वो लड़की है, क्या नहीं कर सकती है। इस कहावत को बीते कई दशक से महिलाएं सार्थक कर रही हैं। देश के भिन्न शहरों में महिला मैकेनिक का काम करके कई महिलाएं नई मिसाल कायम कर रही हैं। मोटर मैकेनिक से लेकर गाड़ी को रिपेयर करने का काम महिलाएं कर रही हैं और खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत बना रही हैं। हाल ही में इसे लेकर एक खबर सामने आयी थी कि कैसे महिलाएं साथ में मिलकर महिला मोटर गैरेज का जिम्मा उठा रही हैं। देखा जाए तो, ये कोई हैरत की बात नहीं है, बल्कि उस समाज के लिए बड़ी सीख है, जिन्होंने पुरुष और महिलाओं के कार्य को लेकर एक निर्धारित श्रेणी बना रखी है। ऐसे में ये महिलाएं और लड़कियां जो इस सोच को तोड़ती है, वाकई मिसाल बनती हैं, तो आइए जानते हैं विस्तार से कि कैसे देश के भिन्न शहरों में महिलाओं ने मैकेनिक बनकर खुद को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की नई कहानी लिखी है।
इंदौर का पहला महिला गैरेज
इंदौर में पिपलियाहाना क्षेत्र पर अगर कभी आपकी गाड़ी या बाइक खराब हो जाए, तो एक दफा यंत्रिका नाम से संचालित गैरेज में जरूर जाइए। इस गैरेज की सबसे बड़ी खूबी है, यहां कि महिला मैकेनिक। इस गैरेज में कई महिलाएं काम करती हैं, जो कि बाइक और अन्य तरह के दूसरे वाहन को दुरुस्त करने का काम करती हैं। बता दें कि इंदौर की एक संस्था ने महिलाओं को गैरेज का काम सिखाने की ट्रेनिंग दी। इसकी शुरुआत लॉकडाउन के दौरान से हुई। इस संस्था के जरिए 190 महिलाओं को मैकेनिक बनने की ट्रेनिंग दी गई, हालांकि कई महिलाएं शहर छोड़कर दूसरे शहर प्रस्थान कर गयी। फिलहाल 30 महिलाएं इंदौर के इस गैरेज में काम कर रही हैं। महिलाएं इस गैरेज के जरिए हर महीने हजारों की कमाई कर रही है। खुद को आत्मनिर्भर बनाने के साथ गैरेज में कार्यरत महिलाएं अपने परिवार का पालन-पोषण करके मिसाल कायम कर रही हैं।
जयपुर की लक्ष्मी बानो हैं पंचरवाली के नाम से लोकप्रिय
जयपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर देवथला गांव की लक्ष्मी बानो एक खास मिसाल बन रही हैं, वह कई सालों से अपने पापा की पंचर की दुकान चला रही हैं और अपना और अपनी मां का जीवन निर्वाह कर रही हैं। लक्ष्मी ने Her Circle के साथ हुए इंटरव्यू में अपने काम के बारे में बात करते हुए कहा है कि पंचर या गाड़ी मरम्मत का काम आसान नहीं है, एक बार तो एक बड़ी गाड़ी का टायर उनके पैर पर चढ़ गया था, तो फ्रैक्चर हुआ। हर दिन कहीं न कहीं चोट तो लगी ही रहती है। कभी हाथ छील जाते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद, लक्ष्मी हिम्मत नहीं हारती हैं और वह लगातार काम करती रहती हैं। वह पिछले 15 सालों से यह काम कर रही हैं और शायद ही कभी ऐसा कोई दिन रहा हो, जब उन्होंने आराम किया हो। वाकई लक्ष्मी के भी जज्बे को सलाम है।
युवतियां चला रही हैं ट्रैक्टर
