महिलाओं में गर्भावस्था से मानसिक रूप से स्वास्थ्य से जुड़ीं कई परेशानियां बढ़ती हैं, इसके बारे में सोसाइटी फॉर न्यूरोसाइंस की वार्षिक बैठक और मस्तिष्क विज्ञान और स्वास्थ्य के बारे में उभरती खबरों का दुनिया का सबसे बड़ा स्रोत न्यूरोसाइंस ने अपने वर्ष 2022 के नए निष्कर्ष जारी करते हुए दर्शाया है कि गर्भावस्था मस्तिष्क को कई महत्वपूर्ण तरीकों से बदलता है। दरअसल, गर्भवती महिलाओं और जो महिलाएं नयी-नयी मां बनती हैं, उनके लिए मातृ मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति दिखना अब सामान्य सी बात हो गई है, क्योंकि यह अधिकतर महिलाओं में नजर आती है। गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रत्येक वर्ष जन्म देने वाली लगभग 3.5 मिलियन महिलाओं में से लगभग 20% अवसाद और चिंता जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से प्रभावित होती हैं। और अगर इनका सही समय पर और सही तरीके से इलाज न कराया जाए, तो ये बीमारियां, माता-पिता, शिशुओं, परिवारों और समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं।
गर्भावस्था कैसे मस्तिष्क में परिवर्तन करती है, इस पर शोध ने अनुकूल परिवर्तनों और प्रसवकालीन मानसिक बीमारियों के न्यूरल मेकेनिज्म (अंतर्निहित तंत्रिका तंत्र )को प्रकट करना शुरू कर दिया है।
शोध के अनुसार, लगभग 70% महिलाएं बच्चे के जन्म के बाद के हफ्तों में इनमें से कुछ लक्षणों का अनुभव करती हैं, जिनमें उदासी, किसी भी चीज में दिलचस्पी नहीं, बच्चे के जन्म के बाद के हफ्तों में चिंता या अन्य मनोदशा में गड़बड़ी, और इनमें से लगभग 20% महिलाओं में अधिक गंभीर, लगातार प्रसवोत्तर अवसाद ( पोस्टपार्टम डिप्रेशन) विकसित हो सकता है।
गौरतलब है कि प्रसवोत्तर अवसाद (पोस्टपार्टम डिप्रेशन) संवेदनशीलता या न्यूरोइम्यून मार्करों और हार्मोन में परिवर्तन के साथ जुड़ा हुआ है, जो स्थिति के लिए जोखिम बायोमार्कर या संभावित चिकित्सीय लक्ष्यों के रूप में काम कर सकता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि सीखने और स्मरण वाले नेटवर्क में जीन अभिव्यक्ति को विनियमित करने वाले कारक चूहों में मस्तिष्क में मातृ अनुभव के दीर्घकालिक प्रभावों में मध्यस्थता का काम कर सकते हैं।
इसके अलावा, प्रसवोत्तर अवसाद में एलोप्रेग्नानोलोन के लंबे समय तक चलने वाले एंटीडिप्रेसेंट प्रभाव मूड में उपस्थित मस्तिष्क क्षेत्रों में गतिविधि के समन्वय पर प्रभाव के कारण हो सकते हैं।