महिलाएं लगातार नया सृजन करने की कोशिशों में लगी रहती हैं। वे कचरे में भी क्रिएटिविटी ढूंढ लेती हैं। ऐसे में बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर प्रखंड के नयका टोला में एक अद्भुत काम हो रहा है। जी हां, पिछले ही वर्ष यहां स्थापित हुनर हाट में कचरे से उपयोगी सामग्रियों और खिलौने के निर्माण कर उसे बाजार में पहुंचाने का काम किया जा रहा है। खास बात यह है कि करीब दो सौ महिलाएं कबाड़ से तरह-तरह के खिलौने और उपयोगी सामान बनाने का काम कर रही हैं। हुनर हाट में महिलाओं की रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए हर तरह के प्रयास किये जा रहे हैं। यहां कम से कम दो सौ महिलाएं कबाड़ से तरह-तरह के खिलौने और उपयोगी सामान बनाने का काम कर रही है। हुनर हाट में महिलाओं की बनाई सामग्रियों को प्रदर्शनी के रूप में रखा जा रहा है और यही नहीं इसके बाद, इसे बिक्री के लिए भी भेजा जाता है। कबाड़ से इतने खूबसूरत खिलौने और सामग्रियां बनाई जा रही हैं कि लोगों के बीच यह खास आकर्षण का केंद्र बनी रहती है।
इस हाट में खासियत यही है कि वैसे सामान जो रद्दी हो चुके हैं, उसका इस्तेमाल करके कुछ नया गढ़ा जा रहा है, जैसे रद्दी कपड़ों से डोर मेट, गिट्टी और पुराने डिब्बों से सुंदर फूलदान, जूट की रस्सियों से टेडी बियर और यही नहीं पुरानी साड़ियों को गुड़ियों में बदला जा रहा है। इसके अलावा, पुरानी साड़ियों से विभिन्न तरह के गुलदस्ते, खाली बोतल से सजावट की सामग्री, चाय के टूटे कप से झूमर जैसी कलात्मक चीजें बनाई जा रही हैं। आपको जान कर हैरानी होगी कि यहां की महिलाएं पुरानी लकड़ी व बेकार प्लाईवुड के टुकड़े से मोमेंटो, टेबल लैम्प और सजावट का सामान और पुराने शादी के कार्ड से फाइल भी बना लेती हैं।
बता दें कि ग्रामीण इलाके में इस हाट को एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने की जिम्मेदारी जन विकास क्रांति द्वारा किया जा रहा है। दरअसल, इस सोच को लेकर जो रूपरेखा तैयार की गई थी, उसकी शुरुआत दो साल पहले ही की गयी। और नयका टोला की 40-40 महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें 15 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया। कोरोना काल में यह हाट एक आशा की किरण बन कर आया, उस वक़्त जब लोगों को काम नहीं मिल रहा था, तब यह विचार ने एक नया आकार लिया। खुद नाबार्ड के जिला प्रबंधक रंजीत कुमार सिन्हा ने इस पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया और महिलाओं को प्रशिक्षित करने के लिए हरी झंडी दिखा दी।
गौरतलब है कि इसकी शुरुआत हुए अभी अधिक समय नहीं हुआ है, लेकिन एक साल में इसकी अच्छी पहचान बन गई है। यहां के खिलौने इस कदर खूबसूरत होते हैं कि बिहार के अन्य इलाकों में जैसे पटना, सासाराम और बक्सर के कई स्थानीय बाजारों तक ये पहुंच रहे हैं। शुरुआत में यहां केवल दो दर्जन महिलाएं ही जुड़ी थीं, धीरे-धीरे यह कारवां दो सौ महिलाओं तक पहुंच गया। यहां काम करने वाली महिलाओं की महीने में 5 से दस हजार रुपये की कमाई हो जाती है।
वाकई, महिलाओं के लिए शुरू की गयी इस रचनात्मक सोच का कमाल नहीं है और इससे महिलाओं को लगातार प्रेरणा भी मिल रही है और उनके लिए आय का भी जरिया बन रहा है, ऐसे प्रयासों को हमेशा प्रोत्साहन मिलना ही चाहिए।