औपचारिकतावश बुलाए गए लास्ट मिनट इंविटेशन यानी आखिरी में निमंत्रण या दिखावे को लेकर कभी किसी गलतफहमी में न रहें, याद रखें यह दिखावा है। आपके साथ भी ऐसा कई बार हुआ होगा। है न ! तो आइए जानते हैं ऐसे में कैसे न कहना सीखना होगा।
भावनाओं पर नियंत्रण रखें
इंविटेशन देने और लेने, दोनों के कुछ नियम होते हैं। विशेष रूप से आखिरी समय पर मिले इंविटेशन कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं, लेकिन कई बार संकोच के कारण आप कुछ कह नहीं पातीं और इस उधेड़बुन में लग जाती हैं कि जाऊं या नहीं? तो सबसे पहले आपको ये समझना होगा कि लास्ट मिनट पर मिला इंविटेशन आपके लिए है ही नहीं। यह महज आपको उपेक्षित महसूस करवाने और प्राथमिकता न देने का सरल तरीका है, जो मेजबान द्वारा अपनाया गया है। ऐसे में उस फंक्शन का हिस्सा न बनना ही आपके लिए फायदेमंद होगा। कई बार लोग आपको आखिरी समय में इसलिए भी बुला लेते हैं कि वे आपको छोटा महसूस करवा सकें। ऐसे में अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने का अधिकार किसी और के हाथों में देने की बजाय आपको सोच समझकर फैसला लेना चाहिए।
अस्वीकार करें लेकिन शालीनता से
आपमें से कई ऐसे लोग होंगे जो बुलानेवाले की मंशा जानने के बावजूद उनकी भावनाओं का ख्याल रखते हैं। अच्छी बात है ये क्योंकि वे अच्छे मेजबान हों या न हों, लेकिन आपको अपने अच्छे मेहमान होने की सारी शर्तें पूरी करनी चाहिए। तो अब जब आपने उस फंक्शन में न जाने का मन बना ही लिया है, तो सबसे पहले आप समझदारी से उस इंविटेशन को अस्वीकार कर दें। हालांकि इसे अस्वीकार करने का तरीका ऐसा रखें, जिससे मेजबान को आपका उत्तर भी मिल जाए और भविष्य में उनके साथ आपके रिश्ते भी न बिगड़े। इसके लिए जरूरी है कि इंविटेशन मिलते ही आप उसे नजरअंदाज करने की बजाय तुरंत शालीनता से मना कर दें। किसी भी चीज में देरी उसे बिगाड़ सकती है, इसलिए आप अपनी कश्मकश को खत्म करते हुए तुरंत मना कर दें, लेकिन इस इंविटेशन के लिए उनका आभार मानते हुए।
अतिरिक्त बातें या उलाहना न दें
आप चाहें तो अपनी बात अपने मेजबान पर स्पष्ट भी कर सकती हैं कि आप उनके फंक्शन का हिस्सा क्यों नहीं बन पाएंगी। हालांकि अपनी बात रखते हुए आपका लहजा ऐसा नहीं होना चाहिए, जिससे सामनेवाले को ऐसा लगे कि आप उसे जरूरत से ज्यादा समझाने की कोशिश कर रही हैं। याद रखिए अपनी बात रखते हुए आपकी अतिरिक्त बातें, आपको झूठा साबित कर आपके मनोभाव भी प्रकट कर सकती हैं। अत: अपनी जरूरी बात रखने के बाद, जितनी जल्दी हो अपनी बात खत्म कर दें। वैसे भी उन्हें आपके न आने के कारणों में कोई दिलचस्पी नहीं होगी। इसके अलावा, गलती से भी अपने मेजबान को देर से इंवाइट करने का उलाहना न दें और न ही उनके साथ वैसा व्यवहार करने के बारे में सोचें, जैसा उन्होंने आपके साथ किया है। कई बार हम अनजाने में ही बदले की भावना का शिकार हो जाते हैं और मन ही मन भविष्य के मंसूबे बांधने लगते हैं। आप ऐसा कुछ मत कीजिए, वरना न चाहते हुए भी आपके व्यवहार या उलाहनों से आपकी मंशा उनके सामने प्रकट हो जाएगी।
किसी भी दुविधा में न पड़ें
रिश्ता चाहे कोई भी हो, बेईमानी से बचें। अक्सर देखा गया है जब आप संदिग्ध होने लगती हैं, तो बिना मतलब की गड़बड़ियां करने लगती हैं। सिर्फ पर्सनल ही नहीं प्रोफेशनल लेवल पर भी ऐसी बातें होती रहती हैं। ऐसे में आपके दिल में ये बात आती है कि अब जब बुलाया है तो चली ही जाती हूं, लेकिन फिर अगले पल आपका दिमाग आपको हकीकत से रूबरू करवाता है। इस दुविधा से निपटने के लिए आप चाहें तो अपनी बजाय किसी और को भेजने का प्रस्ताव अपने मेजबान के सामने रख सकती हैं। विशेष रूप से औपचारिक सेटिंग में यह संभव भी है। उदाहरण के तौर पर आप किसी क्लब की अध्यक्षा हैं, तो आप अपनी जगह अपनी सहायिका को उस फंक्शन में भेज सकती हैं, जिससे आपका मान भी रह जाए और बुलानेवाले की बात भी।
मेजबान के प्रति कोई खटास न रखें
भले ही आप उस फंक्शन में शामिल नहीं हो रही हों लेकिन आभार स्वरूप अपनी शुभकामनाओं के साथ ग्रीटिंग कार्ड, कोई उपहार या गुलदस्ता जरूर भेजें। संभव है इससे उनके दिल में न सिर्फ आपके लिए एक खास जगह बनें, बल्कि उन्हें अपनी गलती का भी एहसास हो जाए। आम तौर पर देखा गया है कि इंविटेशन को रफा-दफा करने के बाद लोग अपने मेजबान से कतराने लगते हैं, लेकिन आप ये गलती भूलकर भी न करें। संभव हो तो फंक्शन के बाद अपने मेजबान को फोन करके फंक्शन की सफलता के बारे में पूछें। आपका ये व्यवहार न सिर्फ आपके मेजबान को प्रभावित करेगा, बल्कि आपको उनके शुभचिंतक के रूप में स्थापित भी करेगा।