घर का काम हो या फिर कुश्ती महिलाएं किसी भी मामले में किसी से पीछे नहीं हैं। इसी का एक बड़ा उदाहरण सामने आया है उत्तर प्रदेश से, जहां उत्तर प्रदेश की महिलाएं साड़ी में कुश्ती करते हुए अपने हुनर से लोगों को परिचय करवा रही हैं। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में साड़ी पहनकर महिलाएं दंगल करती हुई दिखाई दे रही है। हमीरपुर गांव के लिए यह नई बात नहीं है, बल्कि इस गांव की एक परंपरा है, जो कि सालों से चली आ रही है। यहां की महिलाएं हर साल दंगल प्रतियोगिता का हिस्सा बनती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
हमीरपुर की महिलाओं का कमाल
हमीरपुर के बिवाह थाना क्षेत्र के लोदीपुर निवादा गांव की महिलाएं कुश्ती करने में माहिर हैं। इसका नायाब नजारा तब देखने को मिलता है, जब यह सारी महिलाएं दंगल प्रतियोगिता के समय साड़ी पहनकर एक-दूसरे के साथ दंगल करती हुई नजर आती हैं। सबसे दिलचस्प यह होता है कि इस दंगल प्रतियोगिता में बुजुर्ग महिलाएं भी अपना दांव-पेंच दिखाती हैं, जिसे देखकर हर कोई उनकी हिम्मत और बहादुरी की वाहवाही करने लगता है।
इस वजह से शुरू हुआ दंगल
हमीरपुर गांव में दंगल की परंपरा शुरू होने के पीछे एक सबसे बड़ी वजह अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। अंग्रेजी फौजों के समय के दौरान अपनी आत्मरक्षा और सुरक्षा के लिए उस वक्त गांव की महिलाएं दंगल के दांव पेंच सीखे थे, ताकि वह किसी भी विकट हालातों में खुद की रक्षा के लिए किसी अन्य पर अधीन न रह सकें। इसी परंपरा को आज भी यहां की गांव की महिलाएं निभाते हुए आ रही हैं। यही वजह है कि इस गांव की हर उम्र की महिलाएं दंगल बचपन से ही सीखने की शुरुआत कर देती हैं और दंगल प्रतियोगिता उन्हें इसके लिए एक बड़ा मंच भी प्रदान करता है।
साड़ी और घूंघट के साथ दंगल
हमीरपुर गांव में महिलाओं और पुरुषों की संख्या बराबर है, लेकिन जब भी यहां पर दंगल की प्रतियोगिता होती है, तो यह पूरी तरह से केवल महिला दर्शक और महिला प्रतिभागियों के लिए होती है। इसमें किसी अन्य गांव के पुरुष के साथ हमीरपुर गांव के पुरुषों की भी एंट्री बैन है। इस दंगल प्रतियोगिता में महिलाएं साड़ी और घूंघट के साथ एक दूसरे से कुश्ती लड़ती हुई दिखाई देती हैं।
103 साल से जारी है महिलाओं का दंगल
हर बार इस दंगल प्रतियोगिता में लगभग 20 से अधिक महिलाएं कुश्ती करने के लिए हिस्सा लेती हैं। इस गांव की यह परंपरा 103 साल पुरानी है। रक्षाबंधन के बाद होने वाले कजली त्योहार के दौरान यह महिलाएं दंगल करती हुई दिखाई देती हैं। सन 1920 से महिलाओं ने प्रतियोगिता के जरिए कुश्ती की शुरुआत की थी। कुश्ती जीतने वाली महिलाओं को महिला ग्राम प्रधान इनाम देकर सम्मानित करते हैं। ज्ञात हो कि समाज के सामने इस महिला दंगल का यही उद्देश्य है कि महिलाएं भले ही साड़ी पहनती हैं या फिर घूंघट में रहती हैं, लेकिन वे किसी से कमजोर नहीं हैं। घूंघट की ओट में रहकर भी कुश्ती करती हुई महिलाएं किसी से कम नहीं हैं।
लखनऊ की महिलाएं भी करती हैं कुश्ती
लखनऊ के अहमामऊ गांव में भी नागपंचमी के दूसरे दिन महिलाओं के कुश्ती खेलने की परंपरा है, जहां महिलाएं गीत गाने के साथ एक दूसरे को कुश्ती खेलने के लिए ललकारती हैं। इस कुश्ती को हापा कहा जाता है। यहां पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला पुलिस बल भी लगाया जाता है। यहां पर भी पुरुषों का आना मना है। इस हापा के दौरान महिलाएं एक दूसरे को चुनौती देते हुए आगे आती हैं और एक के बाद एक दंगल करती हुई दिखाई देती हैं।
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