क्या आपने कभी बांस से बने हुए आभूषण यानी कि ज्वेलरी के बारे में सुना है। बीते कुछ सालों से ओडिशा की महिलाएं बांस से गहने बनाकर खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत करने का कार्य कर रही हैं। ओडिशा के पारंपरिक आभूषणों का बात करें, तो नेकपीस, हार, पायल और झुमके वहां पर सबसे अधिक पहने जाते हैं। यही वजह है कि ओडिशा के गहनों की मांग भी सबसे अधिक होती है। यह दिलचस्प है कि ओडिशा की महिलाएं पर्यावरण का उपयोग करते हुए बांस के गहने बना रही हैं । आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
महिलाओं को गहने बनाने की ट्रेनिंग
ओडिशा के ऐसे भिन्न इलाके और गांव हैं, जहां पर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई तरह के कार्य किए जा रहे हैं। इनमें से एक है ओडिशा की ग्रीन क्वीन प्रियदर्शिनी दास, इन्होंने बांस से गहने बनाने के प्रशिक्षण के जरिए कई सारी ग्रामीण महिलाओं को आमदनी का रास्ता दिखाया है। कई सारी ग्राम पंचायत में आभूषण बनाने के प्रशिक्षण का आयोजन किया जाता रहा है।
बांस आधारित टिकाऊ आभूषण बनाने का तरीका
बांस से आभूषण बनाने के लिए 8 से 10 दिन का यह प्रशिक्षण होता है, जहां पर महिलाओं को गहने बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। माना जा रहा है कि हर एक गांव से पच्चीस से अधिक आदिवासी लड़कियों को बांस आधारित टिकाऊ आभूषण बनाने का तरीका बताया गया। इस पूरे प्रशिक्षण के दौरान लड़कियां कच्चे माल से बांस के विभिन्न भागों की कटाई का काम करती हैं। महिलाओं को बांस की कटाई के बाद चूड़ियां, झुमके, हेयर क्लिप, हेयर स्टिक, कमरबंद के साथ कई सारे गहने बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है।
कॉलेज की लड़कियों की गहनों से कमाई
आदिवासी इलाके की कॉलेज जाने वाली लड़कियां कोरोना लॉकडाउन के बाद से ही अपने परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए बांस के गहने बनाने का काम लगातार कर रही हैं। इन लड़कियों को गैर सरकारी संगठन से मदद मिलती है। लॉकडाउन के दौरान इन लड़कियों को स्वयं सहायता समूह के जरिए बांस से आभूषण बनाने का कार्य मिला। यह सभी लड़कियां बांस का उपयोग करते हुए तकनीकी के सहारे हेड क्लिप और झुमके के साथ कई और खूबसूरत गहने बनाने का काम करती हैं।
शिक्षा के साथ कमाई
यह सभी लड़कियां पहले अपनी पढ़ाई पूरी करती हैं और फिर बांस से आभूषण बनाने का काम करती है। उनका मानना है कि प्लास्टिक से बने हुए आभूषण की जगह बांस से बने गहनों का उपयोग करना चाहिए। इन आभूषणों को बनाने के लिए और सफाई का ध्यान रखते हुए सबसे पहले बांस को नीम, सोडा और नमक के पानी में उबाला जाता है और फिर ठंडा करके सांचे के सहारे इसे बनाने की प्रक्रिया की जाती है। पहने के दौरान किसी भी तरह की एलर्जी न हो इसलिए बांस को साफ रखने की प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है।
विदेशों में भी आभूषण की मांग
ठीक इस तरह से ओडिशा के बड़ाचंदिली गांव की भी लड़कियों को भी प्रशिक्षण दिया गया है। नतीजा, यह हुआ है कि ओडिशा की कई लड़कियां बांस गहने बनाने की निर्माता बन गई हैं। देश के साथ विदेशों में भी आभूषण की मांग बढ़ती जा रही है।ओडिशा की लड़कियों को इस कार्य के लिए सरकारी विभागों से भी सहयोग मिलता जा रहा है साथ ही उनकी महीने में हजारों की कमाई भी हो रही है, जो कि उनमें आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए उन्हें आर्थिक तौर पर मजबूती दे रहा है।
बांस से महिलाओं को मिला रोजगार
ज्ञात हो कि बांस जलवायु लचीला पौधा है। बांस को बढ़ने के लिए किसी भी रसायन की आवश्यकता नहीं होती है। ओडिशा में बांस अधिक संख्या में पाया भी जाता है। बांस की 10 विभिन्न किस्में पाई जाती हैं। गहनों के अलावा घर की सजावट के सामान और फर्नीचर भी बांस की सहायता से बनाए जा रहे हैं। कई महिलाएं बांस से मालाएं भी बना रही हैं। इन महिलाओं का फोकस यही है कि दूसरे शहर जाकर नौकरी की तलाश करने से बेहतर पर्यावरण की मदद से ओडिशा के गहनों को भी विश्व स्तर पर पहचान मिल रही है। शायद, इसी वजह से बांस को हरा सोना भी कहा जाता है, क्योंकि इसके जरिए कमाई के कई रास्ते खुलते हैं। महिलाओं को कई मौकों के साथ पहचान भी मिल रही है। इसके साथ कई लड़कियां और महिलाएं बांस से गहने बनाने की कला में दिलचस्पी लेते हुए इसे रोजगार का सबसे सशक्त और आसान जरिया भी मान रही हैं, जो कि आर्थिक तौर पर उनकी बड़ी सहायता कर रहा है।
*Image used is only for representation of the story