बीते कुछ सालों से ग्रामीण इलाकों में प्राकृतिक सेनेटरी पैड के व्यवसाय ने तेजी पकड़ी है। राजस्थान और देहरादून के साथ भिन्न शहरों की महिलाएं सेनेटरी पैड का व्यवसाय कर खुद को आर्थिक तौर पर सक्षम बनाया है। यह भी दिलचस्प है कि कई महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह की महिलाएं समूह के साथ मिलकर ग्रामीण भागों में सेनेटरी पैड बांटकर महिलाओं और लड़कियों को जागरूक भी कर रही हैं। आइए जानते हैं विस्तार से कि कैसे केले, साबूदाने और कई प्राकृतिक चीजों से बना हुआ प्राकृतिक सेनेटरी पैड महिलाओं के लिए आजीविका की नई राह बन चुका है।
राजस्थान की महिलाओं ने बनाया पैड बैंक
एक तरफ जहां पैड बनाकर महिलाओं ने खुद के लिए रोजगार की तलाश की है, वही दूसरी तरफ राजस्थान के डूंगरपुर शहर की महिलाओं ने सेनेटरी पैड बैंक शुरू किया है। महावीर इंटरनेशनल संस्था की 35 महिलाएं कई जगह जाकर गांव की महिलाओं और लड़कियों को सेनेटरी पैड बांट रही हैं। दिलचस्प यह है कि बीते तीन साल से इस संस्था की महिलाएं पैड बांटने का काम कर रही हैं। इसके साथ वह पीरियड्स के दौरान महिलाओं की सेहत और सुरक्षा को लेकर भी लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं। इन महिलाओं का मानना है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं की सुरक्षा सबसे अहम हिस्सा है। इन महिलाओं का मानना है कि समाज में लड़कियों को झिझक छोड़कर अपनी चुप्पी को तोड़ना चाहिए और खुल कर बात करनी चाहिए।
बिहार की महिलाओं को पैड से मिला आर्थिक बल
बिहार के सीतामढ़ी इलाके की महिलाओं ने सेनेटरी पैड बनाकर खुद को आर्थिक तौर पर प्रबलता दी है। इन महिलाओं ने साबित किया है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है। सीतामढ़ी के बथनाहा प्रखंड के बखरी पंचायत की चांदनी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सेनेटरी नैपकिन बनाने का काम काफी समय से कर रही हैं। इस समूह की 10 महिलाएं माई पैड माई राइट के नाम से सेनेटरी पैड बनाने का कार्य पूरा कर रही हैं। दिलचस्प है कि इन महिलाओं की कमाई हर महीने 70 हजार के करीब हो रही है। वाकई, सेनेटरी पैड के जरिए महिलाएं सुरक्षा का संदेश देते हुए खुद के लिए कमाई का रास्ता भी बनाया है।
उत्तराखंड की महिलाओं ने केले के रेशे से बनाया सेनेटरी पैड
यह काबिले तारीफ है कि महिलाओं ने एक तरफ जहां सेनेटरी पैड बनाकर खुद के लिए कमाई के दरवाजे खोले हैं, वहीं दूसरी तरफ वह सेनेटरी पैड को लेकर कई तरह के प्रयोग भी कर रही हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की ग्रामीण महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के जरिए सस्ते और गुणवत्ता वाले सेनेटरी पैड बनाने का कार्य शुरू किया है। यहां की महिलाएं केले के रेशे और साबूदाना से सेनेटरी पैड बना रही हैं। इस समूह की 12 महिलाएं इस पैड को बनाने का कार्य कर रही हैं, जो कि उनके लिए रोजगार का जरिया बन गया है। इस पैड को पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से बनाया जा रहा है। इस पैड की कीमत 40 रुपए रखी गई है।
प्याज के पल्प से महिलाओं ने बनाया सेनेटरी पैड
कुछ समय पहले यह भी खबर आयी थी कि कैसे सेनेटरी पैड को प्राकृतिक तरीके से बनाने के साथ कई महिलाएं पैड में प्रयोग कर इसे और भी उपयोगी बना रही हैं। छत्तीसगढ़ की महिलाएं स्वयं सहायता समूह के साथ मिलकर सेनेटरी पैड के माध्यम से खुद के लिए रोजगार की तलाश कर चुकी हैं। इन महिलाओं द्वारा बनाए गए पैड की खूबी यह है कि पीरियड्स के दौरान प्याज के पल्प से बनाए गए सेनेटरी पैड को इस्तेमाल करने से यह महिलाओं की ऊर्जा बनाए रखता है। प्याज का पल्प सभी प्रकार के बैक्टीरिया को अवशोषित भी कर लेता है। उल्लेखनीय है कि साल 2015 में यह महिलाएं केवल पापड़ और अचार बनाने का काम करती थीं, लेकिन साल 2018 के बाद इन महिलाओं ने कुछ नया करने की ठानी और सेनेटरी पैड बनाने का नया तरीका इजात किया। इस समूह में 14 से अधिक महिलाएं सेनेटरी पैड बनाने का कार्य कर रही हैं।
उत्तराखंड की महिला ने सेनेटरी पैड से की लाखों की कमाई
एक तरफ जहां स्वयं सहायता समूह के साथ मिलकर सेनेटरी पैड को कई महिलाओं ने रोजगार का जरिया बनाया है, वही देहरादून निवासी प्रिंसी ने घर से सेनेटरी पैड बनाने का व्यवसाय शुरू किया। प्रिंसी ने घर पर ही सेनेटरी पैड का यूनिट लगाया है। 20 साल की प्रिंसी ने 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी की, लेकिन घर की आर्थिक हालात को देखते हुए उन्होंने व्यवसाय शुरू करने का फैसला लिया। प्रिंसी ने घर पर ही सेनेटरी पैड बनाने का प्लांट लगाया और आज वह इस व्यवसाय से लाखों की कमाई कर रही हैं और साथ ही उन्होंने 11 लोगों को इसके जरिए रोजगार भी दिया है।
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