विभिन्न राज्यों में रक्षा बंधन के अलग-अलग मायने हैं। कई लोग ऐसे हैं, जो कि अपने तरीके से सही मुहूर्त के साथ रक्षा बंधन का पर्व मनाते हैं, लेकिन क्या आप जानती हैं कि कई ऐसी महिलाएं हैं, जो कि राखी के दिन पर्यावरण की सुरक्षा और रक्षा करने का वादा खुद से करती हैं और हर दिन समाज के सामने पर्यावरण को बचाने के लिए कई तरह के कार्य भी करती हैं। आइए विस्तार से जानते हैं उन महिलाओं के बारे में जो कि पर्यावरण के साथ राखी का उत्सव मनाती हैं, वो भी अनोखे तरीके से।
5 हजार से अधिक पेड़ों के साथ राखी
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मनाली निवासी कल्पना ठाकुर ने पेड़-पौधों को अपना भाई मान लिया है। रक्षाबंधन के उत्सव के दिन वह पेड़ों को राखी बांधकर उनकी सुरक्षा का वचन देती हैं। पेड़ों को परिवार मानने की प्रेरणा कल्पना को अपने पिता किशन लाल ठाकुर से मिली है। उनके पिता लगभग 50 हजार पौधों का रोपण कर चुके हैं। इसे देखते हुए कल्पना ने 17 साल में 5 हजार से अधिक किस्मों के पौधे अपने शहर के साथ लद्दाख में भी जाकर रोप चुकी हैं। उनके इसी जज्बे को देखते हुए साल 2018 में उन्हें राष्ट्रीय ग्रीन ब्रांड एंबेसडर के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
महिलाएं डेढ़ दशक से पेड़ों को बांधती हैं राखी
उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले का पिपलांत्री गांव की महिलाओं ने भी मिसाल कायम की है। पर्यावरण की रक्षा के लिए इस गांव की महिलाएं डेढ़ दशक से पेड़ों को राखी बांधती हैं। लगभग ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव में बेटी के जन्म पर भी परिवार के लोग 111 पौधे लगाए जाते हैं। इस गांव में पर्यावरण को लेकर जिस तरह का सराहनीय योगदान किया जाता है, उसे लेकर पिपलांत्री गांव की कहानी विदेशों में पढ़ाई जाती हैं। इस गांव की कहानी डेनमार्क के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई जाती है।
केले के पौधों से बनाई राखी
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर की महिलाएं भी राखी के दिन प्रेरणादायक पहल हर साल करती हैं। यहां की बहनें पर्यावरण के अनुकूल, बिना प्लास्टिक का उपयोग किए हुए केले के पौधों से निकलने वाले रेशे से आकर्षक स्वरूप दिया जाता है। इसकी वजह यह है कि केला फसल की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। केले के पौधों से भी वह राखी के अलावा कई तरह के घरेलू सामान भी बनाती हैं। इस साल राखी के मौके पर भी हजारों राखियां बनाकर बाजार में सप्लाई की गई हैं। इनकी इको-फ्रेंडली राखी की बिक्री में भी काफी तेजी आयी है।
चीड़ की पत्तियों से इको फ्रेंडली राखियां
जौनपुर ब्लाक के टिकरी गांव में भी महिलाएं समूह में मिलकर चीड़ की पत्तियों से ईको फ्रेंडली राखियां बनाती हैं। दिलचस्प है कि चीड़ के पत्तों से राखी बनाने के कारण जंगल में भी आग का खतरा भी कम हो जाता है। उल्लेखनीय है कि राखी के समय चीड़ की पत्तियों से बनी हुई राखियों के कारण इन महिलाओं की आर्थिक कमाई भी अधिक हो जाती है। जिस तरह महिलाओं द्वारा बनाए गए चीड़ की पत्तियों की राखियों की मांग बढ़ी है, इसे देखते हुए वन विभाग ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत भी गांव की अन्य महिलाओं को राखी के साथ अन्य तरह के सामान बनाने का भी प्रशिक्षण दिया है। बाजार में इन राखियों की कीमत 20 रुपए से लेकर 100 रुपए तक की कीमत तय की गई है।
गोबर से राखियां
राखी के दिन पर्यावरण की रक्षा के साथ उसका उपयोग भी देश के भिन्न शहरों में तेजी से किया जा रहा है। बाजारों में इको फ्रेंडली राखियों का चलन बढ़ा है। इसे देखते हुए कई ऐसे शहर और महिलाओं के स्वयं सहायता समूह हैं, जहां पर इको फ्रेंडली राखियां बनाई जाती हैं। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में पर्यावरण का ध्यान रखते हुए गोबर से राखियां बनाई जा रही हैं। इसके पीछे की वजह यह है कि गोबर से बनी हुई राखियों को मिट्टी में मिलाकर एक पौधा उगाया जा सकता है। गोबर से बनी हुई इस राखी में फूल के बीज डाले गए हैं। खास तौर पर गुलाब और तुलसी के बीज को इन राखियों के अंदर भरा गया है.
वाकई, यह काबिले तारीफ है कि रक्षा बंधन न केवल परिवार और भाई-बहन के अटूट रिश्ते तक सीमित है, बल्कि पर्यावरण की रक्षा और सुरक्षा करने का एक खास पर्व भी बीते कुछ सालों से बन गया है, जो कि पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देश में उजागर कर रहा है।
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