रक्षाबंधन का मतलब, भाई के हाथों पर ही राखी बंधेगी, यही ट्रेडिशन चली आ रही है। लेकिन सच तो यह है कि यह पर्व, सिर्फ भाइयों को ही नहीं, बहनों को भी हक देता है कि वह अपनी मर्जी से अगर अपनी बहन को राखी बांधना चाहे, तो बांध ले। ऐसी ही एक महिला हैं अमिता, जिन्होंने इस अवधारणा को तोड़ा और दोनों बेटियों को ही प्रेरित किया कि एक दूसरे को वह राखी बांधें। साथ ही रांची में रहने वालीं चार बहनें आपस में ही सेलिब्रेट करती हैं रक्षाबंधन, आइए जानते हैं विस्तार से।
दो बहनें हैं एक दूसरे की जान
एक मिडिल क्लास घर की हाउस मेकर, अमिता शर्मा ने बचपन से अपने छोटे भाई की कलाई पर राखी बांधी है और हमेशा यही सोचा कि राखी का धागा भाइयों की कलाई पर ही होता है। उनकी यह सोच बस तब तक उनके साथ रही जब तक उनकी दो बेटियां नहीं हो गयी। साल 2012 में साक्षी और साल 2017 में छोटी बेटी राम्या के जन्म के बाद अचानक से अमिता के जेहन में यह बात आयी और उन्हें लगा बहनें हैं तो क्या हुआ, उन्हें एक दूसरे का ख्याल तो रखना ही है, एक दूसरे की रक्षा भी करनी है, तो वह एक दूसरे को राखी क्यों नहीं बांधती? लेकिन, इस सवाल के जवाब में उन्हें अपने परिवार से सिर्फ एक जवाब मिला- 'राखी बांधने के लिए कमजोर कलाई नहीं, भाई की मजबूत कलाई चाहिए होती है, तो तू इन्हें भाई पैदा करके दे!'
अमिता की शादी एक ऐसे घर में हुई थी, जहां के लोगों की सोच इस रुढ़िवादी थी। उन्हें घर की बहू साड़ी न पहने तो ठीक है, लेकिन ड्रेस के साथ जो दुपट्टा है वो उनके सिर पर जरूर रहना चाहिए। इसी के साथ बच्चा पैदा करने का प्रेशर भी शादी के बाद से शुरू हो गया। अमिता के दो प्यारे बच्चे तो हुए, दोनों लड़कियां। अमिता ने कहा, ‘रक्षाबंधन वाले दिन घर वालों की चार बातें तो आठ बातों में बदल जाती और मैं हमेशा सोचती कि यह गलत है, लेकिन इसे सही कैसे किया जाए, यह मैं नहीं जानती थीं। मैंने कई सालों तक खुद को कोसा भी कि आखिर मैं ही लड़का पैदा नहीं कर पायी। बच्चों की खुशी का ध्यान रखते हुए मैंने इस बीच अपनी बेटियों को सबसे छुपकर, एक दूसरे को राखी बांधने के लिए कहा। खास बात यह है कि जब भी दोनों एक दूसरे को राखी बांधती हैं, तो मैं उनकी आंखों में एक अलग चमक देख पाती हूं।’
अमिता कहती हैं कि इस छुपे हुए रक्षाबंधन के सेलिब्रेशन की उम्र कुछ ही सालों की थीं और फिर “मैं धीरे-धीरे इस बात से परेशान रहने लगी कि अब मेरी बेटियां बड़ी हो रही हैं और उन्हें लगेगा कि 'रक्षाबंधन' ऐसे ही छुप-छुपकर मनाया जाता है। यह तो मैं गलत कर रही हूं। मुझे इसका कुछ करना चाहिए। फिर एक रक्षाबंधन के दिन मैंने हिम्मत की और अपनी बेटियों के साथ राखी-थाल लेकर सबके सामने गयी और बिना किसी से कुछ कहे मैंने अपनी बेटियों से कहा कि रक्षाबंधन, ये वो बंधन है जिसे आप दोनों ताउम्र निभाओगी। एक दूसरे का ध्यान रखना, एक दूसरे के लिए हमेशा खड़े रहना और कभी यह मत सोचना कि राखी बांधने के लिए कमजोर कलाई नहीं, भाई की मजबूत कलाई चाहिए होती है। तुम एक दूसरे की बहन और भाई दोनों हो’, अमिता ने अपनी बेटियों को विस्तार से सब समझाया।
गौरतलब है कि अमिता खुद मानती हैं कि वह जिस तरह की महिला रही हैं और जिस तरह वह इतने सालों से घर वालों की हर बात पर हामी भरते आ रही थी, उनके लिए यह एक बड़ा कदम था। अमिता ने घर वालों की बड़ी होती आंखों को नजरअंदाज किया और हमें बताया, ‘’इस समय मैं बस अपनी दोनों बेटियों साक्षी और राम्या को एक दूसरे के हाथ में राखी बांधते हुए देख रही थीं। बेटियां भी शायद यही सोच रही थी कि आज मम्मी को क्या हो गया है। इतने में मेरी बड़ी बेटी साक्षी ने एक राखी उठाई और मुझे बांधने के लिए आगे बढ़ी। उसने कहा, आप भी हमारी रक्षा करती हो मम्मी, एक राखी का बंधन आपको भी!’’
