इन दिनों संवेदनाओं के जगह सेल्फ़ी ने ली है. अधिकतर लोग कहीं घूमने सिर्फ़ इसलिए जाना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इंस्टाग्राम पर उन्हें फ़ोटोज़ अपलोड करना है. हैशटैग के साथ वाली ये ज़िंदगी, इमोशन से बेहद दूर ले जा रही है. खाने की टेबल पर पूरे परिवार के साथ बैठ कर अब स्वाद की चर्चा कम, सेल्फ़ी की चर्चाएं अधिक होती हैं. आपके मुंह में कोई स्वाद बाद में पहुंचता है, सोशल मीडिया की प्लेट में वे तस्वीरें पहले पहुंच जाती हैं. हाल ही में अमिताभ बच्चन ने भी दीवाली के उत्सव पर लिखा कि पूरा परिवार एक साथ एक कमरे में फ़ोन पर व्यस्त रहा.
दरअसल, हक़ीक़त यही है कि वर्तमान दौर डिजिटल दुनिया की गिरफ़्त में इस क़दर आ चुकी है कि हम अब प्यार, रिश्ते, बॉन्डिंग, गपशप, कहीं ट्रैवल पर जाना भी बिना हैशटैग के नहीं करते हैं. यह भी सच है कि इन दिनों पूरी दुनिया ही हमारे मोबाइल पर सिमट गई है, लेकिन फिर भी 365 दिन में हम कुछ दिन तो डिजटल डिटॉक्स के लिए निकाल ही सकते हैं. जी हां, डिजिटल डिटॉक्स आपको फिर से तरोताज़ा करने में बहुत मदद करता है. चूंकि इन दिनों आप 24 घंटे सोशल मीडिया पर लाइव हैं, ऐसे में स्क्रॉलिंग और ट्रोलिंग भी साथ-साथ चलती रहती है. ज़ाहिर है कि आपके हर पोस्ट पर ढेर सारे लाइक और कमेंट्स तो नहीं मिलेंगे. ऐसे में कई बार आपका मूड ऑफ़ हो जाता है. इससे आप ऐंग्ज़ाइटी, डिप्रेशन व ऐसी कई बीमारियों के भी शिकार हो रहे हैं. इसलिए साल में छोटे-छोटे अंतराल पर ही सही, आपको डिजिटल डिटॉक्स ज़रूर लेना चाहिए. आइए जानें, डिजिटिल दुनिया से कुछ दिन की दूरी बनाने से आपकी ज़िंदगी में क्या-क्या बदलाव आएंगे.
डिजिटल डिटॉक्स क्या है
डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है कि कुछ निश्चित समय के लिए आप अपने तमाम डिजिटल गैजेट्स जैसे फ़ोन, कम्प्यूटर, सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म और यहां तक कि टीवी से भी दूरी बनाएं.
सोशल मीडिया से दूरी
डिजिटल डिटॉक्स को फ़ॉलो करने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है कि आप अपने फ़ोन नहीं, बल्कि अपने सारे सोशल मीडिया अकाउंट से दूरी बनाएं. कुछ दिन के लिए उनके बारे में सोचना बिल्कुल छोड़ दें. किसने आपकी किस तस्वीर पर क्या कहा होगा, क्या नहीं. इसको लेकर अपने ऐंग्ज़ाइटी लेवल को बढ़ाने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है. विश्वास करें, कुछ दिन में ही आप महसूस करेंगे कि आपके भीतर जो बेचैनी की प्रॉब्लम या कुछ भी जल्द से जल्द हासिल करने की चाहत थी या जो धैर्य में जो कमी आने लगी थी, आपने धीरे-धीरे उस पर क़ाबू पाना सीख लिया है.
कोई अच्छी सी किताब लें और महसूस करें, उसकी ख़ुशबू आपसे क्या कहती है. डिजिटल दुनिया ने सोशल लाइफ़ को नुक़सान तो पहुंचाया ही है, इसके साथ ही किताबों का हद से ज़्यादा डिजिटल विकल्प उपलब्ध कराने की वजह से भी, अब लोग किताबों को तक मोबाइल में ही पढ़ने लगे हैं. ऐसे में जो किताबों को पढ़ने का एक अपना मज़ा होता है, जिसमें काग़ज़ से आनेवाली महक भी शामिल है, अब ख़त्म-सा हो गया है. किताबें पढ़ने से आपको, पढ़ी हुईं चीज़ें लंबे समय तक याद भी रहती थीं. लेकिन अब हम मोबाइल की दुनिया पर इस क़दर निर्भर हो गए हैं कि किसी लेखक या साहित्यकार की कही बात को याद रखने की बजाय यही सोचते हैं कि चलो ज़रूरत पड़ने पर इंटनेट तो है ही. लेकिन यक़ीन मानिए, हाथ में किताब लेकर पढ़ने का एक अपना मज़ा है और इससे चीज़ें याद भी रहती हैं तो एक बार फिर से इस प्रैक्टिस को अपनाने की कोशिश करें.
