ओडिशा में महिलाएं लगातार तरक्की की तरफ बढ़ रही हैं और वे अपनी नयी शुरुआत के लिए कुछ न कुछ अनोखा कर रही हैं। इसके बावजूद कि दुनिया में लोग भौतिक सुख के पीछे भाग रहे हैं, ओडिशा के एक क्षेत्र की महिलाएं वन संरक्षण और साथ में बंजर पड़े पहाड़ में जीवन तलाशने में लगी हुई हैं। जी हां, इस संरक्षण और जंगल व पहाड़ में आंचला की महिलाओं को लगभग 30 साल लग गए, लेकिन वन संरक्षण की भावना में उनकी किसी भी तरह की कमी नहीं आई है।
गौरतलब है कि वर्ष 1990 की शुरुआत में एक समय ऐसा था, जब ओडिशा के कोरापुट जिले के आंचला गांव में माली 'पर्बत' से होकर बहने वाली पानी की धारा बमुश्किल एक बूंद तक सिकुड़ गई थी और कहीं भी हरियाली नहीं दिखती थी। ऐसे में एक समय ऐसा आया, जब ग्रामीणों ने फैसला किया कि वे इस बंजर पड़े पहाड़ को खुशहाल बना कर रहेंगी।
ऐसे में उन्होंने खाना पकाने के माध्यम से जलाऊ लकड़ी पर निर्भरता को कम करने से लेकर स्थायी, जैविक और पर्यावरण के अनुकूल खेती को अपनाने तक, महिलाओं के नेतृत्व में ग्रामीणों ने इस पहल की शुरुआत की और आज, आंचला के चारों ओर 250 एकड़ का एक हरा-भरा पहाड़ी जंगल है, जिसे देख कर आपको खुशहाली का एहसास होगा और आप कभी इस बात का अनुमान नहीं लगा पाएंगी कि वाकई में इस पहाड़ में कभी कोई जीवन नहीं रहा होगा।
यहां की महिलाओं ने एक बातचीत में जानकारी दी है कि उन्होंने लकड़ी काटने वाले किसी भी व्यक्ति पर 500 रुपये का सख्त जुर्माना लगाया और ऐसा माहौल बनाया जहां लकड़ी काटने के लिए व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई गई। उन्होंने वहां के लोगों को ये सब करने से रोका और उन्हें समझाया कि वह गलत कर रहे हैं।एक समय के बाद, इसने काम करना शुरू कर दिया और अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने निगरानी के लिए गांव से एक गार्ड नियुक्त किया गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए भी कि कोई भी लकड़ी काटने के लिए वन क्षेत्र में अवैध रूप से प्रवेश न करे, एक परिवार को शाम से भोर तक जंगल की रखवाली के लिए नामित किया गया था। खास बात यह है कि इन महिलाओं के पास भुगतान करने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए उन्होंने एक सौदा किया कि जो कोई भी जंगल को देखेगा, उसे बदले में 10 किलो रागी मिलेगा। यह प्रत्येक घर से एकत्र किया जाएगा।
इसके साथ ही एक बात सामने आई कि जंगल का अत्यधिक दोहन क्यों हुआ, इसकी बड़ी वजह यह थी कि एलपीजी सिलेंडर नहीं था, इसलिए पूरा गांव खाना पकाने के लिए लकड़ी और कोयले पर निर्भर था। दिलचस्प बात है कि जंगल को बचाने के लिए वहां की महिलाओं ने खाना पकाने की आदतों को बदल दिया। उन्होंने कम लकड़ी से गुजारा करना शुरू किया और तीन परिवारों के लिए एक साथ खाना बनाया, ताकि लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल कम हो सके। इसके अलावा, उन्होंने पेड़ों के बीच इमली, चंदन और नीम लगाना शुरू किया। साथ ही आगे की उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए, महिलाओं ने टिकाऊ कृषि तकनीकों को अपनाना शुरू किया। गाय के खाद, गुड़ और आटा से बने रासायनिक मुक्त कीटनाशक और चिकन अपशिष्ट, नीम और राख से बने जैविक खाद का उपयोग करना शुरू किया। बता दें कि किसान यहां अतिरिक्त आय के लिए कतारों के बीच अंतरफसलें उगा सकते हैं। खेत की सीमा के चारों ओर मक्का और ज्वार जैसी सीमावर्ती फसलों की चार पंक्तियों को उगाने से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने वाले कीड़ों को बढ़ाने में मदद मिलती है।