भारत में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो लगातार ग्रामीण महिलाओं के लिए शिक्षा की अलख जला रही हैं। ऐसी ही महिलाओं में से एक हैं, बिनीता, जो केरल के कोच्चि जिले के कडुंगल्लूर पंचायत के मुप्पथदम वार्ड में मलयालम ट्यूटर का कार्यभार संभाला है। बिनीता को कभी भी इस बात पर यकीन नहीं था कि वहां कि प्रवासी महिलाओं की तरफ से उन्हें इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिलेगी।
जी हां, उन्हें इस बात पर बिल्कुल यकीन नहीं था कि वह केरल राज्य साक्षरता मिशन (केएसएलएम) के हमारी मलयालम कार्यक्रम के एक बैच के लिए आवश्यक 25 प्रतिभागियों को भी ढूंढ पाएंगी, जिसका उद्देश्य प्रवासियों को बुनियादी मलयालम सिखाना है, ताकि वह सही तरीके से जरूरत पढ़ने पर संचार कर सकें। लेकिन उनके लिए यह आश्चर्यजनक बात रही कि उन्हें जरूरत से ज्यादा महिलाओं का सहयोग मिला। महिलाओं ने इस प्रोग्राम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है।
बिनीता ने प्रवासी महिलाओं के बारे में बताया है कि उनमें से ज्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश हैं, जिन्हें सिर्फ भोजपुरी आती है और उन्हें केरल में काम करने में काफी कठिनाई हो रही है, यही वजह है कि उन्होंने इस बारे में सोचा। उन्होंने यह भी बताया कि इनमें से ज्यादातर महिलाएं ऐसी हैं, जो कम उम्र में ही शादी हो जाने के बाद, छोड़ दी गयीं और उन्होंने कभी पढ़ाई नहीं की। तो कुछ ने पढ़ाई बीच से ही छोड़ दिया। इस कार्यक्रम की खास बात यह है कि यहां उन्हें हिंदी के माध्यम से मलयालम पढ़ाया जा रहा है। इस कार्यक्रम की एक अच्छी बात यह भी हुई है कि पहले यह केवल तीन महीने के लिए था, जिसे महिलाओं के उत्साह को देखते हुए चार महीने कर दिया गया है, इस कार्यक्रम में ट्रेनिंग के बाद, महिलाओं को एक परीक्षा भी देनी है। बिनीता ने बताया है कि ज्यादातर महिलाएं अपनी दुकान चलाने के लिए या फिर अस्पताल, बोर्ड बस बोर्ड जैसी चीजों को पढ़ने के लिए या छोटी-मोटी नौकरी पाने के लिए इस भाषा को सीखना चाहती हैं, तो उनमें से ऐसी कई महिलाएं हैं, जो आगे भी इसे जारी रखना चाहती हैं।
बिनीता बताती हैं कि ऐसी कई महिलाएं, जो पहले से काम पर हैं, उनकी क्लासेज व्हाट्स अप पर भी लेती हैं, जिससे कि उनके पति भी यह सीखें और उन्हें भी रोजगार ढूंढने में मदद मिले। इस कार्यक्रम का हिस्सा बनाने वालीं ज्यादातर महिलाएं घरेलू महिला भी हैं, तो उनके क्लास उनके हिसाब से किये जाते हैं, कई बार सप्ताह के अंत में भी खास होते हैं। बिनीता को इस बात से भी खुशी है कि उन्हें महिलाएं अपने जीवन अनुभव के बारे में भी बताती हैं और अपने संघर्ष की बातों को भी शेयर करती हैं।
वाकई, महिलाओं को जागरूक और आत्म-निर्भर बनाने में बिनीता के इस योगदान की सराहना होनी ही चाहिए।