देश के पहले पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। शिक्षक के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का भाव हर किसी के मन में सदैव रहता है, लेकिन साल में एक दिन यानी कि शिक्षक दिवस के मौके पर अपने गुरु के प्रति प्रकट करने का दिन 5 सितंबर को ही आता है। ऐसे में विस्तार से जानते हैं उन सारी घटनाओं के बारे में, जो कि शिक्षक दिवस से जुड़ी हुई हैं। इसके साथ ही जानते हैं कि इस बार किन लोगों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार मिल रहा है।
इन महिला शिक्षिकाओं का खास योगदान
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शिक्षक दिवस के मौके पर देश के 75 शिक्षकों को शिक्षा के सर्वोत्तम सम्मान राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि इस बार राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार में शामिल शिक्षकों में 40 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं, जो कि हर महिला के लिए गौरवपूर्ण बात है। ज्ञात हो कि 18 महिला शिक्षिकाओं को यह राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार मिल रहा है। गौरतलब है कि सभी शिक्षकों को पुरस्कार के तौर पर 50 हजार रुपए नकद और एक रजत पदक दिया जाएगा। ज्ञात हो कि इन सभी शिक्षकों में एक नाम इंदौर की चेतना खंबेटे का भी शामिल है। राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए चुनी गईं चेतना खंबेटे इंदौर के एक स्कूल में जीव विज्ञान की टीचर हैं। उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपने विद्यार्थियों के लिए अनुकूल शिक्षा का वातावरण बनाने में प्रमुख किरदार निभाया है। उन्होंने एक जीव विज्ञान लैब तैयार किया है, जो कि विद्यार्थियों को अध्ययन करने के लिए बढ़ावा देता है। इनके अलावा, जिन महिलाओं को शिक्षक दिवस का पुरस्कार मिल रहा है, उस फेहरिस्त में दिल्ली की शिक्षिका आरती कानूनगो, राजस्थान की शिक्षिका आशा रानी सुमन और अन्य महिला शिक्षिकाओं का नाम शामिल है।
बिहार की कुमारी गुड्डी को मिलेगा सम्मान
गौरतलब है कि बिहार की कुमारी गुड्डी को शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके कार्य और योगदान के लिए सम्मान मिल रहा है। खासतौर पर उन्होंने कोरोना महामारी के बीच स्कूल के बच्चों को विभिन्न माध्यमों के जरिए जोड़े रखा था। उन्होंने अपने स्कूल में शिक्षा से जुड़ी कई सारी सुविधाओं को भी संचालित किया था। उन्हें उनके कार्य के लिए जिला स्तर पर बेस्ट शिक्षक का पुरस्कार भी मिल चुका है। उन्होंने स्कूलों में लड़कियों की सेहत और शिक्षा को लेकर भी बेहतरीन कार्य किया है।
मध्यप्रदेश की सारिका घारू को भी राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार
मध्यप्रदेश की सारिका घारू को भी राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान मिल रहा है। इसकी वजह यह है कि सारिका एक शिक्षिका होने के साथ-साथ, अपने जिले में बच्चों और महिलाओं के बीच शिक्षा और सेहत को लेकर कई जागरूक कार्य भी करती आयी हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से अनेक वैज्ञानिक संदेशों को रोचक तरीके से बच्चों तक पहुंचाया है। ज्ञात हो कि इससे पहले सारिका को विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा बच्चों के विज्ञान लोकप्रियकरण में विशेष प्रयासों के लिए साल 2017 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
कौन हैं फातिमा शेख, भारत की पहली महिला शिक्षक
यह जानना महत्वपूर्ण है कि इतिहास में भी महिलाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में अपने योगदान दिए हैं और महिलाओं को आगे बढ़ने में मदद की है, ऐसे में महाराष्ट्र के पुणे में देश की पहली महिला शिक्षिका फातिमा शेख का सबसे सर्वोपरि आता है। फातिमा ने इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये, उनका जन्म 9 जनवरी 1931 को हुआ। फातिमा शेख ने महिलाओं की शिक्षा को लेकर कई सारे कार्य किए हैं, जो कि उन्हें देश की पहली शिक्षिका के तौर पर स्थापित करता है। उनके योगदानों को याद करें, तो उन्होंने देश के लिए पहला महिला स्कूल शुरू किया। सावित्रीबाई फुले ने उनकी सहायता की। उन्होंने साल 1848 में स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना में खास भूमिका निभायी। उन्होंने समाज में यह संदेश दिया कि लड़कियों के लिए बुनियादी शिक्षा बेहद जरूरी है। उनके सामने कई सारे मुश्किल हालात पैदा किए गए, लेकिन उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी और शिक्षा की तरफ अपने कदमों को हमेशा बढ़ाये रखा। उन्होंने खासतौर पर शोषित और वंचित परिवार और समुदाय के लोगों को शिक्षित करने के लिए अभियान शुरू किया। फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले साथ में मिलकर स्कूलों में पढ़ाया करती थीं और लोगों को शिक्षा का महत्व भी समझाती थीं।
सावित्रीबाई फुले बनीं पहली महिला शिक्षिका
यह जानना भी बेहद जरूरी है कि महिलाओं के लिए शिक्षा कितनी अहम थी उस दौर में भी , इसकी अहमयित को समझाने की पहल सबसे पहले सावित्रीबाई फुले ने की थी। सावित्रीबाई फुले का सबसे बड़ा योगदान महिलाओं के बीच शिक्षा की मसाल को जलाना था। केवल 17 साल की उम्र में वह अपने गांव में मौजूद स्कूल की प्रधानाचार्या बन गई थीं। उस दौर में महिलाओं को पढ़ने की इजाजत नहीं थी, लेकिन इस सोच को तोड़ने के लिए सावित्रीबाई ने यह फैसला लिया कि वह अपनी शिक्षा को पूरा करेंगी और समाज में भी महिलाओं की अहमियत को शिक्षा के माध्यम से बढ़ायेंगी और उन्होंने साल 1848 से लेकर 1852 तक 18 स्कूलों का निर्माण किया। उन्होंने महिलाओं को बेहतर और बुनियादी शिक्षा देने के लिए कई तरह का अभियान शुरू किया और वक्त के साथ वह उसमें सफल भी रही हैं।
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