विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पर्यावरण की रक्षा के लिए कई तरह के अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन आपको यह बता दें कि भारत के कई ऐसे गांव हैं, जहां पर महिलाओं और गांव के लोगों ने मिलकर पर्यावरण के लिए मिसाल कायम कर दी है। वे हर दिन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए काम कर रहे हैं। आइए जानते हैं विस्तार से कि ऐसे कौन से भारत के गांव हैं, जहां पर 30 सालों से लगातार पर्यावरण को जीवित रखने के लिए सतत प्रयास किया जा रहा है।
डूंगरपुर जिले में सफाई मिशन
राजस्थान के डूंगरपुर जिले में एक गांव ने स्वच्छता को लेकर मिसाल कायम की है। डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा ब्लॉक में छोटा सा गांव दीवड़ा की सफाई कई अन्य गांवों के लिए चर्चा का विषय बन गई है। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण भारत राष्ट्रीय योजना स्वीकृति समिति ने गांव में सफाई, हरियाली और साफ पानी को लेकर एक मुहिम शुरू की है। गांव में सफाई रखते हुए डोर टू डोर कचरा संग्रहण का काम किया जा रहा है। एक कचरे की गाड़ी पूरे गांव में घूमती है। गांव के लोग भी सफाई को लेकर अपना पूरा सहयोग दे रहे हैं। सफाई के साथ वृक्षारोपण,पशुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए भी कई तरह के कार्य किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हर महीने घर में मौजूद प्लास्टिक को एक गाड़ी द्वारा एकत्रित करने का काम भी इस गांव की पंचायत कर रही है। कचरे से खाद बनाकर इसे खेती के लिए भी उपयोगी बनाया जा रहा है। गांव को आरओ का शुद्ध पानी भी दिया जा रहा है।
ओडिशा की महिलाओं ने किया जंगल को जिंदा
ओडिशा के कोरापुट जिले में आंचला गांव की महिलाओं ने नजदीक के जंगल को फिर से जिंदा करने की मिसाल कायम की है। यहां की महिलाओं का कहना है कि गांव में जंगल को बनाने में उन्हें 30 साल लग गए । यह किस्सा शुरू हुआ है 1990 के दौरान जब गांव के पर्वत से निकले वाली जलधारा पूरी तरह से सूख गई थी, तभी वहां के ग्रामीण लोगों ने पर्वत पर फिर से हरियाली लाने का फैसला किया। बता दें कि आंचला के चारों तरफ 250 एकड़ का एक पर्वतीय जंगल है। इस गांव की निगरानी करने के लिए एक चौकीदार को भी नियुक्त किया गया है। गांव के जंगल की लकड़ी काटने नहीं दी जाती है। साथ ही यहां पर पर्वतधारा से निकलने वाले पानी से खेती की जाती है और इस खेती से निकलने वाली सब्जियों का इस्तेमाल गांव के लोग करते हैं।
जालंधर का एनआरआई गांव
जालंधर का गांव गाखल कई शहरों के लिए मिसाल बन गया है। इसे एनआरआईज का गांव भी पुकारा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि 4500 की आबादी वाले इस गांव में 70 फीसदी लोग विदेश में हैं। उन सभी लोगों ने अपने गांव की शक्ल को बदलने का काम पूरे जज्बे के साथ किया है। विदेश में रहने वाले एनआरआई लोगों ने इस गांव में एक पार्क भी बनाया है। गांव में बेहतरीन सड़कें और स्वच्छता का भी पूरा ध्यान काफी समय से दिया जा रहा है। अगर गांव में बिजली नहीं आती है, तो सोलर पैनल की भी व्यवस्था की गई है। साथ ही गांव की सड़क और गलियों में लाइट की रोशनी भी है। वाकई, जालधंर के इस गांव के लोगों ने अपनी मेहनत के बलबूते पर पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए गांव को शहर से भी बेहतर शक्ल दी है।
सीतापुर की महिलाओं की जलकुंभी से कमाई
उत्तर प्रदेश के सीतापुर की महिलाएं जलकुंभी से कई तरह के सामान बना रही हैं। यहां की महिलाओं के हाथों का हुनर इस गांव को लोकप्रिय बना चुका है। महिलाओं ने अपने बनाए हुए प्रोडक्ट को कुंभी नाम दिया है। इस गांव की महिलाएं जलकुंभी से जूते, पर्स, गमले और सजावट के कई तरह के सामान भी बना रही हैं। ज्ञात हो कि जलकुंभी से प्रोडक्ट बनाने की ट्रेनिंग इन महिलाओं को सीतापुर प्रशासन के अधिकारियों ने दी है।
पर्यावरण की सुरक्षा और राष्ट्र प्रेम
देश में कई सारे ऐसे गांव हैं, जो पर्यावरण के लिए मिसाल कायम की है। बिहार के भागलपुर जिले में स्थित धरहरा गांव में जब भी बेटी जन्म लेती है, तो वहां पर 10 पौधे लगाए जाते हैं। पौधे लगाना इस गांव की परंपरा बन चुकी है। मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के छोटे से गांव करमदी में पेड़ पोधों को घर का एक जरूरी सदस्य माना जाता है। यहां के लोगों ने पेड़-पौधों के साथ माता-पिता और भाई-बहन का रिश्ता बना लिया है। राजस्थान के झालावाड़ जिले के गजवाड़ा गांव में पेड़ों को बचाने के लिए रात में पहरेदारी की जाती है। 30 साल से इस गांव में पेड़ों को बचाने के लिए यह अभियान किया जा रहा है।