इन दिनों एक ऐसी विडंबना हो गई है कि जिन हाथों में पहले कलम थमाई जाती थी, अब बच्चों को पहले मोबाइल फोन थमा दी जा रही है, ऐसे में एक नए अध्ययन से भी यह बात सामने आई है कि जितनी जल्दी एक बच्चे के हाथ में मोबाइल फोन आ जाता है, उतनी ही जल्दी इसका बुरा प्रभाव वयस्क होने पर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। दरअसल, सेपियन लैब्स के एक नए वैश्विक अध्ययन में पाया गया है कि बच्चों को स्मार्टफोन देरी से देने पर बच्चों और युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है। अध्ययन से पता चलता है कि वर्तमान 18-24 वर्ष के युवाओं के बीच स्मार्टफोन के उपयोग की वजह से उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, जैसे-जैसे स्मार्टफोन का इस्तेमाल बढ़ता है, वैसे-वैसे उनकी स्थिति बिगड़ती चली जाती है। खासतौर से 18-24 वर्ष के बच्चे अगर स्मार्टफोन या टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं, तो उन पर इसका बुरा असर होता है।
गौरतलब है कि अगर कोई बच्चा जिसकी उम्र 6 वर्ष है और उसने स्मार्टफोन का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, तो 18 वर्ष की आयु में पहुंचते-पहुंचते परेशानी होती है, बता दें कि मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 74 से घटकर 46 प्रतिशत हो गया, पुरुषों के लिए यह 6 साल की उम्र में 42 प्रतिशत से घटकर 18 साल की उम्र में 36 प्रतिशत हो गया, जैसा कि एज ऑफ फर्स्ट स्मार्टफोन एंड मेंटल वेल-बीइंग आउटकम्स नाम के एक अध्ययन में बताया गया है। उल्लेखनीय है कि असली समस्या स्मार्टफोन के साथ नहीं है, लेकिन उनका उपयोग किस लिए किया जाता है इस बात पर ध्यान देने की खास जरूरत है, युवा लोगों के मामले में देखें तो बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया है। उस दृष्टिकोण से अध्ययन के निष्कर्ष अनुसंधान के साथ तालमेल बिठाते हैं, जो दर्शाता है कि कुछ युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के लिए सोशल मीडिया जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए वर्ष 2021 में, द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि फेसबुक के अपने शोध ने किशोर लड़कियों के बीच मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर प्रकाश डाला, जिसमें उनकी मानसिक स्थिति गड़बड़ हुई है और इसका मुख्य कारण सोशल मीडिया का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल है।