अगस्त 2022 में आंध्र प्रदेश के पुलिवेंदुला में अपने खेत पर एक दलित किसान पी मैरी ने प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करके कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने की कोशिश की है जिससे, उनकी आय में भी वृद्धि हुई है। पी मैरी यहां अपने पति, बेटी और उसके ट्विन बच्चों के साथ रहती हैं। काली ड्रिप-सिंचाई पाइपों की की लाइन के साथ, वे टमाटर और मिर्च के बीजों को बीज के लिए अमृत, यानी मिट्टी, गाय का गोबर, गोमूत्र और चूने के मिश्रण के साथ बोती हैं।
2019 के बाद से पी मैरी और उनका परिवार, जो वाईएसआर जिले (पहले कडपा) में रहते हैं, उन्होंने प्राकृतिक खेती में बदलाव किया है। इससे पहले, वे ज्यादातर रासायनिक आदानों के साथ रुई और मूंगफली उगाते थे। 25 से अधिक वर्षों से खेती कर रही मैरी कहती हैं, "जमीन अब नरम हो गई है, उपज ताजा रहती है और यह एक स्वस्थ विकल्प है।"
बता दें कि मैरी उन 6 मिलियन किसानों में से एक हैं, जिनकी आंध्र प्रदेश ने 2031 तक प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने की योजना बनाई है। आंध्र प्रदेश समुदाय प्रबंधित प्राकृतिक खेती (APCNF) को रायथू साधिका संस्था (RySS) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है, जो एक गैर-लाभकारी किसान समूह है। इसका उद्देश्य खेती की उच्च लागत को कम करके कृषि संकट का प्रबंधन करना है, जो किसानों को ऋण से बचाने का काम करता है, साथ ही लाभकारी कीमतों का समर्थन और फसल की पैदावार में सुधार और उपभोग के लिए सुरक्षित, स्वस्थ भोजन का उत्पादन भी करता है। अगस्त 2022 तक, एपीसीएनएफ ने 3,700 से अधिक ग्राम पंचायतों को सम्मिलित किया था, और अगले तीन वर्षों में आंध्र प्रदेश में सभी 13,371 पंचायतों तक पहुंचने की योजना है।
यह एक कटु सत्य है कि भारत के ज्यादातर हिस्सों में पुरुषों के पास ही भूमि का स्वामित्व होता है, जबकि महिलाएं उस पर काम करती हैं। वर्ष 2015-16 की कृषि जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं के स्वामित्व वाली 20.4 मिलियन होल्डिंग्स में से आंध्र प्रदेश के आंकड़ें 12.6 फीसदी है। 55% पुरुषों की तुलना में ग्रामीण भारत में चार में से तीन या उससे अधिक महिलाएं कृषि क्षेत्र में लगी हुई हैं।
भारत में महिला किसानों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए काम करने वाले एक अनौपचारिक मंच महिला किसान अधिकार मंच (MAKAAM) में राष्ट्रीय सुविधा दल की सदस्य सीमा कुलकर्णी ने इस बारे में कहा, "खेती में महिलाओं की भागीदारी का एक उच्च स्तर है। लेकिन उन्हें इसका कोई वेतन नहीं मिलता। खेती में भुगतान के अवसर कम होते दिख रहे हैं, लेकिन भागीदारी अधिक है।"
तो ऐसे में मैरी फिलाहल अपने खेत में केले की फसल की प्रतीक्षा कर रही हैं और उन्हें प्राकृतिक खेती जारी रखने और अपने खेत में कई फसलें उगाने की उम्मीद है। वह कहती हैं कि वह अन्य महिलाओं को भी प्राकृतिक तरीके से खेती करने के तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती रहेंगी।