इंटरनेट पर इन दिनों ऐसी ही खबरें सबसे ज्यादा छाई रहती हैं, जहां आत्महत्याएं हो रही हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को मानें, तो इसके मुताबिक साल 2021 में देश में 1.64 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की। यह एक गंभीर चिंता का विषय देश के लिए बन चुका है। ऐसे में यह सराहनीय कदम है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में देश में अपने तरह की पहली ‘राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति’ की घोषणा की है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाने के लिए समयबद्ध कार्य योजना और बहु-क्षेत्रीय सहयोग शामिल करने की कोशिश है। सरकार की इस पहल का स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने खुले दिल से स्वागत किया है, क्योंकि इससे आत्महत्या रोकथाम की दिशा में निश्चित तौर एक बेहतर बदलाव की संभावना बनती है ।
गौरतलब है कि इस रणनीति में मोटे तौर पर यही कोशिश है कि अगले तीन वर्षों के भीतर आत्महत्या के लिए प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करने का प्रयास करती है, साथ ही अगले पांच वर्षों के अंदर में सभी जिलों में जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के माध्यम से आत्महत्या रोकथाम सेवाएं प्रदान करने वाले मनोरोग बाह्य रोगी विभागों की स्थापना, और एक मानसिक कल्याण को एकीकृत करने का प्रयास करती है। इसके अलावा, अगले आठ वर्षों के अंदर सभी शैक्षणिक संस्थानों में पाठ्यक्रम लाने की कोशिश भी है। इसके तहत, लक्ष्य के मुताबिक आत्महत्याओं के मामलों को लेकर जिम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग और आत्महत्या के साधनों तक पहुंच को प्रतिबंधित करने के लिए भी दिशानिर्देश तैयार करने की योजना बनाई जाएगी।
गौरतलब है कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए सामुदायिक रूप से लचीलापन और सामाजिक समर्थन विकसित करने पर जोर दिया गया है। जबकि रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिए डब्ल्यूएचओ की दक्षिण पूर्व-एशिया क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है, यह कहता है कि यह भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश के लिए सही रहेगा।
बता दें कि इस संदर्भ में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने एक जारी नोट के माध्यम से कहा है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में आत्महत्या को रोकने के लिए अब और प्रयास करने की आवश्यकता है। आत्महत्याएं समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करती हैं और इस प्रकार बड़े पैमाने पर व्यक्तियों और समुदाय से ठोस और सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता होती है। भारत में, हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं, और अगर हत्यारों की बात की जाए तो 15-29 वर्ष की श्रेणी में सबसे अधिक आते हैं। दर्ज रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में, आत्महत्या की दर प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 10.2 से बढ़कर 11.3 हो गई है। ऐसे में आत्महत्या के सबसे आम कारणों में पारिवारिक समस्याएं और बीमारियां शामिल हैं, जो आत्महत्या से संबंधित सभी मौतों का 34% और 18% हिस्सा हैं।
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