भारत संस्कृति और सभ्यता से सजाया हुआ देश है। ऐसे में इस देश की हर भाषा अपने आप में भारत की गरिमा को प्रस्तुत करती है, लेकिन विश्व स्तर पर सबसे भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत की गरिमा सर्वोपरि है। देश के कई पुराण से लेकर कहानियों तक में संस्कृत भाषा समाहित है। 31 अगस्त विश्व संस्कृत दिवस के मौके पर देश में संस्कृत के बढ़ते हुए महत्व और महिलाओं ने कैसे संस्कृत भाषा की उपयोगिता को बढ़ाया है, इस पर जरूर बात होनी चाहिए, लेकिन उससे पहले यह जानते हैं कि विश्व संस्कृत दिवस का इतिहास क्या है।
क्यों मनाया जाता है विश्व संस्कृत दिवस
हमारे देश के कई सारे ऐसे ऐतिहासिक ग्रंथ है जो कि संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। कई सारे पुराणों से लेकर कई सारे धार्मिंक ग्रंथों को भी संस्कृत भाषा से संजोया गया है, इसके बाद भी संस्कृत भाषा का प्रयोग विश्व में कम हो गया है। इसका प्रचार और प्रसार भी अधिक नहीं हो पा रहा है। इसी वजह से संस्कृत भाषा के महत्व को बढ़ाने और उसकी अहमियत को समझाने के लिए विश्व संस्कृत दिवस मनाया जाता है। विश्व संस्कृत दिवस को सबसे पहले साल 1969 में मनाया गया था। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने राज्य और केंद्र सरकार को इस बारे में जानकारी दी थी। कई ऐसे सरकारी कार्यालय और विद्यालय हैं, जहां पर विश्व संस्कृत दिवस के मौके पर संस्कृत भाषा में कविता, कहानियों का पाठ किया जाता है। कई सारी बैठकें आयोजित की जाती है, जो कि संस्कृत भाषा की विशेष बनाती है।
संस्कृत का प्रमुख ग्रंथ
विश्व संस्कृत दिवस के मौके पर यह भी जानना जरूरी है कि संस्कृत का प्रमुख ग्रंथ ऋग्वेदसंहिता है। यह संस्कृत के साथ पूरी ग्रंथ राशि में सबसे प्राचीन ग्रंथ माना गया है। महर्षि पाणिनि को संस्कृत के जनक बोला जाता है। उन्होंने ही संस्कृत भाषा का व्याकरण लिखा। इसके बाद ही दुनिया की कई सारी भाषाओं में व्याकरण की भूमिका शामिल की गयीं ।
पंडिता रमाबाई सरस्वती : संस्कृत भाषा की ज्ञानी
पंडिता रमाबाई सरस्वती ने एक तरफ जहां भारतीय महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किया, तो वहीं कलकत्ता विश्वविद्यालय ने संस्कृत कार्यों में उनकी समझ को मान्यता देते हुए उन्हें साल 1879 के करीब पंडिता और सरस्वती की उपाधि दी। रमा बाई की खूबी यह थी कि उन्हें दुनिया से मुलाकात करने का शौक था। इसी वजह से वे अधिक यात्रा करती थीं। केवल 22 साल की उम्र तक पहुंचने के साथ ही उन्होंने संस्कृत का प्रकांड विद्वान खुद को बना लिया था। संस्कृत के अलावा उन्होंने मराठी, बांग्ला और कन्नड़ के साथ अन्य भाषाओं से भी खुद को शिक्षित किया।
डॉक्टर कुमुद पावडे- संस्कृत भाषा की महिला महारथी
85 साल की डॉक्टर कुमुद पावडे भी संस्कृत भाषा की जानकार रहीं। उन्हें संस्कृत भाषा में माहिर प्रकांड पंडित माना जाता था। वह एक लोकप्रिय लेखक रहने के साथ नैशनल फेडरेशन ऑफ दलित वूमैन संघटना की संस्थापक भी रह चुकी हैं। नागपुर विद्यापीठ त्यांना संस्कृत पंडिता की पदवी का सम्मान दिया गया। डॉक्टर कुमुद ने दलित महिलाओं के उत्थान के लिए कई सारे कार्य किए और इसी साल उनका निधन हो गया।
पंडिता क्षमा राव : सबसे बड़ी जानकार
संस्कृत साहित्य में नूतन विधाओं की सबसे बड़ी जानकार पंडिता क्षमा राव रही हैं। वे संस्कृत की महान कवि रही हैं। महात्मा गांधी के सत्याग्रह से प्रभावित होकर उन्होंने एक काव्य की रचना की जिसका प्रकाशन पेरिस में साल 1932 में किया गया था। जान लें कि केवल 10 साल की उम्र में वे संस्कृत में कविता और कहानियां लिखा करती थीं। संस्कृत में उन्होंने चुनिंदा नारी प्रधान रचनाएं लिखी हैं। ‘मीरा लहरी’ और ‘वीरभा’ उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। मीरा लहरी में उन्होंने मीरा के जीवन पर चर्चा की है, वहीं वीरभा में उन्होंने गांधी जी के आंदोलन पर विस्तार से लेखनी की है।
मध्य प्रदेश के इस गांव की भाषा संस्कृत
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में एक ऐसा गांव हैं, जहां पर लोग अपने रोजाना बातचीत की गतिविधियों के लिए संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते हैं। इस गांव की दीवारों पर भी संस्कृत में लिखे श्लोक दिखाई देंगे। यहां तक कि घरों के नाम भी संस्कृत में लिखे गए हैं। यहां के एक गांव का नाम संस्कृत गांव के नाम से जाना जाता है। इस गांव के बच्चे से लेकर बड़े तक सभी लोग संस्कृत भाषा बोलने में माहिर हैं। बता दें कि संस्कृत भाषा में माहिर विमला पन्ना और बाला प्रसाद तिवारी ने साल 2004 में झिरी गांव में संस्कृत पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद इस गांव में संस्कृत भाषा का प्रसार हुआ और लोग बोलचाल के लिए भी इस भाषा का उपयोग करने लगे।
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