसे पुराने लोगों से घुलने-मिलने का मौका देते हैं ये पर्व।
बचपन के किस्से कहानियां
आपको शायद याद न हो, लेकिन बचपन की ऐसी कई कहानियां होती हैं, जो शायद आप भूल जाएं, लेकिन आपके मोहल्ले की वो दुकान, जहां आप पर प्यार लुटाने वाले, एक करीम चाचा या फिर ऐसे ही कोई काका, एक खाता खोल कर रखते थे, जहां आपको कम पैसे में भी वो सबकुछ खाने का मौका मिल जाता था, जो आप कम पैसे में खा लिया करते थे, इस बार उत्सव में एक बार फिर से उनसे मिल कर आइए और सुनिए उनसे ही किस्से और कहानियां आपके बचपन की शरारतों के, शायद आपको फिर से बच्चा होने का मन करे।
वो एक खास मेडिकल की दुकान
हम डॉक्टर के पास तो बाद में जाते थे, सबसे पहले वो एक मेडिकल की दुकान, जिनके पास हमारे हर दर्द की दवा होती थी, मलहम होते थे, कितनी बार तो हम उनके पास यूं भी जाते थे कि हमें अपने परिवार में किसी को कुछ बताना नहीं होता था और मां या पापा की डांट से बचाना होता था, इसलिए वो खास मेडिकल की दुकान हमारे लिए किसी सांता क्लॉज से कम नहीं होता था। इस बार जब घर जाएं, तो एक बार उनको शुक्रिया कह कर आने की कोशिश करें, उन होमियोपैथी वाले डॉक्टर को भी, जो जानते हैं कि आपको क्रिकेट या कबड्डी में चोट लगने पर कौन सा ड्रॉप लगाना है और फर्स्ट रिलीफ करना है, एक बार अगर वे उसी शहर का हिस्सा अब भी हैं, तो जाकर उनसे मिलें, यकीन मानिए उन्हें बेहद ख़ुशी मिलेगी।
आटा वाले चाचा की वो दुकान
आपको याद होगा कि बचपन में जब रेडीमेड आटे की बोरी नहीं होती थी, लोग गेहूं को धोते थे, सुखाते थे और फिर उसकी पिसाई होती थी, ऐसे में बड़ा मजा आता था, आटे की चक्की पर जाकर, उसकी चक्की से भले ही गंदगी निकलती थी, बाद में कपड़े गंदे हो जाने पर मां से डांट भी पड़ती थी, लेकिन वो धूल हमारे लिए उत्साह का पाउडर ही हुआ करता था और वो चाचा भी आपके साथ बच्चे बन जाते थे और खूब एन्जॉय करने देते थे, मौका मिले तो इस बार उनसे भी मिल आएं और बचपन की यादों को फिर से ताजा करें।
मेले की वो यादें
बचपन में हमारा टेस्टी रेस्टोरेंट वहीं होता था, जहां पर एकदम गरमा-गरम पकौड़े भी मिल जाते थे और गरम-गरम जलेबियां भी, ऐसे में टेस्टी चाट पकौड़ी की दुकान पर जाना दिलचस्प होता था, दुनिया इधर से उधर हो जाये, लेकिन आज भी वहीं टेस्ट चाट पकौड़ी में आपको खाने को मिल जायेगा, तो एक बार फिर से उस टेस्ट या स्वाद का मजा लेने जरूर जाएं। मिठाई वाले भईया से कभी पांच रुपये के पेड़े भी बड़े शौक से मिल जाते थे, उनसे एक बार फिर से वहीं पेड़ा खरीद कर खाएं। यकीन मानिए, इससे अच्छा स्वाद जिंदगी में नहीं मिलेगा। अगर मेले में आपकी नजर पड़ जाये उन पर भी जो आज भी सेल्फी में जमाने में अपने स्टूडियो में तस्वीरें खींचते हैं, तो एक बार वहां भी नई जिंदगी जीने की कोशिश कीजिए। मेले के गुब्बारे शायद नए हों, लेकिन बेचने वाले चेहरे वही हो जाते हैं, उन्हें भी याद रखें और उनसे जाकर मिलें।
वो खास किताब घर
काफी अच्छे कॉलेज और स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, जाहिर है आप जिंदगी में एक मुकम्मल जिंदगी जी रही हैं, लेकिन आपको यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि कॉलेज और स्कूल के वक़्त आपकी किताबों की जिल्द, कम पैसे में बचत और डिस्काउंट के साथ जो किताबें और कॉपियां मिल जाया करती थी, उसने भी आपकी वर्तमान जिंदगी में कहीं न कहीं छोटा ही सही योगदान जरूर दिया है। ऐसे में आपको उन्हें भी एक थैंक्यू तो कहना ही चाहिए, इनके अलावा अपने अख़बार वाले, दूध वाले और सब्जीवाले भईया से भी हंस कर दो बातें करें, उन्हें इससे बेहद ख़ुशी मिलेगी और आपको भी अपनी बचपन की यादों में फिर से झांकने का मौका मिलेगा।