भारत के ग्रामीण इलाकों से लगातार यह खबरें सामने आ रही हैं कि महिलाएं अपने गांव की सुरक्षा, उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए कई संभव प्रयास कर रही हैं, कहीं जंगल बचाने का काम तो कहीं जंगल, पहाड़ों से गांव में जल पहुंचाने का काम किया जा रहा है। ऐसे में राजस्थान के सिरोही इलाके की महिलाएं भी कुछ कमाल ही कर रही हैं। जी हां, यहां की आदिवासी बाहुल्य जिले में मूलभूत सुविधाएं आज भी नहीं पहुंची हैं, ऐसे में सिरोही के निचलागढ़ ग्राम पंचायत में बिजली का नामों-निशान नहीं है। जबकि यहां सरकार ने सोलर लाइट लगाई थी। लेकिन उसकी मरम्मत या देखभाल के अभाव में यह अधिक समय तक कारगर साबित नहीं हुआ। ऐसे में यहां की दो महिलाओं ने हाथ पर हाथ धरे बैठने से अच्छा, तय कर लिया कि वह गांव में रौशनी लाकर ही रहेंगी और इसी सोच के साथ दोनों, सोलर लाइट( सौर ऊर्जा) बनाने की तकनीकी प्रशिक्षण (टेक्निकल ट्रेनिंग) ले रही हैं। और यह हौसला दिखाया है केसरी बाई और बेरा फली की थावरी ने। हौसले की बात यह है कि दोनों अपने घर से 500 किलो मीटर दूर जाकर अजमेर के हरमाड़ा सेंटर में लगभग पांच महीने की ट्रेनिंग हर दिन ले रही हैं। हर दिन उन्हें लगभग 6 घंटे की क्लास लेनी होती है। उन्हें यहां सौर ऊर्जा और टॉर्च बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
ये दो महिलाएं, इस ट्रेनिंग का हिस्सा इस तरह से बनी कि जब एक सर्वे में यह बात सामने आई कि उनके गांव के हालात कैसे हैं। सिरोही के निचलागढ़ ग्राम पंचायत क्षेत्र में ऐसे कई घर मिले, जहां पर आज भी बिजली नहीं पहुंची है। इसके बाद, जब वहां की महिलाओं को इस बात की जानकारी दी गई, तो दो महिलाएं ट्रेनिंग के लिए तैयार हुईं। यहां की महिला सरपंच का कहना है कि पहाड़ी इलाका होने की वजह से काफी परेशानी होती है, बिजली प्राप्त करने के लिए कई बार फाइल जमा किया गया है, लेकिन इसको फिर भी रिजेक्ट कर दिया जाता है। अब एक उम्मीद की रौशनी लाने की कोशिश ये दो महिलाएं कर रही हैं, जो कि अपनी ट्रेनिंग खत्म करने के बाद 50-50 घराें में सोलर लगाने का काम करेंगी। इसमें सौर के उपकरण के मेंटेनेंस की भी व्यवस्था होगी। जाहिर है कि उनके इस काम से बच्चों को पढ़ने के लिए जो बिजली चाहिए, अब उस समस्या का समाधान हो जायेगा, साथ ही माेबाइल व किसान टाॅर्च काे चार्ज करने के लिए भी दूर जाना होता था, इस तरह की समस्याएं भी अब नहीं होंगी।
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