नस्ल, रंग, आयु, लिंग, जाति, आर्थित स्थिति तथा शारीरिक स्थिति अनुसार भेदभाव के अलग-अलग स्वरूप हो सकते हैं, किंतु कई बार जब परिवार में अपने लोगों द्वारा भेदभाव की स्थिति आ जाती है, तो यह चिंता का विषय हो जाता है, लेकिन इससे परेशान होने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। आइए जानते हैं इससे कैसे उबरा जा सकता है।
भेदभाव के अलग-अलग स्वरूप
आम तौर पर दुनिया को समझने के लिए हमें सबसे पहला दृष्टिकोण मिलता है हमारे माता-पिता से, उसके बाद स्कूल के शिक्षकों से, उसके बाद आस-पास के लोगों से और अंत में अपने साथियों से। इन सबका मिला-जुला व्यवहार हमारे अनुभव का निर्माण करता है। और अपने उस अनुभव से हम दुनिया का आकलन करते हैं। अधिकतर परिवारों में भेदभाव की शुरुआत लड़का और लड़की से होती है। लिंग के आधार पर इस भेदभाव के तहत इस बात का फैसला किया जाता है कि लड़कियों को लड़कों के मुकाबले क्या मिलना चाहिए और क्या नहीं? जैसे शिक्षा, भोजन, आजादी और अन्य सहूलियतें। यही परिवार, समाज बनाते हैं और समाज से निर्मित होता है देश। लिंग के अलावा अधिकतर घरों में पढ़ाई के साथ शारीरिक और मानसिक कमी भी भेदभाव का आधार बनती हैं। ये हुईं बचपन की बातें। बड़े होने के बाद आपका आर्थिक पक्ष कितना मजबूत है, कई बार उसे लेकर भी परिवार के सदस्यों के बीच भेदभाव आ ही जाता है। ऐसे में परिवार को चाहिए कि इस भेदभाव को खत्म करें और कभी भी बच्चों में किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं कर, सबको समान प्यार दें।
अनजाने में माता-पिता बोते हैं भेदभाव का बीज?
ऐसा नहीं है कि माता-पिता ऐसा जान-बूझकर करते हैं। ये मानव प्रवृत्ति है कि हमारा मन-मस्तिष्क बेहतर की तरफ ही भागता है। सो कई बार न चाहते हुए भी अनजाने में ही माता-पिता अपने बच्चों के बीच भेदभाव का बीज बो देते हैं। हालांकि कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चे किसी छोटी-सी बात को अपने मन में लेकर, उसे इतना बड़ा बना देते हैं कि उनके दिमाग में ये बात घर कर जाती है कि उनके साथ उनके ही परिवार में भेदभाव किया जा रहा है। बच्चों के बाल मन पर इसका इतना गहरा प्रभाव पड़ता है कि पूरी जिंदगी वे इसे ही सच मान लेते हैं। ऐसे में अपने परिवार के अलावा वे जहां कहीं जाते हैं, उन्हें यही लगता है कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। इस स्थिति में उनके दिमाग में नेगेटिव चीजें आती हैं, लेकिन आपको जरूरी है कि अपने बच्चे को समझाएं कि वे जैसा समझ रहे हैं ऐसा नहीं है, भौतिक चीजों से ज्यादा इमोशनल चीजों पर गौर करें और उन्हें समझाएं।
भेदभाव से उपजी समस्याएं
