राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोलकाता में हुगली नदी के करीब भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट 17 अल्फा के छठें नौसैन्य युद्धपोत ‘विंध्यागिरी’ को लांच किया। इस घातक जंगी जहाज के साथ एक बार फिर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संघर्षपूर्ण जीवन पर भी चर्चा शुरू हो गई है कि कैसे उन्होंने अपने जीवन की कई जंगों को पार करके कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हैं। युद्धपोत 'विंध्यागिरी' के लांच के दौरान द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि यह जंगी जहाज आत्मनिर्भर भारत का एक प्रतीक है। ठीक इसी तरह द्रौपदी मुर्मू भी महिला सशक्तिकरण का एक बड़ा चिन्ह दर्शाती हैं। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में विस्तार से।
द्रौपदी मुर्मू अपने गांव की पहली लड़की
आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली भारत की महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन से यह सबसे बड़ी सीख मिलती है कि जीवन के हर पड़ाव पर शिक्षा का साथ आपको हौसले से आगे बढ़ने की राह दिखाता है। 20 जून 1958 को जन्मीं द्रौपदी मुर्मू ने गरीबी और आर्थिक समस्या से गुजरते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से स्नातक डिग्री की पढ़ाई पूरी की। अपने गांव की वह पहली लड़की थीं, जो कि दूसरे शहर जाकर पढ़ाई कर रही थीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई और घरवालों के मानने के बाद उन्होंने शादी कर ली।
राष्ट्रपति से पहले द्रौपदी मुर्मू ने की क्लर्क की नौकरी
साल 1979 से लेकर 1983 तक उन्होंने सिंचाई बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम किया। इसके बाद उन्होंने बतौर शिक्षिका साल 1994 से लेकर 1997 तक काम किया किया। उनका सफर फिर राज्य मंत्री बनने तक पहुंचा, हालांकि निजी जिंदगी में द्रौपदी मुर्मू अपने दो बेटों और पति को खो चुकी थीं। अकेले रहते हुए भी उन्होंने हौसला नहीं खोया और समाज सेवा की राह पर निकल पड़ी। साल 2000 में वह बीजू जनता दल और बीजेपी गठबंधन सरकार में मंत्री बनकर वाणिज्य और मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभाला। साल 2007 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक के नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
द्रौपदी मुर्मू के प्ररेणादायक किस्से
अपने काम के प्रति ईमानदार और मेहनती होने के साथ उनका सौम्य स्वभाव लोगों के दिलों में जाकर बस जाता है, यही वजह है कि उन्हें द्रौपदी दीदी कहकर बुलाया जाता है। एक लीडर होकर भी अपने शांत स्वभाव से वह लोगों के दिल में मां और दीदी की जगह बना चुकी हैं। जिस वक्त वह कॉलेज में जाती थीं, तो उनको देखकर उनके गांव की कई सारी लड़कियों और उनके माता-पिता ने अपनी बच्चियों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया और वे आदिवासी समाज के लिए प्रेरणा बन गयीं। बिना किसी वेतन के वह बतौर शिक्षक बच्चों को पढ़ाती थीं, उनके प्रयास से गांव की कई लड़कियों ने स्कूल जाना प्रारंभ किया। यह भी उल्लेखनीय है कि द्रौपदी मुर्मू ने साल 2009 में चुनाव हारा। इसके बाद उन्होंने गांव जाकर रहने का फैसला किया। गांव से जब वह वापस लौटी, तो उन्होंने अपनी आंखों को दान करने की घोषणा की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भाषण की प्रमुख बातें
64 साल की उम्र की सबसे युवा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कई बार अपने भाषण और साक्षात्कार में कई ऐसी प्रेरणादायक बातें कही हैं, जो कि कई महिलाओं के जीवन के लिए सीख बन गई है।
1-राष्ट्रपति के पद पर पहुंचना मेरी व्यक्तिगत उपल्बधि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उप्लबधि है। राष्ट्रपति पद पर मेरा होना इस बात की गवाही देता है कि भारत का हर गरीब सपने भी देखकर उन्हें पूरा कर सकता है।
2- यह हमारे लोकतंत्र की शक्ति है कि एक गरीब घर में पैदा हुईं बेटी, आदिवासी मूल में पैदा हुई बेटी भारत के सवोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती हैं। मेरे इस निर्वाचन में बेटियों के सपने की झलक है।
3- एक पढ़ी लिखी महिला सही मायने में देश की निर्माता होती है। वह देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती है और समाज पर अच्छा प्रभाव छोड़ सकती है।
4- महिला सशक्तिकरण अब एक नारा नहीं है, यह एक हकीकत बन गई है। लड़कियां न केवल लड़कों के बराबर हैं, बल्कि कुछ क्षेत्रों में वे लड़कों से भी आगे हैं।
5- अगर महिलाओं को मौका दिया जाए, तो वे अक्सर शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों से आगे निकल जाती हैं। मुझे यकीन है कि अगर मानवता की प्रगति में महिलाओं को समान भागीदार बनाया जाए, तो दुनिया एक बेहतर जगह होगी।
राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
आलीशान 340 कमरों से बने हुए राष्ट्रपति भवन में द्रौपदी मुर्मू ने खुद के लिए गेस्ट रूम यानी कि मेहमान कक्ष को चुना है, जो कि यह बताता है कि उन्हें जीवन में किसी ऐशो आराम की आवश्यकता नहीं है। राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए वह अपने पद की गरिमा को बिना किसी लालच के बखूबी संभाल रही हैं। बचपन में द्रौपदी मुर्मू को मिठाई खाना काफी पसंद था, लेकिन उस समय आर्थिक हालातों के कारण मिठाई खाना उनके लिए मुश्किल था। ऐसे में उनके पिता ने उन्हें यह सीख दी कि बच्चों के लिए मिठाई से अधिक मिठाई जैसे मधुर स्वभाव विकसित करना भी उतना ही जरूरी है।