कुछ महीने पहले नक्सल प्रभावित भयावह इलाके में महिला सशक्तिकरण की नई परिभाषा छत्तीसगढ़ की महिलाएं लिख रही हैं। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में कृषि विज्ञान केंद्र के जरिए 6 महिलाओं को ट्रैक्टर चलाने की ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद टैक्टर चलाने में समर्थ होने के बाद इन महिलाओं के लिए लाइसेंस बना दिए गए और महिलाएं खुद खेती कर अपनी आजीविका का रास्ता खोल चुकी हैं। दिलचस्प है कि ट्रैक्टर सीखने वालीं महिलाएं खुद किसान हैं। ट्रैक्टर सीखने के बाद महिलाओं का मनोबल भी बढ़ा है। वाकई, इस तरह नक्सल प्रभावित जैसे इलाके में महिलाओं का टैक्ट्रर चलाना और खुद खेती करना हिम्मत और दिलेरी का बड़ा उदाहरण है।
हिमाचल में महिला ड्राइवर की गिनती बढ़ी
चूल्हे की आग से निकलकर हिमाचल की महिलाओं ने बड़ी बस और ट्रक को चलाने का जिम्मा उठाकर खुद कमाई कर रही हैं। जी हां, कुछ समय पहले यह खबर सामने आयी कि हिमाचल में तकरीबन एक लाख से अधिक महिलाओं के पास ड्राइविंग लाइसेंस हैं। महिलाओं ने बीते कुछ सालों में बसें और ट्रक चलाने की भी ट्रेनिंग ली और लाइसेंस बनवाया है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण विभागों में 11 हजार से अधिक महिलाओं को ड्राइविंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह प्रशिक्षण महिलाओं को राज्य ग्रामीण आजिविका मिशन के तहत दिया जा रहा है। माना जा रहा है कि ड्राइविंग सीखने के बाद महिलाएं कई जगहों पर बसें और ट्रक चलाने का कार्य कर खुद का कद आर्थिक तौर पर बड़ा रही हैं, जो कि काबिले तारीफ है।
गाजियाबाद की महिला मैकेनिक
कुछ समय पहले यह भी खबर सामने आयी कि गाजियाबाद को भी उनकी पहली महिला बाइक मैकेनिक मिल चुकी है, हालांकि वह बीते 3 साल से मोटर मैकेनिक का काम कर रही हैं। कुछ साल पहले पूनम के पति राजेश कुमार को लकवा मार दिया था। साल 2014 से परिवार के पालन-पोषण के लिए उन्होंने मोटर मैकेनिक बनने का फैसला किया। पूनम के पति ने उन्हें मैकेनिक का काम सिखाया। इसके बाद सुबह 8 बजे से लेकर देर रात तक वह गाड़ियों की सर्विसिंग का काम कर रही हैं। हाल ही में किसी वजह से उनके गैरेज में आग भी लग गई थी, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं हारा और जली हुई दुकान के साथ ही फिर से गैरेज का अपना काम शुरू किया। सच में, पूनम ने जिस तरह अपनी आर्थिक और निजी जिंदगी को संभाला है, वह प्रेरणादायक है।
रायपुर की आठवीं पास लड़की ऐसे बनीं मैकेनिक
छत्तीसगढ़ के जगदलपुर के एक गांव में रहने वाली हेमवती नाग ने अपनी प्रतिभा से यह साबित किया है कि उसकी जिंदगी घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं है। जी हां, हेमवती के परिवार ने आठवीं तक पढ़ाई पूरी होने के बाद उसकी शादी करवा दी। पति की छोटी सी मोटर रिपेरिंग की दुकान है, जो कि कई बार शहर जाने के दौरान बंद करनी पड़ती थी। हेमवती ने इस दुकान को संभालने की जिम्मेदारी उठाई और रिपेरिंग का काम सीखा। इस दुकान में रिपेरिंग का काम करते हुए हेमवती अपने परिवार और बेटी की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी बखूबी संभाल रही हैं। वाकई, हेमवती की ये हौसले से भरी कहानी कई महिलाओं के जीवन के लिए सीख साबित होगी।
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