वर्ष 2021 में, भारत में पहली बार लिंगानुपात में सुधार हुआ और महिलाओं की संख्या देश में पुरुषों की संख्या को पार कर गई। दिसंबर 2021 में वर्ष 2019-2021 के लिए जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हैं। वहीं 2005-06 में किए गए NFHS-3 के अनुसार, लिंग अनुपात 1000:1000 था और 2015-16 (NHFS-4) में यह घटकर 991:1000 हो गया। हालांकि, लिंगानुपात ही लैंगिक समानता का एकमात्र निर्धारक नहीं हो सकता है। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और स्वास्थ्य के निर्धारक जैसे कई अन्य आंकड़े भी महिलाओं की स्थिति को दर्शाते हैं।
भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति पर एक नजर डालें तो, भारत में, 23.3 प्रतिशत महिलाओं (20-24 वर्ष) की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी गई, जैसा कि वर्ष 2019 और वर्ष 2021 के बीच किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 में बताया गया है। हालांकि यह आंकड़े वर्ष 2015-16 में 26.8 प्रतिशत थी। संघमित्रा सिंह, सीनियर मैनेजर, नॉलेज मैनेजमेंट एंड पार्टनरशिप, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया, उन्होंने स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों के बारे में बात करते हुए कहा, "बाल विवाह लड़कियों के पूरे जीवन को प्रभावित करता है, जिससे समय से पहले गर्भधारण, असुरक्षित गर्भपात, मातृ मृत्यु, खराब स्वास्थ्य और मां और बच्चे दोनों के पोषण की स्थिति पर भी असर पड़ता है।"
गौरतलब है कि इस बारे में यूनिसेफ कहता है कि गर्भावस्था के दौरान, महिलाओं और उनके अजन्मे बच्चों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रसव से पहले ही देखभाल आवश्यक है। भारत में, एनएफएचएस -5 (NFHS-5) के अनुसार, पहली तिमाही में प्रसव पूर्व जांच कराने वाली महिलाओं का आंकड़ा 58.6 प्रतिशत (2015-16) से बढ़कर 70 प्रतिशत (2019-21) हो गया है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, वर्ष 1975 के बाद से दुनिया भर में मोटापा लगभग तीन गुना हो गया है। भारत में भी सभी आयु वर्ग के लोगों में मोटापे में वृद्धि देखी जा रही है। वर्ष 2019-21 में, 15-49 वर्ष के आयु वर्ग की 24 प्रतिशत महिलाओं के अधिक वजन या मोटापे के होने की सूचना मिली थी। 2015-16 में यह संख्या 20.6 फीसदी थी।
इस बात को लेकर सतर्क होने की जरूरत है कि एनीमिया देश में एक स्वास्थ्य संकट पैदा कर रहा है और फिर से, पुरुषों की तुलना में महिलाओं का दोगुना प्रतिशत इससे प्रभावित होता है। एनएफएचएस-5 के अनुसार, वर्ष 2019-21 में 57 प्रतिशत (15-49 वर्ष) महिलाएं एनीमिक थीं, यह वर्ष 2015-16 से 3.9 प्रतिशत की वृद्धि है। भारत में अधिक महिलाएं (15-24 वर्ष) अपने मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का उपयोग करती हैं। एनएफएचएस -5 स्थानीय रूप से तैयार नैपकिन, सेनेटरी नैपकिन, टैम्पोन और पीरियड कप के रूप में सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों को परिभाषित करता है। इन उत्पादों का उपयोग 57.6 प्रतिशत (2015-16) से बढ़कर 77.3 प्रतिशत हो गया है।