हिजाब बैन को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक समुदाय को हाशिये पर रखने का एक पैटर्न रहा है। इसके अलावा, उन्होंने अपनी बात को रखते हुए यह भी कहा है कि पुलवामा हमला, भारत में केवल एक आत्मघाती बम विस्पोट हुआ है, जो दर्शाता है कि अल्पसंख्यकों ने देश पर अपना विश्वास रखा है।
गौरतलब है कि दुष्यंत दबे ने अपनी बातचीत को रखते हुए कहा कि लव जिहाद का पूरा मुद्दा और अब मुस्लिम लड़कियों को शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने से रोकना, अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिये पर डालने जैसी बात है। उन्होंने कहा कि हिजाब पहनने वाली मुस्लिम लड़कियां किसी की भावनाओं को आहत नहीं कर सकती हैं और हिजाब उनकी पहचान है। भारतीय सभ्यता के उदार पहलुओं पर भी जोर डालते हुए कहा गया है कि देश परंपरा पर बना है और विविधता में ही एकता होती है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई हिंदू लड़की हिजाब पहने मुस्लिम से पूछती है कि उसने इसे क्यों पहना है और अगर वह लड़की इसके बारे में बताती हैं, तो यह बेहद अच्छी बात है।
दुष्यंत दवे का यह भी मानना है कि पश्चिम ने पहले ही हिजाब की अनुमति दी है और अमेरिकी सेना ने भी पगड़ी की अनुमति दी है। उन्होंने कहा कि जिस तरह सिखों के पगड़ी पहनने के अधिकार से कोई झगड़ा नहीं कर सकता है, उसी तरह से मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने के अधिकार से भी कोई झगड़ा नहीं होना चाहिए और उन्होंने इस बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि सदियों से मुस्लिम महिलाओं के महिलाएं दुनिया भर के देशों में हिजाब पहनती आ रही हैं। उन्होंने तर्क दिया कि मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब अहम है और यह उनका विश्वास है। उन्होंने कहा कि कोई तिलक लगाना चाहता है, कोई क्रॉस पहनना चाहता है, सभी का अधिकार है और यही सामाजिक जीवन की सबसे खूबसूरत बात है।
उन्होंने इस बात पर भी तर्क दिया है कि हिजाब पहनने से देश की एकता और अखंडता को कैसे खतरा होगा। इस पर पीठ ने बात रखी कि कर्नाटक हाई कोर्ट फैसला भी ऐसा नहीं कहता है और कोई ऐसा नहीं कर रहा है। पीठ ने यह भी कहा कि यह तर्क स्व-विरोधाभाषी तर्क हो सकता है। साथ ही हिजाब पहनने का अधिकार अनुच्छेद 19 से आता है और इसे केवल एक वैधानिक कानून द्वारा केवल 19 (२) के तहत प्रतिबंधित किया जा सकता है। जबकि दुष्यंत दवे का मानना है कि इस मामले में अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकारों का प्रयोग कहीं भी किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि कुछ फैसले धार्मिक स्थलों के अंदर धार्मिक अभ्यास के बारे में बात करते हैं। जबकि दुष्यंत का मानना है कि अनुच्छेद 25 में धर्म को मानने और प्रचार करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है और कोई भी व्यक्ति कहीं भी मौलिक अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। उन्होंने कहा कि अगर एक मुस्लिम महिला को लगता है कि हिजाब पहनना उसके धर्म के अनुकूल है, तो कोई उसे रोक नहीं सकता है। प्री यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।