ग्रामीण महिलाएं खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए बैंक सखी बनने के कार्य से तेजी से जुड़ रही हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा के साथ अन्य शहरों की ग्रामीण महिलाएं एक तरफ जहां बैंक सखी बनकर दूसरी महिलाओं को बैंकों की सुविधाओं से अवगत करा रही हैं, वहीं खुद के लिए भी कमाई का सशक्त जरिया बनाया है। आइए जानते हैं विस्तार से ग्रामीण महिलाएं किस तरह बैंक सखी का कार्यभार संभाल रही हैं।
बैंक सखी रांची में ऐसे कर रही हैं काम
रांची का ‘रनिया बैंक सखी’ ग्रामीण महिलाओं के लिए नई कोशिश बन गई हैं। बैंक सखी बैंकिंग और ग्रामीण के बीच पुल का काम कर रही हैं। रनिया जिले के जयपुर गांव की राजमुनी देवी ने प्रशिक्षण लेकर एक बैंक से जुड़ गई हैं। उन्होंने बैंक में एजेंट के तौर पर काम करना शुरू कर दिया है। वह लगातार ग्रामीण महिलाओं को बचत से जुड़ी सारी जानकारी दे रही हैं। साथ ही महिलाओं के लिए बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने में भी अपना अहम योगदान दे रही हैं। बैंक सखी बनकर वह हर महीने 10 से 15 हजार की कमाई कर रही हैं। जाहिर सी बात है कि बैंक सखी बनकर वे न केवल खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत बनकर अन्य महिलाओं को इसका महत्व भी समझा रही हैं।
बिहार के भोजपुर में 172 बैंक सखी
बिहार के भोजपुर में महिलाओं ने भी बैंक सखी बनने का जिम्मा उठाया हुआ है। यहां पर बैंक सखी कुल मिलाकर 175 बैंक शाखाएं चला रही हैं। इसके साथ वह हर महीने 20 से 24 हजार की कमाई भी कर रही हैं। बैंक सखी का यह मानना है कि जिले के हर पंचायत में बैंक सखी की योजना शुरू करनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि भोजपुर में 172 बैंक सखी कार्यरत हैं। बैंक सखी 24 घंटे अपनी सेवाएं मुहैया करवा रहे हैं, जो कि उनकी सफलता को बयान करता है। इस बैंक के जरिए ग्रामीण महिलाएं भी खुद को आर्थिक तौर पर प्रबल बना रही हैं। यह भी जान लें कि ग्राम सखी बनने वाली महिलाओं ने 12 वीं तक की पढ़ाई की है। भोजपुर जिले में केवल 172 बैंक सखी हर महीने 5 करोड़ का लेनदेन कर रही हैं।
बैंक सखी देंगी डिजिटल ज्ञान
हरियाणा में भी पोस्टल बैंक सखी डिजिटल बैंक के बारे में ग्रामीण इलाकों में जाकर महिलाओं को जागरूक कर रही हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए स्वयं सहायता समूह की महिलाएं ग्रामीण स्तर पर पोस्टल बैंक सखी बनकर डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं। इसके लिए कार्यशाला का भी आयोजन किया गया, जहां पर महिलाओं को डिजिटल ट्रांजेक्शन के जरिए कैश मैनेजमेंट के गुर सिखाए गए हैं। पोस्टल बैंक सखी बनकर कई महिलाएं खुद की पहचान हासिल कर रही हैं और खुद को आर्थिक तौर पर बल प्रदान करने में अहम भूमिका निभा रही हैं। दिलचस्प है कि पोस्टल सखी बनने के लिए ग्रामीण महिलाएं बड़ी संख्या में अपना रजिस्ट्रेशन भी करना रही हैं।
बैंक सखी बन संभाली परिवार की जिम्मेदारी
रांची में आरती देवी ने भी बैंक सखी बनकर खुद को बैंक दीदी के नाम से लोकप्रियता दी है। साल 2020 में उन्होंने झारखंड स्टेट लाइवी हुड के सहयोग से बैंक सखी का प्रशिक्षण हासिल किया। शुरू में उन्हें लोगों तक पहुंचने में थोड़ी परेशान हुई, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने सारे काम सीख लिए। बैंक में खाता खोलने के साथ बैंक में राशि जमा करने से लेकर हर जरूरी काम में आरती देवी बैंक दीदी बनकर ग्रामीण महिलाओं के लिए बड़ा सहारा बनी हुई हैं। इसके साथ बैंक सखी बनकर होने वाली आमदनी से वह अपना परिवार का पालन-पोषण भी पहले के मुकाबले सशक्त तरीके से कर रही हैं।
बुजुर्गों को कर रही हैं बैंक सखी मदद
मध्य प्रदेश दमोह में भी बैंक सखी बनकर महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बना रही हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण दमोह के बटियागढ़ विकासखंड के फुटेरा कला गांव में दिखाई दे रहा है। इस गांव की महिलाएं खुद को घर के कामों से राहत देते हुए बैंक सखी बनकर अपना काम पूरा कर रही हैं। वह महिलाओं को बैंक की सारी सुविधाओं की जानकारी देने के साथ बुजुर्गों को पेंशन और अन्य योजनाओं से भी अवगत कर रही हैं। कई बार ऐसा होता है कि यहां पर बैंक सखी खुद बुजुर्गों के घर जाकर उन्हें उनकी जमा राशि हाथ में देने का भी सराहनीय कार्य कर रही हैं। बैंक सखी बनकर यहां की भी महिलाएं महीने में 12 से 13 हजार की कमाई कर रही हैं।
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