महिलाएं बीते कई दशक से समानता की लड़ाई लड़ती हुई आयी हैं। दुनिया में महिलाओं को कई बार खुद को बराबरी पर खड़ा करने के लिए कई मुश्किल हालातों से गुजरना पड़ा है। ऐसा ही एक समय अमेरिका में आया, जब महिलाओं को अमेरिका में वोट देने का अधिकार नहीं था। ऐसे में 50 सालों तक चली लड़ाई के बाद अमेरिका में महिलाओं को 26 अगस्त 1930 के दिन वोटिंग करने का अधिकार मिला। इसी दिन को याद करते हुए हर साल अमेरिका से लेकर पूरे विश्व में समानता दिवस मनाया जाता है। दरअसल, अपना बराबरी का सम्मान हासिल करने के लिए,अमेरिका के साथ भारत में भी महिलाओं ने खुद के जीवन के बदलाव से जुड़े कई सारे बदलावों के लिए संघर्ष किया है, जहां पर बाल विवाह, सती प्रथा से लेकर मतदान और समान वेतन के अधिकर तक के लिए महिलाओं ने समाज के सामने अपना पक्ष पूरी शालीनता और आत्मविश्वास के साथ पेश किया है। आइए विस्तार से जानते हैं उन महिलाओं के बारे में, जो कि महिला समानता की बड़ी मिसाल हैं।
सोफिया दलीप सिंह
भारत की इस राजकुमारी ने विदेश में जाकर महिलाओं की समानता के लिए लड़ाई लढ़ी थी। पंजबा के शाही परिवार महाराजा रंजीत सिंह की पोती सोफिया दलीप सिंह का भारत की आजादी में भी योगदान रहा है। वर्ष 1910 में महिलाओं के लिए मताधिकार की मांग करने वाले मंडल का वह हिस्सा थीं। इसमें लगभग 300 महिलाएं शामिल थीं। उन्होंने ब्लैक फ्राइडे नाम के अभियान में हिस्सा लिया था। विदेश की धरती पर रहकर उन्होंने देश की शान बढ़ाया। वर्ष 1907 में भारत की यात्रा के समय उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से भी मुलाकात की थी।
सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले भारत की ऐसी पहली महिला रही हैं, जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए लड़ाई लड़ी है। वह भारत की पहली महिला शिक्षिका भी हैं। महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए उन्होंने शिक्षा को सबसे अहम स्थान दिया। शिक्षित महिलाओं को लेकर अपवी क्रांतिकारी विचारधारा को भी पेश किया। महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं था। खुद पढ़ाई को लेकर सावित्रीबाई फुले को समाज के तानों के साथ स्कूल जाते वक्त पत्थरों की मार का भी सामना करना पड़ा था। कई सालों के संघर्ष के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करके साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में भारत की पहली बालिका स्कूल की भी शुरुआत की।
सरोजिनी नायडू
भारत की आजादी से लेकर महिला सशक्तिकरण के लिए सरोजिनी नायडू ने कई सारे कार्य किए हैं। साल 1928 में गांधीजी से अहिंसा आंदोलन का संदेश लेकर अमेरिका पहुंची थीं। साथ ही उन्होंने महिलाओं के खिलाफ समाज की कई रुढ़िवादी विचारधाराओं को भी बदलने का प्रयास किया है।
वकील स्नेहा
जाति और धर्म की असमानता समाज के लिए हमेशा से बड़ा विषय रहा है। तमिलनाडु के वल्लौर की महिला वकील स्नेहा ने धर्म और जाति से जरूरी इंसानियत को समझा। यह उदाहरण पेश किया कि कैसे इंसानियत का भाव की समानता समाज में आनी जरूरी है। तकरीबन 9 साल के संघर्ष के बाद उन्हें नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट मिला। इस सर्टिफिकेट को पाने वाली वह पहली महिला बनीं। फिलहाल उनकी पहचान इंसान होने की है, इसलिए वह अपने नाम के साथ किसी धर्म या जाति को बतौर सरनेम नहीं जोड़ती हैं।
कल्पना चावला
अंतरिक्ष पर जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला कल्पना चावला बनीं। उन्होंने अंतरिक्ष तक का सफर तय कर समानता का यह संदेश दिया है कि महिलाएं अंतरिक्ष तक पहुंचने में पूरी तरह से काबिल हैं। केवल जरूरत है, तो हौसले और आत्मविश्वास की उड़ान की।
किरण बेदी
किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने वाली प्रथम महिला अधिकारी हैं। उनका पूरा जीवन ही देश सेवा को समर्पित रहा है, जहां पहले यह सोच थी कि कोई महिला कैसे पुलिस में नौकरी कर सकती है, इस सवाल का मुंहतोड़ जवाब बनकर किरण बेदी सामने आयीं। उन्होंने यह साबित किया कि पुरुषों के समान महिलाएं भी शारीरिक और मानसिक तौर पर पुलिस के तौर पर अपराध के विरुद्ध खड़ी हो सकती हैं। यही वजह है कि वह देश की सबसे लोकप्रिय पुलिस अधिकारियों में से एक हैं।
लक्ष्मी अग्रवाल
एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल ने उन महिलाओं के लिए समानता का बड़ा उहादरण पेश किया है, जिन्हें किसी भयंकर दुर्घटना के बाद समाज द्वारा नहीं अपनाया जाता है। साल 2005 में शादी से इंकार करने के कारण एक व्यक्ति ने उन पर एसिड फेंक दिया था। उनका पूरा चेहरा इससे बिगड़ा, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में जज्बे का संतुलन नहीं बिगाड़ा। लक्ष्मी का कहना था कि इस घटना के बाद समाज ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया, लेकिन अपने हौसले के दम पर वह नौकरी भी कर रही हैं और साथ ही उन महिलाओं के लिए भी कार्य कर रही हैं, जो कि एसिड अटैक का शिकार हुई हैं।
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