महाराष्ट्र के महिला एवं बाल विकास विभाग ने सड़क पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास की दृष्टि से 'बालस्नेही' (बच्चों के अनुकूल) बसें और वैन शुरू की हैं। यह एक अच्छी पहल है। खास बात यह है कि इसके लिए एक टीम होगी, जो पूर्ण रूप से इस काम में समर्पित होगी। इनमें एक शिक्षक, एक परामर्शकर्ता, एक ड्राइवर और एक सहायक शामिल होंगे और यह एक जिले में भ्रमण करेगी, ताकि बच्चों को मुख्यधारा में शामिल किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सरकारी योजनाओं और अन्य पहलों के तहत शिक्षा का हिस्सा हैं। विभाग ने इस बाल अधिकार संरक्षण पहल के प्रस्ताव के लिए केंद्र सरकार की स्वीकृति बताते हुए एक सरकारी संकल्प (जीआर) जारी किया है और इसके लिए 50 लाख रुपये का फंड स्वीकृत किया गया है। फिलहाल यह परियोजना, छह महीने के अपने कार्यकाल में, इस क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से छह जिलों मुंबई शहर, मुंबई उपनगर, ठाणे, नासिक, पुणे और नागपुर में लागू की जाएगी।
गौरतलब है कि बच्चों की सुरक्षा, बच्चों के अनुकूल बसों के अंदर सीसीटीवी और एक ट्रैकिंग सिस्टम स्थापित किया जाएगा, जिसमें 25 बच्चों को समायोजित किया जा सकता है। साथ ही विभाग को इस टीम से उम्मीद है कि यदि इस टीम को कोई अनाथ बच्चा मिलता है, तो बाल कल्याण समिति को उन्हें मान्यता प्राप्त संगठनों (सीडब्ल्यूसी) में भर्ती कराने में सहायता करनी चाहिए। यदि बच्चा कुपोषित है, तो उसे पौष्टिक आहार देना चाहिए। अगर किसी को विकलांग के रूप में पहचाना जाता है, तो उन्हें सरकार के कार्यक्रमों के अनुसार उचित लाभ प्रदान किया जाना चाहिए।
इस टीम का काम यह भी होगा कि यदि बच्चा छह साल से कम उम्र का है, तो उसे आंगनवाड़ी या निकटतम सरकारी संचालित स्कूलों में से एक में नामांकित किया जाना चाहिए। बच्चों के स्वास्थ्य एवं चिकित्सकीय जांच के लिए उन्हें नजदीकी सरकारी अस्पतालों में ले जाना चाहिए। यदि वे योग्य आयु सीमा के भीतर आते हैं, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन्हें कोविड-19 टीका प्राप्त हो।