स्वयं सहायता समूह और सखी मंडल के जरिए ग्रामीण और शहरी इलाकों में कई महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाने के सपने को पूरा करते हुए दिखाई दे रही हैं। जी हां, बीते कई सालों से स्वयं सहायता समूह की महिलाएं राज्य सरकार से मिली आर्थिक सहायता के आधार पर खुद को आर्थिक तौर पर सतत प्रबल बना रही हैं। ज्ञात हो कि स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को ग्राम पंचायत के जरिए कई तरह के काम का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसके बाद वे अपनी आजीविका का रास्ता खुद बना रही हैं। आइए जानते हैं विस्तार से कि कैसे स्वयं सहायता समूह और सखी मंडल महिलाओं की ऊंची उड़ान को पंख दे रहे हैं।
3 लाख के करीब सखी मंडलों का गठन
झारखंड में सखी मंडल के उत्पादनों के जरिए महिलाएं राष्ट्रीय स्तर पर अपने हुनर से पहचान स्थापित कर रही हैं। झारखंड राज्य के 24 जिलों के 30 हजार के करीब के गांवों में तकरीबन 3 लाख के करीब सखी मंडलों का गठन किया है। इससे तकरीबन 32.51 लाख परिवार जुड़ चुके हैं। खास तौर पर महिलाओं को कई तरह की तकनीकी जानकारी से भी महिलाओं ने खुद को निपुण किया है।
दीदीज मॉल का संचालन
अयोध्या में रामनगरी के ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए दीदीज मॉल का संचालन शुरू किया गया है। यहां की ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक तौर पर बड़ा मंच देने और लोगों तक उनके हुनर को पहुंचाने के लिए दीदीज मॉल व्यापक तौर पर काम करेगा। इस मॉल के अंदर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को 10 दुकानों का संचालन करने की जिम्मेदारी मिली है। इन दुकानों के जरिए महिलाएं घरेलू उत्पादन के सामान की बिक्री करेंगी।
उत्तर प्रदेश में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं शुरू करेंगी कैटिन
उत्तर प्रदेश के 832 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कैंटीन खोली है। इस दीदी कैफे के जरिए महिलाएं आत्मनिर्भर होने के साथ अपनी कमाई का जरिया भी बढ़ा रही हैं। इस कैफे में महिलाओं के हाथों का स्वाद घरेलू खान-पान में मिलेगा। ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में 23, जौनपूर में 21, सीतापुर में 21, प्रतापगढ़ और प्रयागराज में कुल मिलाकर 40 कैंटीन शुरू की गई है। उत्तर प्रदेश के भिन्न शहरों पर गौर किया जाए तो 832 कैंटीन शुरू की गई है, जिसे संभालने की जिम्मेदारी दीदी कैफे की महिलाओं पर होगी, वहीं कानपूर, मुजफ्फरनगर जैसे कई इलाके हैं, जहां पर पहल से दीदी कैफे कार्यरत है। दिलचस्प है कि दीदी कैफे के जरिए अस्पताल में मौजूद मरीजों को भी कैंटीन के जरिए भोजन मुहैया कराया जाएगा।
महिलाओं के बीच कैंटीन के व्यवसाय में तेजी
स्वयं सहायता की महिलाओं के बीच कैंटनी के व्यवसाय में तेजी आयी है। गोरखपुर में स्वयं सहायता समूह महिलाओं ने राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन, प्रगति स्वयं सहायता समूह को दीदी कैफे नाम से कैंटिन आंवटित की है। इस कैंटिन के जरिए महिलाएं जहां खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत कर रही हैं, तो वहीं स्वच्छ और स्वास्थ्य वर्धक खाद्य पदार्थ बनाकर पौष्टिक आहार का भी संदेश दे रही हैं। वाकई, केवल 10 महिलाओं द्वारा शुरू किया गया दीदी कैफे कई सारी महिलाओं के लिए प्रेरणा का जरिया बनेगा।
स्वयं सहायता समूह से महिलाओं की कमाई
छत्तीसगढ़ के रायपुर की स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को आजीविका के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए एक महीने का प्रशिक्षण भी दिया गया है। यह सभी महिलाएं खान-पान की सामग्री को बनाने का काम करती हैं। इसी तरह बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के साथ कई अन्य ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के जरिए प्रशिक्षण के साथ रोजगार के नए अवसर दिए जा रहे हैं। इन स्वयं सहायता समूहों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि महिलाओं को उनके हुनर के मुताबिक कामों में ट्रेनिंग दी जा रही है, इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ रहा है और इसके साथ ही वे आर्थिक तौर पर खुद को सक्षम करने में सफल हो पा रही हैं। दिलचस्प यह है कि न केवल महिलाओं के हुनर के मुताबिक, बल्कि कृषि उत्पादनों को बढ़ावा देने के लिए खेती में भी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मशरूम और लेमन ग्रास की खेती प्रमुख तौर पर सिखाई जा रही है।
चीड़ की पत्तियों से कमाई
हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण को बढ़ावा देते हुए स्वयं सहायता समूह के जरिए घरेलू सजावट के कई सामान महिलाएं बना रही हैं। साल 2018 से जारी ज्योति स्वयं सहायता समूह की महिलाएं चीड़ की पत्तियों से बने उत्पादों को बेचकर हर महीने 20 हजार रुपए की कमाई कर लेती हैं। पहले इन महिलाओं ने इस काम की शुरुआत बिना किसी आर्थिक उम्मीद के की थी, लेकिन वक्त के साथ उन्होंने अपने इस काम को आगे बढ़ाया और आज खुद को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बना चुकी हैं, जो कि कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है।