पूरे भारत में इस वर्ष 8 मार्च को होली मनाई जा रही है। ऐसे में महिलाएं आगे आ रही हैं और उनकी कोशिश यही है कि वह हर हाल में अपने पर्यावरण को रासायनिक चीजों से बचाने का काम करें। सो,आजीविका मिशन के तहत छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ब्लॉक के एक-एक गांव का चयन कर महिलाएं प्राकृतिक सब्जियों और अन्य चीजों से हर्बल गुलाल बनाने की तैयारी में जुटी हई हैं। जी हां, महिलाएं चुकंदर, पलाश, पालक और नीम के अलावा कनेर के फूल से भी हर्बल गुलाल बनाने का प्रशिक्षण देने की तैयारी में जुटी हुई हैं। गौरतलब है कि पिछले साल पांच महिला समूहों ने हर्बल गुलाल बनाया था। इस बार भी पांच महिला समूहों को तैयार किया जा रहा है। इनकी कोशिश यही है कि ऐसा गुलाल बने, जो त्वचा और पर्यावरण दोनों पर ही गलत असर न करे। पिछले साल 22 क्विंटल के आस-पास गुलाल बनाया गया था। इस साल उससे ज्यादा बिकने का अनुमान लगाया गया है। खास बात यह है कि मेहनत से तैयार किये गए इस गुलाल की कीमत महज 10 से 50 रुपए के रखे गए हैं, ताकि इसकी बिक्री ज्यादा हो सके और लोग कीमत देख कर इसे खरीदने से कतराए नहीं। वाकई, यह बेहद जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए हर्बल गुलाल बनाया जाए और लोग अपनी त्वचा का ध्यान रखें, चूंकि होली के दौरान खराब रंग के इस्तेमाल के कारण कई बार त्वचा में खुजली या कई तरह की त्वचा संबंधी समस्या हो जाती है, ऐसे में हर्बल गुलाल न सिर्फ त्वचा की देखभाल के लिए अच्छे हैं, साथ ही कुछ समय के लिए ही सही महिलाओं को आत्म-निर्भर बनने का तो मौका मिलता ही है।
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