चार बहनें हैं एक दूसरे की जान
चार बहने हैं, बाप रे !! कैसे होंगी इनकी शादियां, कैसे सब कुछ मैनेज करेंगे, लोगों ने ये सवाल खूब पूछे हैं, रांची में रहने वाले एके सिन्हा से, जो सरकारी कर्मचारी रहे। लेकिन झारखण्ड के रांची शहर में रहने वाले एके सिन्हा ने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी चारों बेटियों को न सिर्फ खूब अच्छी तालीम दी, बल्कि सभी को खूब पढ़ाया और अपने पैरों पर खड़े रहने के लिए मुकम्मल भी बनाया। और नतीजन अदिति, मनाली, श्रुति और कृति इन चार बहनों ने आपस में ऐसी बॉन्डिंग की कि वे एक-दूसरे की दोस्त भी बनीं, हमराज भी और एक-दूसरे की सहारा भी कि उन्हें अपने बीच किसी भाई की कमी महसूस ही नहीं हुई और रक्षाबंधन के दिन वे आपस में ही एक दूसरे को राखी बांधती हैं और खुद सेलिब्रेट करती हैं। श्रुति और कृति तो जुड़वां बहनें हैं और अदिति और मनाली से छोटी हैं, इसलिए सबकी लाड़ली हैं। चारों ही बहनें, रक्षाबंधन के दिन को मिस नहीं करती हैं, एक दूसरे को राखी बांधती हैं, कृति अपनी बहनों की बॉन्डिंग के बारे में बताती हैं “ जब मैंने होश संभालना शुरू किया और दुनियादारी समझी, तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि पापा को सब ये क्यों कहते हैं कि अरे, इतनी सारी लड़कियां हैं, कैसे करेंगे, सिन्हा साहब, लेकिन पापा ने इसकी परवाह कभी नहीं की और हम चारों को खूब पढ़ाया, आज हम चारों अपने-अपने तरीके से काम कर रही हैं। मुझे तो मेरी बहनों ने कभी किसी और की कमी महसूस होने नहीं दी, मुझे इस सोच पर ही अब हंसी आती है कि लड़का होना जरूरी था, हम चारों की बॉन्डिंग ऐसी है कि इसमें किसी और की एंट्री की जरूरत नहीं है।
कृति कहती है, “ हम अपने कजिन्स भाइयों को भी राखी बांधती हैं, लेकिन हमारी अपनी राखी खास होती है, मेरी बहनें हैंड मेड राखी बनाती हैं, तो कभी कोई गिफ्ट्स भी देती हैं। मैं मेरी मां को भी इस बात का श्रेय देती हूं कि उन्होंने कभी हमारे मन में नहीं आने दिया कि भाई नहीं हैं, रक्षाबंधन के दिन हम चारों की पसंद का खाना बनता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि अच्छा है कि मैं एक प्रोग्रेसिव परिवार का हिस्सा बनीं, जहां मां और पापा ने हमें हर बात की आजादी दी, क्या गारंटी है कि भाई रहने पर हमें वह आजादी मिलती, मैं तो अपनी दोस्तों की कहानियां सुनती हूं कि उनके भाई उन पर बेवजह की पाबंदियां लगाते हैं, तो हम चारों तो ऐसे ही खुश हैं, दकियानूसी भाई होने से अच्छा है, न हो।
बहनों की बॉन्डिंग के बारे में कहती हैं, “ पहले तो रक्षाबंधन में मुझे तीनों बड़ी बहनों से खूब कमाई होती थी, अब तो हम दूर हैं, काम के सिलसिले में, लेकिन आज भी हम एक दूसरे को राखियां भेजना भूलती नहीं हैं। हम कोई भी निर्णय एक दूसरे के पूछे बगैर नहीं लेती हैं। और हम चारों की खास बात है कि हम एक दूसरे के साथ काफी एन्जॉय करती हैं। जहां तक बात है, पापा को हेल्प करने की, तो हम चारों उनके साथ खड़े हैं, मैं तो आज तक यह नहीं समझ पाई कि ऐसा क्या है, जो है हम चारों नहीं कर सकती हैं। हमें तो किसी भाई की जरूरत नहीं है, अपने पापा के लिए हम चारों, उनके चार स्तंभ हैं और हम आपस में भी एक दूसरे की खुशियों के स्तम्भ हैं। अदिति जहां एक बेंगलुरु स्थित फर्म के लिए काम करती है, कृति मेकअप के क्षेत्र से जुड़ी हैं, श्रुति आईटी फील्ड से जुड़ी हुई हैं, मनाली अकेडमिक्स में हैं। उनके पिता अब रिटायर हो चुके हैं, लेकिन सभी बेटियां, पापा को किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने देती हैं। आर्थिक रूप से भी सभी खड़ी रहती हैं।
वाकई, ये बहनें इस बात की मिसाल हैं कि रक्षाबंधन में खुशियां किसी जेंडर की मोहताज नहीं हैं। वे इस दिन को ही नहीं, बल्कि अपने जीवन के हर दिन को एक-दूसरे के साथ यूं ही सेलिब्रेट करेंगी।