सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि मुस्लिमों में तलाक ए हसन के जरिए, तलाक देने की प्रथा तीन तलाक की तरह नहीं है और महिलाओं के पास भी खुला का विकल्प है।
तीन तलाक की तरह तलाक ए हसन भी तलाक देने का एक तरीका है। लेकिन इसमें तीन महीने में तीन बार एक निश्चित अंतराल के बाद, तलाक बोल कर रिश्ता खत्म किया जाता है। इस्लाम में पुरुष को तलाक और महिलाओं को खुला लेने का हक है और खुला के जरिए, वह अपने पति से अलग हो सकती है। ऐसे में न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने बात रखते हुए कहा है कि अगर पति और पत्नी एक साथ नहीं रह सकते, तो रिश्ता तोड़ने के इरादे में बदलाव न होने के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक दिया जा सकता है।
बता दें कि तलाक ए हसन और एकतरफा न्यायेत्तर तलाक के सभी दूसरे रूपों को अवैध या असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में दावा किया गया है कि तलाक के यह तरीके मनमाने, असंगत और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
पीठ का साफ कहना है कि यह उस लिहाज से तीन तलाक नहीं हैं। विवाह में एक तरह का करार होने के कारण आपके पास खुला का विकल्प भी होगा। उन्होंने साफ किया है कि अगर दो लोग एक साथ नहीं रह सकते, तो हम भी शादी तोड़ने का इरादा न बदलने के आधार पर तलाक की अनुमति देते हैं। अगर मेहर ( दूल्हा द्वारा दुल्हन को नकद या अन्य रूप में दिया जाने वाला उपहार) दिया जाता है, तो क्या आप आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हैं? इस पर कहा गया है कि प्रथम दृष्टया, हम याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं हैं। पीठ ने यह भी साफ कहा है कि हम इसे किसी भी प्रकार से एजेंडा नहीं बनाना चाहते हैं।
वहीं याचिकाकर्ता बेनजीर हीना की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया था, लेकिन उसने तलाक ए हसन के मुद्दे पर फैसला नहीं दिया था।
शीर्ष न्यायालय ने आनंद से यह भी निर्देश लेने को कहा है कि यदि याचिका कर्ता 'मेहर' से अधिक राशि का भुगतान किया जाता है, तो क्या वह तलाक की प्रक्रिया पर समझौता करने के लिए तैयार होगी। उसने याचिकाकर्ता से यह भी कहा है कि मुबारत के जरिए इस अदालत के हस्तक्षेप के बिना भी शादी तोड़ना संभव है। उच्चतम न्यायालय अब इस मामले पर 29 अगस्त को सुनवाई करने वाला है।
क्या है तलाक-ए -हसन
इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीकों के बारे में मुख्य रूप से बताया गया है। इसमें तलाक-ए -हसन में तीन महीने की अवधि में हर महीने में एक बार तलाक कहा जाता है। तीसरे महीने में तीसरी बार तलाक कहने के बाद तलाक को औपचारिक रूप दिया जाता है। तीसरी बार तलाक कहने से पहले तक शादी पूरी तरह से लागू रहती है, लेकिन तीसरी बार तलाक कहते ही शादी तुरंत खत्म हो जाती है। इस तलाक के बाद भी पति-पत्नी दोबारा निकाह कर सकते हैं। जबकि पत्नी को हलाला से गुजरना पड़ता है।