महाराष्ट्र के लातूर जिले की महिलाओं ने रजाई की लुप्त कला को फिर से जीवित करने का निर्णय लिया है, साथ ही वह इसे वह अपनी आजीविका का हिस्सा भी बना चुकी हैं। इसके जरिए लातूर जिले की महिलाएं हर महीने 8 हजार की कमाई भी कर रही हैं। लुप्त होती रजाई की कला का काम लातूरे जिले की हर आयु की महिलाएं कर रही है। इसकी शुरुआत साल 2017 में ग्रामीण महाराष्ट्र के स्वयं सहायता समूह के जरिए केवल 50 हजार के निवेश के साथ शुरू की गई थी, जिससे अब कई सारी महिलाओं को आर्थिक मजबूती मिली है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को स्थिर काम देना और पारंपरिक हस्तशिल्प को जीवित करना करने के उद्देश्य से अस्तित्व में लाया गया था। कई ऐसी महिलाएं हैं, जो कि नए डिजाइन के साथ रजाई बनाकर लुप्त होती हुई कला को जीवन दे रही हैं और लातूर जिले के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं रजाई से गोधड़ी और रंग-बिरंगे कपड़े की कतरन से हाथ से सिलाई करके एक सुंदर रजाई तैयार करती हैं। इन महिलाओं को उनकी हाथ की रजाई कला को दर्शाने और बिक्री के लिए ग्रामीण आजीविका मिशन एक मंच भी प्रदान करता आया है। पिछले चार सालों में 15 से अधिक प्रदर्शिनियों का आयोजन रजाई कला के लिए किया जा चुका है। साथ ही विदेशों मं भी रजाई बेचने का प्रयास किया जा रहा है। ऑनलाइन भी रजाई की बिक्री को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। उल्लेखनीय है कि लातूर की महिलाएं न केवल इस तरह खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत बना रही हैं, बल्कि वे यह भी संदेश दे रही हैं कि देश की लुप्त होती कला हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, जिसकी अहमियत को समझना हम सभी के लिए जरूरी है।