कुछ यूं पहाड़ों से निकल कर अभिनय की दुनिया में रखा कदम
सुनीता रजवार बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही आर्मी में जाने का शौक रहा था, वह कहती हैं कि मैं छोटे से कस्बे से हूं, हल्द्वानी, उत्तराखंड से। बचपन मेरा सामान्य ही गुजरा , मेरे यहां रामलीला में जाते थे। मेरे पापा को फिल्में देखना हमेशा से शौक रहा, तो हम फिल्में देखने जाते थे, हर शुक्रवार को। लेकिन मैंने सोचा नहीं था कभी कि एक्टिंग में आऊंगी। मैंने सोचा था कि मैं होटल मैनेजमेंट या कोई और काम करूं, नॉर्मल नौकरी वाली इच्छा मेरी कभी नहीं रही। तो ऐसे ही मैं हर रिश्तेदार बुलाते थे, मेरे पेरेंट्स ने कभी मन किया, फिर जब मैं एमए करने के लिए नैनीताल गई थी, तो वहां जो थियेटर के स्तंभ माने जाते हैं, जहूर आलम, निर्मल पांडे, उनको कोई लड़कियां आर्टिस्ट चाहिए थी, मेरा नया-नया साल था, वहां मुझे लगा कि मैं यह कर सकती हूं, मुझे इसे करने में बहुत मजा आता था। यहां मुझे लगा कि मुझे मेरी जिंदगी का रास्ता मिल गया। पहले स्कूल के वक्त मैं केवल डांस में सेलेक्ट होती थी, प्ले करने का मौका नहीं मिलता था। शुरू में मुझे एकदम छोटा रोल मिला था, मैं पतली दुबली लड़की थी, मेरे साथ जो भी लड़कियां थीं, उन्हें रानी का रोल मिला था, मुझे दासी का रोल मिला था, लेकिन मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता था, मैं साढ़े तीन घंटे के प्ले भी आसानी से देख लेती थी। मुझे सबकुछ याद हो जाता था। हर डायलॉग, हर एक्शन, तो जब भी कोई नहीं आता था,तो मैं उसकी प्रॉक्सी करती थी। मेरी इस बात से निर्मल पांडे और जहूर दा खुश हुए, उन्होंने कहा कि मुझे यह करना चाहिए, पहले अटेम्प्ट में तो मेरा हुआ भी नहीं था, एनएसडी में। लेकिन दूसरी कोशिश में मैं कामयाब रही और मुझे एनएसडी से जुड़ने का मौका मिला।
और इत्तेफाक से मिला रानी का किरदार
सुनीता बताती हैं कि मुझे याद है वान्या जोशी उस वक़्त की टीवी आर्टिस्ट थीं, काफी फेमस आर्टिस्ट हैं, उन्हें रानी का रोल करना था। लेकिन वह किसी कारण से कर नहीं पाई थीं। और थियेटर फेस्टिवल में हमारा नाटक जाना था। जाहिर सी बात है कि उस वक़्त किसी का भी ख्याल आता नहीं था, क्योंकि रानी जैसी तो मैं दिखती नहीं थी। मेरी दासी की छवि थी, दूसरी लड़की बहुत खूबसूरत, तो उन्हें ट्राई किया जा रहा था, लेकिन हमारे पास एक हफ्ते का वक़्त था और किसी को भी याद नहीं हो रही थीं लाइने, तो दो दिन ट्राई करने के बाद, मुश्किलें हो रही थीं, उन्हें हारकर मुझे वह रोल देना पड़ा था। सुनीता का कहना है कि थियेटर में भी टाइपकास्ट किया जाता था, वहां भी फिजिकल कास्टिंग ही होती है, वह कहती हैं कि मुझे दुबली पतली थी ,तो दासी का रोल दिया जाता था उन्हें।
आसान नहीं थी राह
सुनीता कहती हैं कि मुझे परिवार का सपोर्ट था, जब मैं मुंबई आई थी, लेकिन मैं परिवार से पैसे नहीं लेती थी। इसलिए जो भी काम मिलते गए, मैंने किये। सो, मैंने लगातार काम किया, लेकिन जान पहचान वाले भी छोटे रोल ही देते थे। पहली बार ये रिश्ता क्या कहलाता है से मेरा नाम लोगों के सामने आया। दरअसल, इसके बावजूद डायरेक्टर मुझे लेकर रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, वह आपको एक ही तरह का रोल देना चाहते हैं। वह आगे कहती हैं कि मैंने 22 सालों से अब तक पिछले कुछ सालों तक सिर्फ मेड के ही रोल किये हैं, लोग मुझे वहीं देते थे, उसको मुनीम जी लड़की बोल देते थे, गर्वनेस बोल देते थे, घूमा-फिरा के वहीं रोल मिलता था, फिर मेरे साथ के जो को-स्टार्स रहे हैं, उन्होंने कहा कि मत करो छोटे काम। सुनीता कहती हैं कि मैंने ज्यादा नोटिस किया, आपका स्पॉट बॉय नहीं सुनता है, आर्टिस्ट बड़ा होगा, तो लोग उसको देखते हैं। यह बातें पहले तकलीफ देती थीं।
तीन बार दिया गुल्लक का ऑडिशन
सुनीता कहती हैं कि गुल्लक में भी उन्होंने तीन बार ऑडिशन दिया था, क्योंकि उनको ट्रस्ट नहीं था कि मैं कर पाऊंगी कि नहीं। यही वजह थी कि बीच में मैंने दो सालों के लिए एक्टिंग छोड़ दी थी, क्योंकि मुझे एक बार बहुत बुरा लगा था। सुनीता कहती हैं बाद में मैंने चंदन अरोड़ा को अस्टिस्ट किया था। फिर मशहूर डिजाइनर मसाबा को बतौर मैनेजर के रूप में भी ज्वाइन कर लिया था। सुनीता कहती हैं, वहां किसी तरह की बेइज्जती नहीं होती थी। बाद में फिर से उन्होंने 2015 में काम शुरू किया।
कास्टिंग का नजरिया बदलता है
सुनीता कहती हैं कि कास्टिंग को लेकर भी काफी कुछ होता है। वह अपना एक वाकया शेयर करती हैं, जिसमें उनका चयन हो चुका था, लेकिन बाद में उन्हें उनकी ही दोस्त, जो कि एक बड़ी अभिनेत्री हैं, उनसे उन्हें पता चला कि वह रोल उन्हें मिल गया है और उन्हें इस बात की खबर भी कास्टिंग वालों ने नहीं दी थी। तो सुनीता कहती हैं कि यह बातें उनके अभिनय जीवन में होती रही हैं, लेकिन उन्होंने खुद को कभी निराश या हताश नहीं होने दिया और आगे बढ़ने के बारे में सोचा। वर्ष 2000 से लेकर 2022 हो चुका है, लेकिन आज भी मैं ऑडिशन देती ही रहती हूं।
हर उम्र के लिए काम
सुनीता कहती हैं कि वह हर एक महिला जो एक्टिंग की फील्ड में आना चाहती हैं, उनसे यही कहना चाहती हैं कि कभी भी उम्र को बाधा नहीं बनाएं, हर उम्र के लिए आजकल किरदार लिखे जा रहे हैं। साथ ही किसी और की नकल न करें, आप अपना क्या बेस्ट दे सकती हैं, इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए।