बीते कुछ समय से देश के भिन्न शहरों में जंगल संस्कृति एवं पेड़ों को बचाने के लिए महिलाएं ‘चिपको आंदोलन’ कर रही हैं। दरअसल, चिपको आंदोलन का पुराना इतिहास रहा है, इस आंदोलन का जुड़ाव इस बात से है कि जिन-जिन जगहों पर पेड़ों को कटने से बचाने के लिए महिलाएं एक झुंड में आकर पेड़ों से चिपक जाती हैं, उन्हें ‘चिपको आंदोलन’ का नाम दिया जाता है। अपने इस शांति से किये गए विरोध के जरिए महिलाएं ये बताती हैं कि पेड़ उनके जीवन का हिस्सा हैं और वह इसे जमीन से अलग नहीं होने देंगी। आइए जानते हैं विस्तार से कि बीते कुछ समय में किस तरह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भारत में किन शहरों में चिपको आंदोलन हुए हैं और इनमें महिलाओं की भागीदारी क्या रही है, साथ ही जानने की कोशिश करते हैं कि कब और कैसे शुरू हुआ ‘चिपको आंदोलन’ और क्या है इसका 50 साल पुराना इतिहास ।
झारखंड में महिलाओं ने कहा : पेड़ नहीं कटने देंगे
झारखंड के रामगढ़ में वन विभाग की टीम ने एक प्राइवेट फैक्ट्री के विस्तार के लिए पेड़ों को काटने का फैसला लिया। जैसे ही यह खबर रामगढ़ के कुजू ओपी क्षेत्र की महिलाओं तक पहुंची, तो उन्होंने मिलकर इसका विरोध करने का फैसला लिया। इलाके की कई महिलाएं इकट्ठा हो गयीं। महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर इस बात का ऐलान किया कि अगर एक भी पेड़ काटने की कोशिश की गई, तो सबसे पहले वे अपनी जान देंगी। इसके बाद भी वन विभाग की टीम कटाई के लिए पेड़ों की गिनती करने पहुंची। सैकड़ों महिलाओं ने वहां पर इकट्ठा होकर पेड़ों की गिनती करने का काम रोक दिया। महिलाओं का कहना है कि वह किसी भी कीमत पर जंगल को कुर्बान नहीं होने देंगी। ऐसे में ग्रामीण महिलाओं का विरोध देखकर पेड़ की कटाई का काम रोक दिया गया। वाकई, यह मिसाल कायम करने वाला प्रयास रहा।
धनबाद की महिलाओं ने ऐसे किया आंदोलन
एक खबर यह भी सामने आई कि झारखंड के धनबाद में बीसीसीएल के पुटकी-बलिहारी एरिया में कोयला खदान के विस्तार के लिए डेढ़ हजार पेड़ काटने का फैसला किया गया। ऐसे में देश की कोयला राजधानी धनबाद में कोयला खदान बनाने के लिए 1700 से अधिक पेड़ों की कटाई जरूरी है। इनमें से 329 पेड़ों को ट्रांसप्लांट किए जाने का फैसला लिया गया। इसके लिए जब पेड़ काटने के लिए टीम पहुंची, तो स्थानीय महिलाओं ने संघर्ष मोर्चा निकाला। वे पेड़ों से चिपक गयीं। कंपनी के खिलाफ नारेबाजी की गयी। बढ़ते विरोध को देखते हुए वहां पहुंची टीम ने कहा कि वे जितने भी पेड़ काट रहे हैं, उसके बदले 10 गुणा अधिक पेड़ लगाए जायेंगे, वहीं ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि पेड़ काटने से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। महिलाओं का पर्यावरण संरक्षण के लिए यह कदम उठाया जाना सराहनीय है।
पेड़ों को बांधी राखियां लिया संकल्प
एक और खबर जो सामने आई कि कोयला नगरी धनबाद की महिलाओं ने पेड़ों को राखी बांध कर उनसे अपना रिश्ता अटूट कर लिया। कई महिलाओं ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर अपने भाई और बेटे की रक्षा करेंगे का प्रण लिया है। यहां की महिलाओं का कहना है कि अगर कोई पेड़ रूपी उनके भाई और बेटे को काटने आएगा, तो सबसे पहले हमें काटना होगा। इस तरह धनबाद की महिलाओं ने पेड़ और जंगल संस्कृति को जिंदा रखने के लिए एक अनोखी पहल चिपको आंदोलन के तहत की है।