अक्सर एक ही परिवार में दो बहनों के बीच, दो भाइयों के बीच या भाई-बहन के बीच ये भेदभाव की लकीर इतनी गहरी हो जाती है कि वे अपने परिवार को अपना दुश्मन मान लेते हैं और बाहर खुशियां तलाशने लगते हैं। सिर्फ यही नहीं इससे कई बार भेदभाव का अनुभव करनेवाला इंसान गहरी उदासी, तनाव, अवसाद, गुस्सा और नकारात्मकता का शिकार हो जाता है, जो हर समय उसके व्यवहार से झलकता है। इससे छुटकारा पाने के लिए अक्सर लोग नशीली चीजों या दवाइयों के जाल में फंस जाते हैं और वही होता है, जो नहीं होना चाहिए। अपने परिवार के प्रति ये उदासीनता उन्हें पूरी दुनिया से दूर ले जाती है और खुशियों की तलाश में मन भटकता रह जाता है। इसलिए हमेशा अपने बच्चे के मन को समझिए और उनसे बातचीत कीजिए, उन पर नजर रखिए कि वे किस तरह की चीजों या गतिविधियों में जा रहे हैं और किस चीज का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कुछ भी हो जाए, बातचीत बंद मत कीजिए
सिर्फ भेदभाव का रोना रोकर आप अपने परिवार में ही नहीं, कहीं भी सम्मान नहीं पा सकती। अगर आपको लगता है कि आपके साथ किसी तरह का कोई भेदभाव हो रहा है, तो सबसे पहले घर के बड़ों से इस विषय में खुलकर बात कीजिए। अपनी समस्याओं के साथ अपने पूर्वाग्रह और अपना डर भी उन्हें बताइए। इसके अलावा आप उन्हें इतिहास भी बता सकते हैं कि आपको ऐसा कब से और क्यों लग रहा है। याद रखिए परिवार हमारे व्यक्तित्व निर्माण की नींव होती है, जहां हमारा भविष्य आकार लेता है। ऐसे में परिवार के प्रति आपकी निष्ठा और आपके प्रति उनकी निष्ठा सबसे पहली और जरूरी चीज है। अपने परिवार के बड़ों के अलावा, आपको अपने बहन-भाइयों से भी बात करनी चाहिए। याद रखिए रिश्ता चाहे कोई भी हो, बातचीत बंद नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यही रिश्तों की पहली और आखिरी सीढ़ी होती है। स्वस्थ बातचीत से बड़े से बड़े मसले आसानी से हल किए जा सकते हैं, फिर ये तो आपका परिवार है।
अपनी ताकत पहचानिए
अपनी समस्याओं के साथ अपना आकलन करते हुए आप ये भी देखिए कि जो आप सोच रही हैं, क्या ये सच है? कई बार हमारा मन वो भी सोच लेता है, जो वास्तविकता में होता ही नहीं। ऐसे में परिवार से दूरी बढ़ाने की बजाय अपने पर काम कीजिए। यदि सचमुच आपके परिवार में आपसे भेदभाव का रवैया अपनाया जा भी रहा है, तो उनसे नाराज होने की बजाय अपनी ताकत पहचानिए। उन पर विश्वास करते हुए अपने पूर्वाग्रहों और नकारात्मक विचारों को विराम दीजिए। ध्यान रखिए, जो खुद पर नियंत्रण पा सकता है, वो दुनिया की हर चुनौतियों को अपने काबू में कर सकता है। यदि आपसे नहीं हो रहा हो, तो आप किसी ऐसी संस्था या विशेषज्ञ की भी मदद ले सकती हैं, जो आपको, आपकी नकारात्मकता से पीछा छुड़ाने में मदद करे।
खुद पर संदेह मत कीजिए
कई बार ऐसा भी होता है कि आप अपने अनुभवों, अपनों सोच को खुद में इतना कैद कर लेती हैं कि धीरे-धीरे वो आपके अस्तित्व को ही खाने लगता है। कहीं मैं ओवर इमोशनल तो नहीं हो ? कहीं मैं ज्यादा तो नहीं सोच रही? अगर मैं इन्हें अपनी समस्याएं बताऊंगी, तो ये मेरे बारे में क्या सोचेंगे? इस तरह के कई सवाल हैं, जो न चाहते हुए भी हमारे मन में आकर हमें खुद पर संदेह करने के लिए विवश करने लगते हैं। यदि आप अपने परिवार, दोस्त या सहकर्मियों से इस विषय में बात नहीं करना चाहती, तो ऑनलाइन या ऑफलाइन ऐसे लोगों से मिलिए, जिनका अनुभव आपकी तरह हो। यकीन मानिए उनसे बात करके भी आप अपने कई प्रश्नों के उत्तर जान सकती हैं। इसके अलावा आप किसी हीलिंग सेंटर या योग का सहारा भी ले सकती हैं। राह कई हैं, आप कदम तो बढ़ाइए।