शौचालय न मिलने की समस्या पर चाहे पूरी फिल्म बन गई हो, लेकिन आज भी कई ऐसी जगहें हैं, जहां औरतों के लिए बाथरूम, साफ बाथरूम और टॉयलेट में बिजली उपलब्ध हों। यह चौंकाने वाली बात है कि महिलाओं की ऐसी स्थिति मुंबई जैसे शहर में है। जी हां , मुंबई के सुभाष नगर की यही हालत है, जहां महिलाएं दिन भर पानी इसलिए नहीं पीती कि उन्हें रात के अंधेरे में बाथरूम जाना न पड़ जाए।
रिपोर्ट के अनुसार संपूर्ण भारतीयों में से लगभग आधे लोगों ने साल 2013 तक खुले में शौच किया है। जिसमें लोग खेतों, पानी के आसपास या अन्य खुले स्थानों में शौच के लिए बाहर जा रहे थे। यह तो सभी जानते हैं कि सार्वजनिक स्वच्छता के बिना गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। साल 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान या स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की और यह एक ऐसा प्रयास, जिसके कारण 100 मिलियन से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ। आज विश्व बैंक के अनुसार केवल 15 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है।
लेकिन मुंबई के सुभाष नगर के निवासियों के लिए और भारत भर में लाखों कम आय वाले निवासियों के लिए, बाथरूम की सुविधा सही नहीं है। कई महिलाओं ने इस बात को स्वीकारा है कि वे नियमित रूप से शौच कंट्रोल करके रखती हैं और बाथरूम न जाना पड़े, इसलिए पानी कम पीती हैं, जिसकी वजह से पेट में दर्द और कब्ज होता है, लेकिन महिलाओं ने कहा है कि उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। मुंबई में कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपने घर पहले टिन के बनाए और फिर इसे कंक्रीट से पक्का किया, इसलिए इनके घर में सेप्टिक टैंक से जुड़े नहीं हैं।
हालांकि यहां स्थानीय कार्यकर्ताओं ने जागरूकता बढ़ाने और सुधार लाने के लिए काम किया है। फिर भी कई महिलाओं का कहना है कि बदलाव की गति धीमी है और अभी के लिए, वे ऐसी परिस्थिति से खुद ही जूझ रही हैं। सरकार द्वारा कई एक्शन्स लेने के बाद भी टॉयलेट जैसी समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है, यह आपने आप में एक शर्मनाक बात है।