‘गर फिरदौस बर रुये जमी अस्त, हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्त’ यानी कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। कश्मीर की खूबसूरती को आँखों में भरकर, उसे तराशते हुए प्रख्यात सूफी कवि अमीर खुसरो ने ये पंक्तियां कही थीं। आइए जानते हैं जम्मू-कश्मीर की कुछ विशेषताएं।
जम्मू-कश्मीर के केसर के क्या कहने
सफेद बर्फीली पहाड़ियों के साथ कलकल करती डल झील और मन मोहती ऊंची चोटियां, जम्मू-कश्मीर की प्राकृतिक संपदा है, जिसे आप चाहे जितना देखें, मन नहीं भरता। कश्यप ऋषि के नाम पर रखे गए कश्मीर की खूबसूरती वाकई धरती पर स्वर्ग के समान है। यही वजह है कि दुनिया भर से लोग कश्मीर की बर्फीली वादियों की खूबसूरती निहारने आते रहते हैं। संपन्न राज्य कश्मीर, कला के साथ विभिन्न खाद्य पदार्थों और व्यंजनों का बेहतरीन संगम हैं। फिर चाहे कश्मीर के मीठे, रसीले सेब हों या पौष्टिकता से भरपूर बादाम और अखरोट हों। स्ट्रॉबेरी, आलूबुखारा और खुबानी के तो कहने ही क्या, लेकिन इन खाद्य पदार्थों में जिसकी चर्चा पूरे विश्व में होती है, वो है केसर। दुनिया के सिर्फ तीन जगहों में से एक कश्मीर, भारत का एकमात्र राज्य है, जहां केसर उगाया जाता है। गौरतलब है कि पूरे कश्मीर में भी सिर्फ दो शहर हैं, जहां केसर उगता है। उनमें से एक है कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 13 किलोमीटर दूर छोटा सा शहर पामपुर और दूसरा है किश्तवाड़। शरद ऋतु में खिलनेवाला केसर का फूल एक अनोखी मीठी महक लिए होता है। इन फूलों के रेशों को केसर कहा जाता है, जिसका उपयोग विशेष रूप से रंगाई या खाना पकाने में किया जाता है। बैंगनी रंग के फूलों में केसरी रंग लिए केसर के रेशे बाजार में बहुत महंगे बिकते हैं। हालांकि कश्मीर में केसर से बनी पारंपरिक चाय यानि कहवा बड़े शान से पी जाती है। सिर्फ यही नहीं केसर का उपयोग वहां विभिन्न व्यंजनों में भी किया जाता है।
ड्रायफ्रूट भी हैं दमदार
ड्रायफ्रूट की पैदावार भी कश्मीर में काफी होती है, जिनमें बादाम और अखरोट प्रमुख है। शरीर और मन के लिए प्रभावशाली ड्रायफ्रूट की पहचान रखनेवाले बादाम का प्रयोग, यहां खाने के साथ-साथ तेल निकालने के लिए किया जाता है। पौष्टिकता और औषधीय गुणों से भरपूर बादाम का तेल सौंदर्य प्रसाधनों के साथ खाद्य पदार्थों के लिए किया जाता है। इसके अलावा ओमेगा-3 फैटी एसिड का प्रमुख श्रोत कहे जानेवाला शाही और स्वादिष्ट अखरोट, आम तौर पर पूरे साल मिलता है, लेकिन इसकी कटाई मूल रूप से दिसंबर महीने में की जाती है। स्वाद और पौष्टिकता से भरपूर अखरोट का इस्तेमाल भी यहां भोजन में किया जाता है।
लाल, मीठे, रसीले फल हैं बेजोड़
लाल-लाल, मीठे, रसीले और स्वाद में बेजोड़ कश्मीरी सेब का पूरी दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है। अक्टूबर महीने में पकनेवाले सेब की यह भी विशेषता है कि इसे लंबे समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है। इसके अलावा कश्मीर में पाई जानेवाले आलूबुखारे के भी क्या कहने। बेर की किस्म का यह फल प्लम के नाम से दुनियाभर में विख्यात है। सेब की तरह यह भी लाल, मीठा, सुगंधित और बेहद रसीला होता है, जिसे अपनी सुविधानुसार सुखाकर रख दिया जाता है। सूखे प्लम को प्रून भी कहते हैं। सर्दियों के इन फलों के मुकाबले स्ट्रॉबेरी अप्रैल में मिलनेवाला साल का पहला फल माना जाता है, जो विशेष रूप से जम्मू के उष्णकटिबंधीय इलाकों में उगाया जाता है। इस फल की विशेषता यह है कि यह न सिर्फ आसानी से पक जाता है, बल्कि पौधा लगाने के दूसरे वर्ष से ही फल देना शुरू कर देता है। गौरतलब है कि पूरी दुनिया में स्ट्रॉबेरी की 2000 से अधिक किस्में पाई जाती हैं। स्ट्रॉबेरी के बाद जून महीने में तैयार होती है खुबानी, जिसे किशमिश की तरह सुखाकर भी खाया जाता है।
कश्मीरी कालीन और शॉल की है भारी मांग