ट्रैवलिंग में उस जगह का लुत्फ़ लें
इन दिनों आपका ट्रैवलिंग डेस्टिनेशन भी वही होता है, जिसके बारे में आपने सोशल मीडिया पर सबसे ज़्यादा रील्स देखे हों या किसी ब्लॉगर ने सलाह दी हो. आप भी उनकी तरह ही फ़ैशनेबल ड्रेसेस लेकर, उन्हीं स्पॉट्स पर जाते हैं, रील्स बनाते हैं, हज़ारों फ़ोटोज़ और सेल्फ़ीज़ लेकर लौट आते हैं. फिर फ़ैंसी कैप्शन लिख कर जब आप उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं तो लोग वाह-वाह करते नहीं थकते और आप हैश टैग करते नहीं थकते. ऐसे में आपको यह एहसास ही नहीं होता कि किसी पहाड़ी इलाके की सुबह की धूप में जो सुकून है, झरनों की आवाज़ में जो खनक है, रेगिस्तान की लोक गीतों की जो ख़ुशबू है, सागर किनारे चैन से दो पल बैठने में जो रूमानियत और रूहानियत है, वह कभी तस्वीरों में क़ैद हो ही नहीं सकती. इसलिए जब आप कोई भी ट्रैवल प्लान कर रहे हैं तो वहां जाकर सिर्फ़ कैमरे की दुनिया में ही लीन मत रहें. नई चीज़ों को देखें, एक्स्प्लोर करें. वहां होने को महसूस करें. अपने परिवार के साथ गए हैं तो वहां के स्पोर्ट्स का मज़ा लें, एक दूसरे के साथ नैचुरल ब्यूटी में खेलें, अपने जीवनसाथी या पार्टनर के साथ गए हैं तो उनके साथ कुछ नहीं बस सुकून के पलों को एन्जॉय करके देखें.
अपने बजट की वाट
इन दिनों युवाओं में एक नया बुख़ार यह भी आया है कि उन्हें वे कपड़े रिपीट करना तौहीन सा लगता है, जिसमें उन्होंने अपनी पिछली तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की थीं. ऐसे में वह हर छोटे से छोटे मौक़े या त्यौहार के लिए भी कुछ नई ड्रेसेस या ऐक्सेसरीज़ ख़रीदने में जुटे रहते हैं. ज़ाहिर है कि इससे आपका बजट तो बिगड़ेगा ही. इसलिए भी ज़रूरी है की इस मार्केट गिमिक से बचा जाए और डिजिटल डिटॉक्स किया जाए, इससे फ़िज़ूलख़र्ची बचेगी.
त्यौहार सबके साथ
अमूमन हमें शिकायत सी रहती है कि हमें एक दूसरे के लिए वक़्त नहीं मिलता. लेकिन उत्सव या किसी पर्व में ही सभी इकट्ठे होते हैं. बड़े बुज़ुर्गों के लिए तो अपने अनुजों से मिलने का यही मौक़ा होता है. ज़रा सोच कर देखिए, बचपन में आपको बेसन के लड्डू ख़ूब पसंद थे, इसलिए दादी ने पूरे दिन, किचन में खड़े होकर आपके लिए उसे शौक़ से बनाया. फिर जब आपके सामने परोसा तो आपने सबसे पहले हैशटैग करके तस्वीर इंस्टा पर शेयर कर दी, फिर उन लड्डुओं को तवज्जो भी नहीं दी. ज़ाहिर है दादी का दिल दुखेगा ही. इसलिए कोशिश करें कि कम से कम त्यौहार के दिन, आप किसी भी गैजेट को हाथ न लगाएं और घर के रीति रिवाज़ को फ़ॉलो करते हुए, घर के बुज़ुर्गों के साथ, समय बिताएं. ये कुछ पल तो आप उन्हें दे ही सकते हैं.
अपनी हॉबी एक्सप्लोर करें
क्या आपको याद है पिछली बार कब आपने अपनी हॉबी के लिए समय निकाला था? एक बार फिर से अपने अंदर के बच्चे को, लाइफ़ की टेंशन से दूर, आंखों को रिलैक्स करते हुए, अपनी हॉबी को फिर से एक्स्प्लोर करने दीजिए. हमारा यक़ीन मानिए, ये आपके लिए बूस्टर ड्रिंक से कम नहीं होगा.
अच्छी नींद
बिस्तर पर जाने के बाद, यही कोशिश करें कि आप अपने डिजिटल उपकरण अपने साथ न रखें, क्योंकि इससे भी आपकी नींद ख़राब होती है और इससे आपकी आंखों के नीचे काले घेरे आते हैं. साथ ही हॉर्मोन्स से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं. सो, सोते वक़्त तो हर दिन आपको डिजिटल डिटॉक्स की ज़रूरत है.
योग
डिजिटल डिटॉक्स के लिए मेडिटेशन और योग भी कारगर होते हैं. आप इन दो चीज़ों से ख़ुद पर कंट्रोल करने की शक्ति, जो आपके अंदर हैं, उसे नैचुरल तरीक़े से समझ पाते हैं. तो डिजिटल डिटॉक्स और मन की शांति के लिए मेडिटेशन और योग का भी सहारा लेना चाहिए.
कई सेलेब्स लेते हैं इसका सहारा
आमिर ख़ान अपनी फ़िल्मों की शूटिंग के दौरान डिजिटल दुनिया से पूरी तरह से दूरी बना लेते हैं. बराक ओबामा ज़रूरत भर ही फ़ोन का इस्तेमाल करते हैं. बाक़ी बचे समय में वह खाना बनाना पसंद करते हैं. सेलेना गोमेज जैसी सेलेब्रिटी दो-दो महीनों के लिए डिजिटल डिटॉक्स का सहारा लेती रही हैं.