पुणे में महिलाओं ने लगाया पेड़ों को गले
पुणे में रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के खिलाफ अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कई समाजसेवी महिला कार्यकर्ताओं ने पेड़ों की कटाई रोकने के लिए ‘चिपको आंदोलन’ किया। महिलाओं ने पेड़ों की कटाई रोकने के लिए पेड़ों को गले लगाया। ज्ञात हो कि पुणे में मुला मुथा नदी फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए 6 हजार पेड़ काटे जाने वाले हैं, ताकि मुला मुथा नदी को सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन और बाढ़ प्रतिरोधी बनाया जा सके।
20 साल पुराने पेड़ के बचाने के लिए बच्चों का चिपको आंदोलन
यह भी दिलचस्प बात है कि इस आंदोलन में महिलाओं के साथ बच्चों ने भी भाग लिया है, जी हां, मध्य प्रदेश के शहर भोपाल में करीब 20 साल पुराने बरगद-पीपल के दो पेड़ों को बचाने के लिए वहां के स्थानीय बच्चे पेड़ों से चिपक गए। इस पेड़ को काटने के पीछे की वजह सड़क निर्माण कार्य को पूरा करना है। सरकार के आदेश के बाद वन विभाग ने इस पेड़ को हटाने की कोशिश की, लेकिन बच्चों के ‘चिपको आंदोलन’ और स्थानीय महिलाओं के विरोध के बाद सरकार ने अपने इस फैसले को वापस लिया।
50 साल पुराना चिपको आंदोलन
पर्यावरण को बचाने के लिए देश में एक नहीं, बल्कि कई बार कई तरह के आंदोलन किए गए हैं। महिलाएं इन आंदोलन का बड़ा हिस्सा रही हैं। ‘चिपको आंदोलन’ का आगाज साल 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले और टिहरी-गढ़वाल जिले में हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व गौरा देवी, सुदैशा देवी और बचनी देवी के साथ मिलकर कई महिलाएं ने किया। महिलाओं का उद्देश्य ठेकेदारों से हिमालय की निचले स्तर पर मौजूद पेड़ों की रक्षा करना था। जब ठेकेदार पेड़ काटने के लिए पहुंचे, तो महिलाएं पेड़ों से लिपट गयीं । इस वजह से इसे चिपको आंदोलन कहा जाने लगा और तभी से चिपको आंदोलन ने पर्यावरण की रक्षा की जिम्मेदारी ली।
पर्यावरण की रक्षा के लिए आंदोलन का इतिहास
उल्लेखनीय है कि पर्यावरण की रक्षा का जिम्मा दशकों से महिलाओं ने कई आंदोलन के जरिए सशक्त तौर पर निभाया है। सन 1700 के करीब राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में ‘बिश्नोई आंदोलन’ हुआ, जिसका नेतृत्व अमृता देवी नाम की महिला ने किया। मारवाड़ के राजा नया महल बनाने ते लिए पेड़ों को काटने का फैसला सुना चुके थे। अमृता ने अपने समुदाय के साथ मिलकर पेड़ों को बचाने का विरोध किया, इस आंदोलन में 363 बिश्नोई ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इसके बाद 1485 में बिश्नोई धर्म की स्थापना की गई और पेड़ों और जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचाने का नियम बनाया गया। इसके अलावा साल 1973 में साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन केरल में जंगल को बचाने के लिए किया गया और साल 1982 में बिहार में आदिवासियों नें जंगल को बचाने के लिए ‘जंगल बचाओ आंदोलन’ किया, जो कि झारखंड और ओडिशा तक फैला।