फलों और सूखे मेवों के अलावा अपनी खूबसूरत कलाकृतियों के लिए भी जम्मू-कश्मीर बेहद प्रसिद्ध है। दुनिया भर में मशहूर पश्मीना शॉल और कश्मीरी शॉल के साथ कश्मीरी कालीन की भी दुनियाभर में काफी मांग है। अपनी जटिल और नाजुक कारीगरी के लिए प्रसिद्ध कश्मीरी कालीन काफी महंगे होते हैं और इसकी वजह है उनका हाथों से बना होना। कश्मीरी कालीन बनाने में रेशम, ऊनी-रेशम या ऊन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा हुक कढ़ाई का इस्तेमाल कर बनाया जानेवाला कश्मीरी शॉल, सोजनी या सुई से एक अनुभवी कारीगर द्वारा बनाया जाता है। प्रसिद्ध फूलों के डिजाइन से बने इस शॉल में बड़ी बारीकी से हाथों का काम होता है। विशेष रूप से कश्मीरी शॉल ऊन, पश्मीना और सबसे महंगे शाहतूश से बनते हैं, जिनमें पश्मीना शॉल दुनियाभर में प्रसिद्ध है। गौरतलब है कि अपनी कोमलता के लिए जाना जानेवाला पश्मीना धागा, समुद्र तल से 14,000 फीट ऊपर पाए जानेवाले आइबेक्स के बालों से बुना जाता है, इसलिए यह काफी महंगा होता है। हालांकि कश्मीर के बाजारों में ऊन के साथ पश्मीना को मिलाकर बनाए शॉल भी बहुतायत मिलते हैं, जो ओरिजिनल पश्मीना शॉल के मुकाबले कम महंगे होते हैं। हालांकि पश्मीना से भी महंगे शाहतूश से बने प्रसिद्ध रिंग शॉल अपनी कोमलता के साथ हल्केपन और गर्माहट के लिए काफी प्रसिद्ध है, लेकिन अब इन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया है क्योंकि शाहतूश, तिब्बती मृग चिरु के गले के बालों से बनाये जाते हैं।
कश्मीरी रेशम है दुनिया का सर्वश्रेष्ठ रेशम
जम्मू-कश्मीर में पाए जानेवाले रेशमी कपड़ों का भी अपना सौंदर्य है। चिनॉन और क्रेप डी चाइना के नाम से मशहूर बुनाई, रेशम के धागे से बननेवाली बेहतरीन बुनाई है। हालांकि अब रेशम उद्योग की देख-रेख जम्मू-कश्मीर की केंद्रशासित सरकार करती है, जिसके कारण उन्हें कच्चा माल बहुत कम मिलता है। यही वजह है कि अब रेशम की बुनाई का काम जम्मू-कश्मीर में अधिक नहीं होता, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि कश्मीर के रेशम का पूरी दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है। यहां पाए जानेवाले शहतूत के कोकून एशिया में सबसे अच्छी गुणवत्ता के होते हैं, यही वजह है कि इससे प्राप्त होनेवाले रेशम की तुलना दुनिया के सबसे बेहतरीन रेशम से की जाती है।
लकड़ी की नक्काशी के साथ कागजी नकाशी भी है खास
रेशम के साथ लकड़ी की नक्काशी, जम्मू-कश्मीर की सबसे लोकप्रिय वस्तु है। कश्मीरी घरों की छतों, दरवाजों, दीवारों और खिड़कियों के अलावा अलमारियों, कुर्सियों, मेजों, आभूषण बक्सों और सजावटी ताबूतों पर आप लकड़ी की खूबसूरत नक्काशी देख सकती हैं। चिनार और बेल के पत्तों के साथ कमल और गुलाब के फूल उनके लोकप्रिय डिजाइन हैं। हालांकि घरों के साथ फर्नीचर में भी इस्तेमाल होनेवाली यह नक्काशियां जितनी कलात्मक होती हैं, उतनी ही महंगी भी होती हैं। गौरतलब है कि लकड़ी की नक्काशियों के अलावा यहां पेपर माचे यानी कागज की कलाकृतियां भी बनाई जाती हैं। पेपर माचे के तीन प्रकार हैं, जो मुख्यत: लकड़ी, कार्डबोर्ड और कागज के बनते हैं। इनमें कागज सस्ता विकल्प है, जिसके लिए कागज को पानी में तब तक भिगोकर रखा जाता है, जब तक वह टूट न जाए। फिर इसे कुचलकर गोंद के घोल के साथ मिलाया जाता है और सांचों से आकार दिया जाता है। सूखने के बाद जब वे सेट हो जाते हैं, तो उन पर चमकीले रंगों से डिजाइन बनाई जाती है।
जम्मू-कश्मीर के व्यंजनों की बात ही निराली
जम्मू-कश्मीर के व्यंजनों की भी बात निराली है। ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया की पाक शैलियों से प्रभावित कश्मीर का व्यंजन सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोकप्रिय है। सुगंधित मसालों के साथ जायकेदार वजहवान अर्थात पुलाव वहां की विशेषता है। तम्बाखमाज, रोगन जोश, रिस्ता, आबघोष, धानीवाल कोरमा, मार्चिगन कोरमा और गुश्तबा के साथ जर्दा पुलाव वहां का विशेष व्यंजन है। घी और दूध के साथ ढेर सारा ड्रायफ्रूट डालकर पकाए गए जर्दा पुलाव यानी मीठे चावल का नाम ही मुंह में पानी लाने के लिए काफी है। मीठे चावल के अलावा वहां अलग-अलग प्रकार के चावल बनाए जाते हैं, क्योंकि चावल उनका मुख्य भोजन है। चावल के साथ केसर, ड्रायफ्रूट और कमल की जड़ का इस्तेमाल भी कई व्यंजनों में किया जाता है। इसके अलावा मोरेल मशरूम, जिसे स्थानीय लोग गुची कहते हैं, भी एक खास खाद्य सामग्री है। इसका उपयोग सिर्फ त्यौहारों में किया जाता है। खुशबूदार मसालों के साथ प्याज और मिर्च का उपयोग करके बनाया जानेवाला ‘मसाला केक’ कश्मीर का एक स्वादिष्ट व्यंजन है। हालांकि इन व्यंजनों की समाप्ति होती है मीठे व्यंजन ‘फिरनी’ और खुशबूदार कहवा चाय से, जो ताजगी से भरपूर होती है।