भाई नहीं तो कुछ भी नहीं, इस दकियानूसी सोच को हर कदम पर मिसाल बनीं इन ‘लक्ष्मी’बहनों ने गलत साबित किया है। जी हां, संयोग से आज हम आपको ऐसी दो बहनों से मिलवा रहे हैं, जिनका नाम लक्ष्मी है, शेष एक दूसरे से कोई संदर्भ नहीं, लेकिन इसके बावजूद दोनों में एक कनेक्शन है और वह यह है कि इन दोनों ही बहनों ने अपने-अपने भाई और बहनों के लिए अपने सपनों को एक अलग ही रुख दे दिया। अपने लिए जीना तो सबसे आसान बात है, अपने अरमानों और सपनों को पूरा करना भी अपने आप पर निर्भर करता है कि जब इसे पूरी कर लें, लेकिन अपने सपनों और आशाओं को पीछे छोड़ कर, पहले अपने परिवार के बारे में सोचना, फिर उनकी खुशियों में शामिल हो जाना, भावनात्मक रूप से भी और आर्थिक रूप से भी। यह कर पाना हर किसी के वश की बात नहीं होती हैं। लेकिन आज हम रक्षाबंधन के मौके पर ऐसी दो महिलाएं, जिनका नाम भी संयोग से लक्ष्मी ही हैं और दोनों ने ही बहन होने के जो फर्ज पूरे किये हैं, वो उन्हें अपने आप में अद्भुत मिसाल बनाता है। रांची की रहने वालीं लक्ष्मी कुमारी ने जहां अपने भाई की पत्नी के देहांत होने के बाद, उनके बच्चे के पालन पोषण की पूरी जिम्मेदारी संभाली, तो मुंबई में रहने वाली लक्ष्मी पंधे ने अपनी चार बहनों के लिए एक स्ट्रांग वुमेन बन कर, सारी जिम्मेदारियां निभा रही हैं। तो आइए इनके बारे में विस्तार से जानें।
‘बुआ’( लक्ष्मी ) मेरे लिए मां से बढ़ कर हैं : रुचि कुमारी
रांची की रहने वालीं रुचि कुमारी अकेडमिक्स के फील्ड में हैं, वह खुद एक आत्म-निर्भर लड़की हैं, जिन्होंने कम उम्र से ही, ट्यूशन करके, अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला और अपने पैरों पर खड़ी हुईं, लेकिन रुचि मानती हैं कि शायद वह यह सबकुछ नहीं कर पातीं, अगर उन्हें अपनी बुआ का साथ नहीं मिलता। वह बताती हैं “ मेरी बुआ, लक्ष्मी कुमारी ने सिर्फ इसलिए शादी नहीं की, क्योंकि मेरी मां का देहांत काफी पहले हो गया था, मैं और मेरा छोटा भाई, अकेला न रह जाए, उन्होंने शादी न करने का निर्णय ले लिया और हमारा पालन-पोषण उन्होंने किया। मेरे पापा वाकई, लकी हैं कि उन्हें ऐसी सम्पर्ण करने वाली बहन मिली है, वरना कौन यह सबकुछ करता है। मेरी बुआ ने शादी करने के बारे में कभी नहीं सोचा और मेरे पापा के साथ हमेशा मजबूत स्तंभ के साथ खड़ी रहीं, मुझे तो ऐसा सोच कर लगता है कि वह नहीं होतीं तो मैं क्या होती, इसलिए मैं चाहती हूं कि मैं भविष्य में कभी भी कुछ कर पाई, तो उनके नाम से घर लूंगी, वह काफी क्रिएटिव हैं, लिखना उनका शौक हैं और उन्होंने काफी किताबें भी लिख रखी हैं, मैं तो चाहूंगी कि उनके इस शौक को मैं और बढ़ावा दूं। मुझे याद है,एक बार जब मुझे पापा ट्रिप पर जाने की इजाजत नहीं दे रहे थे, तो उन्होंने कहा कि वह मेरे साथ जाएंगी और उनकी वजह से मैं मनाली देख पायी। अब भी सुबह मुझे पढ़ाने के लिए जाना होता है, तो वह सुबह 5 बजे उठ कर, मेरी पूरी तैयारी करती हैं। मुझे मेरी मां की कमी महसूस नहीं होने देने में उनका बड़ा हाथ है। मैं चाहूंगी कि जिस तरह से पापा के लिए उन्होंने एक बहन होने के नाते, इतना सबकुछ किया है, मैं भी अपने भाई की ऐसी ही मिसाल बहन बनूं। पापा की तरह हर भाई को ऐसी ही बहन मिले और मैं बुआ को हर चीज के लिए थैंक यूं बोलना चाहती हूं। वह मेरी दोस्त, मेरी हमराज, मेरी मां सबकुछ हैं।
बहन के लिए मां से कम नहीं है ये ‘लक्ष्मी’
मुंबई के मुलुंड इलाके में रहने वालीं लक्ष्मी पंधे को हो सकता है, आपने कई बार मुलुंड स्टेशन से कहीं आते-जाते ऑटो रिक्शा चलाते हुए देखा होगा। जी हां, लक्ष्मी महिला ऑटो रिक्शा चालक हैं, जो अपनी बहनों और मां के लिए एक बड़ा सपोर्ट बन चुकी हैं। लक्ष्मी कुल मिला कर चार बहनें हैं। लक्ष्मी जब छोटी थीं, तभी उनके पिताजी की मृत्यु हो गई थी। ऐसे में घर में कोई भी कमाने वाला शख्स नहीं था, लक्ष्मी ने भी हिम्मत नहीं हारी और जहां ऑटो रिक्शा चलाने का काम सीखा, वहीं अभिनय में दिलचस्पी होने के कारण, समय निकाल कर मराठी फिल्मों और सीरियल में भी कुछ किरदार निभाती रहती हैं। लक्ष्मी बताती हैं “ मेरी चार बहनें हैं, दो की शादी हो गई है, लेकिन एक बहन को लकवा मार दिया है। इस वजह से मां और बहन की जिम्मेदारी मैं अकेले ही उठाती हूं , लेकिन मुझे इस बात का फक्र है कि मैं अपनी मेहनत से अपने परिवार वाले और अपनी बहन का इलाज करा पा रही हूं “. लक्ष्मी अपने आत्म-सम्मान से ही कमाई करके जीना चाहती हैं।
वाकई, किसी भी भाई और बहन के जीवन में अगर ऐसी ‘लक्ष्मी’ बहनें मिलें, तो उनका जीवन अपने आप में ही खास और अद्भुत हो जायेगा, ये मिसालें हैं, उनके लिए जो कहते हैं कि भाई के बगैर कुछ नहीं होता ! लड़का तो कुल के दीपक होते हैं ! ऐसी महिलाएं हर परिवार के लिए हर दिन रक्षाबंधन का सेलिब्रेशन होने का एहसास दिलाती हैं।