नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के अनुसार, ग्रीन पटाखों की अनुमति केवल उन शहरों और कस्बों में है, जहां हवा की गुणवत्ता मध्यम या खराब है। चेन्नई पुलिस ने गुरुवार को दिवाली त्योहार से पहले एक एडवाइजरी जारी की, जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार, केवल "ग्रीन" पटाखों को बेचने और फोड़ने की अनुमति दी जाएगी, जिन्हें पर्यावरण के अनुकूल रसायनों से बनाया गया है। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 24 अक्टूबर को जनता के लिए पटाखे फोड़ने के लिए दो टाइम विंडो- सुबह 6-7 बजे और शाम 7-8 बजे- की अनुमति दी है।
वहीं दूसरी ओर, मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने अपने दिल्ली समकक्ष अरविंद केजरीवाल से पटाखों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाने का आग्रह किया है, क्योंकि इस तरह के प्रतिबंध से तमिलनाडु में पटाखा निर्माण इंडस्ट्री प्रभावित होगा। स्टालिन ने कहा, ‘“मैं आपसे आग्रह करता हूं कि संपूर्ण से पटाखों की बिक्री की पर पाबंदी न लगाएं। पटाखों का व्यवसाय आस-पास के लाखों लोगों के जीवन को रौशनी करेगा, विशेष रूप से ग्रामीण महिलाएं जो आजीविका के लिए इस उद्योग पर निर्भर हैं, क्योंकि दिवाली उनके वार्षिक कारोबार का 70 प्रतिशत हिस्सा है।’’
ग्रीन पटाखों और हानिकारक टॉक्सिन्स की पहचान
पीजीआई के डॉ रवींद्र खैवाल, पर्यावरण, स्वास्थ्य, सामुदायिक चिकित्सा विभाग, भारत के बड़े और अनुभवी पर्यावरण वैज्ञानिकों में से एक के रूप में पहचाने जाते हैं। दूसरी ओर डॉ सुमन मोर, अध्यक्ष, पर्यावरण अध्ययन विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, ने बताया है कि कैसे ग्रीन पटाखों और हानिकारक टॉक्सिन्स पटाखो की पहचान करनी चाहिए।
डॉ खवल और प्रोफेसर मोरे के अनुसार, हरे पटाखे और पारंपरिक पटाखे दोनों ही प्रदूषण का कारण बनते हैं और लोगों को दोनों का ही उपयोग करने से बचना चाहिए। हालांकि, फर्क सिर्फ इतना है कि पारंपरिक पटाखों की तुलना में हरे पटाखों से 30 फीसदी कम वायु प्रदूषण होता है। उन्होंने कहा, “हरे पटाखे प्रदूषण को काफी हद तक कम करते हैं और धूल को अवशोषित करते हैं और इसमें बेरियम नाइट्रेट जैसे खतरनाक तत्व नहीं होते हैं। पारंपरिक पटाखों में जहरीली धातुओं को कम खतरनाक यौगिकों से बदल दिया जाता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के अनुसार, ग्रीन पटाखों की अनुमति केवल उन शहरों और कस्बों में दी जाती है, जहां हवा की गुणवत्ता मध्यम या खराब होती है।”
इको-फ्रेंडली पटाखे से उगेंगी सब्जियां
एक अच्छी खबर यह भी है कि स्वयंसेवकों का एक समूह मंगलुरु के पास, पाक्षीकेरे इलाके में पटाखों के उपहार बॉक्स बनाने में व्यस्त है। हालांकि ये पटाखे, आम पटाखों से अलग हैं। इन पटाखों से न तो धुंआ निकलता है और न ही कोई आवाज आती है। इसके बजाय, वे फूलों और सब्जियों के पौधों में बदल जाते हैं। पेपर सीड कंपनी, मंगलुरु के बाहरी इलाके में, पाक्षीकेरे में स्थित एक सामाजिक टीम है, जो पिछले कुछ वर्षों से सब्जियों के बीजों का उपयोग करके पर्यावरण के अनुकूल राखी और अन्य सामान तैयार करने में लगी हुई है। इस साल इन्होंने रोपण योग्य बीज को पटाखों से मिलाया है।
पेपर सीड कंपनी के संस्थापक नितिन वास ने कहा, “पटाखों और फुलझड़ियों के बिना दीपावली अधूरी है। हम त्योहार मनाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल तरीके तलाशना चाहते थे। रॉकेट, ग्राउंड स्पिनर, बम, जैसे पटाखों फ्लावर पॉट जैसे दिखने वाले चमकीले पटाखों में बीज डाले गए हैं। यह विचार लोगों को प्रदूषण मुक्त उत्सव के लिए प्रोत्साहित करने के लिए है।’
उन्होंने आगे कहा, “पटाखों को कागज और कार्डबोर्ड का उपयोग करके हाथों से बनाया जाता है। यह डीकम्पोस्ड योग्य होते है और मिट्टी में मिलकर पौधों में बदल जाते है। पाक्षीकेरे की ग्रामीण महिलाओं को एक जैसे दिखने वाले पटाखे और असेम्बली बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। उन्हें बीज के साथ जोड़ने की प्रक्रिया हमारे द्वारा पेपर सीड में की गई है।’’
तो, इस दिवाली को ग्रीन दिवाली मनाएं और अपने साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखें।