देश की आजादी में महिला क्रांतिकारियों के योगदान से हम अनजान नहीं हैं। कई ऐसी क्रातिकारी महिलाएं रही हैं, जिन्होंने प्रथम चरण में आकर देश सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। लेकिन क्या आप जानती हैं कि संविधान सभा का जब गठन किया जा रहा था, उस वक्त भी महिलाओं की भूमिका सबसे ऊपर रही है। गणतंत्र दिवस के मौके पर हम उन्हीं महिलाओं का जिक्र करने जा रहे हैं, जिनका योगदान संविधान गठन करने में अहम रहा है।ज्ञात हो कि 1950 में संविधान को लागू किया गया था और इस संविधान गठन में महिलाओं की लंबी फेहरिस्त भी शामिल रही है। इसके साथ ही महिलाओं के अधिकारों को भी संविधान में शामिल किया गया। जिसके बारे में प्रत्येक महिला को जरूर जानकारी होनी चाहिए।
आइए विस्तार से जानते हैं।
समान वेतन अधिकार
भारतीय संविधान में महिलाओं को समान वेतन का अधिकार दिया गया है। समान परिश्रम अधिनियम 1976 के तहत महिलाओं को पुरुष के समान काम करने के लिए वेतन पाने का अधिकार है। लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह भी इस अधिनियम में लिखा गया है।
मातृत्व लाभ कानून और संपत्ति का अधिकार
मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत मां बनने की स्थिति में महिलाओं को 6 महीने का मातृत्व अवकाश का अधिकार है। कंपनी इस दौरान महिला के वेतन में कटौती नहीं कर सकती है और उसे नौकरी से भी नहीं निकाल सकती है। इसके साथ पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों का अधिकार होने का अधिकार संविधान में दिया गया है।
रात में गिरफ्तारी सुरक्षा और पहचान छिपाना
महिलाओं को सूर्यास्त होने के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और पूछताछ के दौरान महिला कांस्टेबल का होना भी जरूरी है। इसके अलावा यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएं अपनी पहचान को गोपनीय रख सकती हैं। उनकी निजता की रक्षा की जानी चाहिए।
जानते हैं, संविधान में महिलाएं -सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी संविधान गठन सभा की खास सदस्य रही हैं। एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ राजनीति में भी उनकी दिलचस्पी गहरी रही। इसके साथ आप यह भी जान लें कि वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं, उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार में अपना कार्यभार संभाला था। उन्होेंने कांग्रेस पार्टी में महिला शाखा का भी निर्माण किया। इसके बाद साल 1967 में सुचेता ने गोंडा विधानसभा क्षेत्र से चौदहवीं लोकसभा चुनाव को जीता और फिर 1971 में उन्होंने राजनीति से संन्यास लिया।
मालती चौधरी
संविधान का गठन करने के दौरान मालती चौधरी शोषितों के लिए लड़नेवाली एक समाजदेवी नेता रही है। उन्होंने लगातार महिलाओं की सुरक्षाृ के लिए कार्य किया है। इसके साथ उन्होंने राज्य में दमन के खिलाफ किसानों की मदद करने और छुआछूत और जातिवाद से लड़ने और बच्चों को शिक्षित करने के साथ समाज में महिलाओं के कद को ऊंचा करने का कार्य भी किया। अपने समाजसेवा के कार्यों के कारण उन्हें संविधान सभा के लिए चुना गया। यह भी जान लें कि भारतीय संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने में उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई है। लेकिन इसके बाद उन्होंने इस्तीफा देकर समाज के कार्यों में अपना अमूल्य योगदान दिया। बाल कल्याण में उनके योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया।
विजयलक्ष्मी पंडित
भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री विजयलक्ष्मी पंडित रही हैं। समाज की सेवा की सोच उन्हें उनके घर से मिली थी। विजया लक्ष्मी पंडित वकील मोतीलाल नेहरू की बेटी और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन रही हैं। वह संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की पहली राजदूत भी बनीं थीं। यह भी जान लें कि विजयलक्ष्मी पंडित अंग्रेजों के राज में किसी कैबिनट पद पर रहने वाली पहली प्रथम महिला थीं। विजय लक्ष्मी के कारण ही देश में पंचायत राज व्यवस्था लागू हुई थी। उन्होंने आजादी के लिए कई आंदोलनों में भाग लेकर गांधी जी और नेहरू जी के साथ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ीं। देश के प्रति उनका प्रेम इस कदर रहा है कि आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा कर उन्हें जेल जाना पड़ता था और फिर से जेल से बाहर आकर वह आंदोलन करती थीं।
राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमीर अमृत कौर 10 साल तक देश की स्वास्थ्य मंत्री रही हैं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका प्रमुख रही है। राजद्रोह के आरोप में उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन पर लाठीचार्ज भी किया गया। कांग्रेस के टिकट पर उन्हें मध्य प्रांत और बरार प्रांत से संविधान सभा के लिए चुनी गई थीं। यह उस दौरान हुआ जब, भारत को अंग्रेजी से आजादी मिली, तो अमृत कौर का संविधान सभा के लिए चुनाव किया गया। सभा के सदस्य के तौर पर उन्होंने भारत में समान नागरिक संहिता की शुरुआत का समर्थन किया और सार्वभौमिक मताधिकार और धार्मिक अधिकारों की सुरक्षा की वकालत की। साथ ही उनका नाम हाल सेहत के लिए जोड़ा गया। जब उन्होंने दुनिया में सबसे बड़े बीसीजी टीकाकरण कार्यक्रम को शुरू किया। इसके अलावा साल 1957 से लेकर 1964 तक वह राज्यसभा की सदस्य रही हैं।
सरोजिनी नायडू
संविधान को बनाने में सरोजिनी नायडू की भी भूमिका अहम रही है। वह संविधान सभा की सदस्य थीं और बिहार में संविधान सभा के लिए उन्हें नियुक्त किया गया था। अपने पूरे जीवनकाल उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा और उनकी शिक्षा के साथ समाज में उनकी स्थिति को सुधारने का कार्य किया है। इसके अलावा उन्होंने बाल विवाह को खत्म करने और संपत्ति के अधिकार सहित विवाह में महिलाओं के अधिकारों को बढ़ाने के लिए कानूनों को समर्थन किया है। उन्हें भारत की कोकिला की भी उपाधि दी गई। भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बनकर 21 महीने तक उन्हें जेल में रहना पड़ा था। इसके अलावा उन्होंने संयुक्त प्रांत की पहली महिला राज्यपाल के तौर पर भी काम किया।
लीला रॉय
साल 1946 में लीला रॅाय को भारतीय संविधान सभा के लिए चुना गया। ऐसा करते हुए उन्हें पश्चिम बंगाल की एकमात्र महिला बनने की उपाधि भी मिली। संविधान सभा में अपनी राय को बेबाकी से रखने वाली महिलाओं में उनकी गिनती होती है। वह एक तरह से समाजवादी क्रांतिकारी रही हैं। असम के साथ अपने समाजसेवा के कार्यों से उन्होेंने बंगाल में भी पहचान बनाई। उन्होंने जयश्री नाम से एक पत्रिका शुरू की। इस पत्रिका में महिला स्टाफ को रखा। यह जान लें कि महिलाओं के अधिकारों , शिक्षा और समाजवादी सुधार के लिए उनका योगदान प्रभावशाली रहा है। इसके अलावा सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की भी वह सदस्य रह चुकी हैं।
कमला चौधरी
महिलाओं के जीवन में सुधार लाने का जिम्मा कमला चौधरी ने अपने कंधों पर उठाया था। उन्होंने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने के लिए सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर प्रयास किया। साल 1962 में क्रांगेस के टिकट हापुड़ लोकससभा सीट पर चुनाव लड़ी। इसके बाद भी सांसद के तौर पर उन्होेंने लड़कियो ंके शिक्षा और महिला अधिकारों को लेकर हमेशा संसद में मुख रहीं। अपने स्वंतत्रता संग्राम के दौरान कमला चौधरी छह बार जेल जा चुकी हैं। उनका पूरा जीवन महिलाओं और बालिकाओं के उत्थान के लिए समर्पित रहा।
हंसा मेहता
कांग्रेस के टिकट पर उन्हें संविधान सभा के लिए बॅाम्बे से चुना गया था। उन्होंने हमेशा महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में अपनी बात और रखी है। इतना ही नहीं उन्हें नारीवादी लेखिका भी कहा जाता है। उन्होंने विदेशी कपड़े और शराब बेचने ाली दुकानों का भी बहिष्कार किया और उसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्हें खासतौर पर सलाहाकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति पद में भी रखा गया।
दुर्गाबाई देशभुख
दुर्गाबाई देशमुख भारत की स्वतंत्रता सेनानी और सामातजिक कार्यकता होने के अलावा भारतीय संविधान सभा में चुनी जाने वाली स्वंतत्र भारत के पहले वित्तमंत्री चिंतामणराव देशमुख की पत्नी रही हैं। इसके अलावा वह महात्मा गांधी की अनुयायी भी रह चुकी हैं। उन्हें आजादी की लड़ाई में कई बार जेल भी जाना पड़ा और जेल से बाहर आने के बाद भी उन्होंने खुद को शिक्षित रखने का फैसला किया और अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्हें एक तरह से समाज सुधारक की उपाधि भी दी गई है। दुर्गाबाई देशमुख को भारत सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद की पहली अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। इसके बाद उन्होंने गरीब लोगों की सेहत को ध्यान मं रखते हुए एक नर्सिंग होम की शुरुआत की। समाज में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा जिन महिलाओं का नाम संविधान सभा में शामिल है, उसमें अम्मू स्वामिनाथन, दकश्यानी वेलयुद्धन, पूर्णिमा बनर्जी, रेनुका रे का भी नाम शामिल है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि देश की आजादी के लिए अपनी जिंदगी देने वालीं महिलाएं संविधान सभा में भी अपने अनमोल योगदान के लिए हमेशा याद रखी जायेंगी।